किसी भी देश और उसके बड़े नेता की पूछ तभी होती है जब वह बड़ा काम करता है और बड़ी बात यह है कि लोग भी महसूस करें कि सचमुच बड़ा काम हो रहा है। बड़े काम का मतलब खाली बड़े-बड़े सपने लेना नहीं बल्कि उन सपनों को पूरा करना भी है। ऐसा कर दिखाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सचमुच कमाल के नेता हैं, जिन्होंने भारत की धरती पर बुलेट ट्रेन लाने का फैसला कर लिया और अब इसके लिए उन्होंने जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे को अपना आधार बनाया और इतिहास को एक नई दिशा दी।
तीन दिन पहले अहमदाबाद की धरती पर बाकायदा बुलेट ट्रेन परियोजना का भूमि पूजन हुआ और इसमें इन दोनों के अलावा बड़े-बड़े अधिकारी भी शामिल हुए। सबसे बड़ी बात यह है कि यह 500 किलोमीटर से ज्यादा की दूरी तय करेगी और अहमदाबाद से मुंबई का सफर महज दो घंटे में पूरा हो जाएगा। वर्ष 2022 तक चलने वाली यह लंबी योजना आसान नहीं थी और हमारी सफलता इस बात पर निर्भर रहेगी कि हम इसका आधार कैसे तैयार करते हैं और फिर इसका संचालन भी होगा।
अहम बात यह है कि बड़ी परियोजनाओं के लिए पैसा भी बहुत ज्यादा चाहिए सो मोदी जी ने यह काम अपने सबसे अच्छे मित्र शिंजो आबे पर ही छोड़ा और उन्होंने 88 हजार करोड़ रुपए भारत को देने का फैसला कर लिया और वह भी सिर्फ 0.1 प्रतिशत ब्याज की दर से। सचमुच यह एक मुनाफे का सौदा है। अगर हमें इतनी रकम मिल रही है तो फिर क्यों न इसका लाभ देश को मजबूती से दिलाया जाय। अब दिक्कत यह है कि इस योजना का शिलान्यास होते ही विपक्ष भड़कने लगा है। उनका कहना है कि जिस देश में आए दिन रेल दुर्घटनाओं में इजाफा हो रहा हो तो वहां पटरियां सुधारने की बजाए बुलेट ट्रेन की जरूरत क्या है? इसका जवाब खुद प्रधानमंत्री मोदी ने दिया है। उन्होंने कहा कि कल तक विपक्ष यही कहता था कि बुलेट ट्रेन का प्रधानमंत्री का वादा झूठा है और अब जब योजना का शिलान्यास हो गया तो यही विपक्ष कह रहा है कि बुलेट ट्रेन कब आएगी? मोदी का मानना है कि परियोजना पूरी होने के तहत 2022 में बुलेट ट्रेन भारत में चलने लगेगी।
विपक्ष बाज नहीं आता और नए आरोप लगाता है। अब उनका सवाल यह है कि यह बुलेट टे्रन अहमदाबाद से क्यों चालू हो रही है? तो हमारा मानना है कि अहमदाबाद एक ऐतिहासिक शहर है। अब उसे अगर कोई राजनीतिक चश्मे से देखे तो इसमें हमारा कसूर नहीं है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से जुड़ी बड़ी योजनाएं या उनके नाम पर जब बड़े-बड़े स्मारकों और प्रोजेक्ट्स का नामकरण पिछली सरकारें कर रही थीं तो किसी विपक्ष ने या भाजपा ने आपत्ति नहीं की थी परंतु अब विपक्ष को गुजरात में चुनावों की याद क्यों आ गई है? हमारे देश में ये चीजें चलती रहती थीं, चल रही हैं और हमारा मानना है कि चलती रहेंगी परंतु भारत दुनिया के नक्शे पर अपना परचम लहराता रहे।
जो तकलीफ इस समय चीन को हो रही है हम उसका उल्लेख भी करना चाहेंगे। जो कल तक टैक्नोलॉजी में दुनिया को बचाने का दम भरता था, अब मजबूत अर्थव्यवस्था के मामले में भारत से पिछडऩे लगा है। मोदी ने विदेशी नीति पर जापान से दोस्ती करके चीन को एक अच्छा सबक सिखाया है। अगर चीन भारत के आतंकवाद के मामले में सबसे बड़े दुश्मन पाकिस्तान को सहयोग करेगा तो फिर भारत को वह कूटनीतिक दांव खेलने आते हैं जो कल तक ड्रैगन खुद खेलता था। हिन्दू-चीनी भाई-भाई की कूटनीति के साथ वह 1962 के बाद अपने आप को बड़ा फन्नेखां समझता था परंतु मोदी जी ने एक ही झटके में उसकी सारी हेकड़ी निकाल दी है।
कुल मिलाकर बुलेट ट्रेन जहां रेलवे को एक नई रफ्तार देगी तो वहीं तरक्की को भी पंख लगेंगे। बुलेट ट्रेन रफ्तार का मामला तो है लेकिन रेलवे को एक नई तकनीक भी मिलेगी, जिसका लाभ भारत के काम आएगा। जब-जब देश में नई तकनीक किसी भी माध्यम से आती है तो उसका फायदा कमजोर से लेकर उच्च वर्ग तक सबको मिलता है। याद करो जब दिल्ली में मैट्रो ट्रेन शुरू हुई तो दिल्ली एक विकास का मॉडल बनी और आज यह अनेक राज्यों में लोगों की लाइफ लाइन के साथ-साथ उनके लाइफस्टाइल को एक नया रूप भी प्रदान कर चुकी है। दो शहरों के बीच में बुलेट ट्रेन से जुडऩे का मतलब है दूरियां घटना तो हम विपक्ष से यही कहना चाहेंगे कि हर चीज को राजनीतिक चश्मे से न देखा जाए। आने वाला वक्त तकनीक का है।
भारत के साथ बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट को साझा करके जापानी पीएम शिंजो आबे ने एक तीर से कई शिकार किए हैं और आतंकवाद के मामले में पाकिस्तान को बेनकाव भी किया है। यही भारत की विदेश नीति का कमाल है और जापान से मोदी ने जो हाथ मिलाए है वह एक बहुआयामी कदम है जिसका लाभ अभी पूरे देश को मिलेगा तो आने वाले दिनों में दुनिया भी इस नई दोस्ती को देखेगी, जो केवल विकास को ही तरजीह देती है। जहां विकास है वहां विश्वास है और मोदी सरकार यही कर रही है। देश भी यही चाहता है अगर मोदी ने एक बड़ा सपना पूरा करने की राह की तरफ कदम बढ़ा दिया है तो आओ जापान के साथ रिश्तों को स्वागत करें।