हमारा भारत देश बहुत बड़ा लोकतांत्रिक देश है। इसमें सबको बोलने, लिखने, पढ़ने की आजादी है। जिसमें सबसे बड़ी मिसाल पंजाब केसरी अखबार है जो हमेशा देश के साथ चलता है। किसी पार्टी या निजी व्यक्ति के साथ नहीं। जो समय-समय पर राजनीतिक, सामाजिक बुराइयों और अच्छाइयों के प्रति आवाज उठाता है। इसी आवाज उठाने के कारण पंजाब केसरी के संस्थापक लाला जगत नारायण जी और रोमेश चन्द्र जी के प्राण न्यौछावर हो गए, जिन्होंने पहले देश को आजाद कराने के लिए लड़ाई लड़ी, फिर देश की एकता-अखंडता को कायम करने के लिए प्राण दे दिए।
अब उनकी कलम उनके पुत्र अश्विनी चोपड़ा और उनके पौत्र आदित्य नारायण चौपड़ा ने सम्भाली हुई है। मैं मानती हूं कि जवानी का जोश स्टूडेंट लाइफ का जोश कुछ अलग ही होता है और अनुभवी लोगों की सोच-समझ अलग होती है। अभी जो देश में हो रहा है और जो हमेशा से होता आया है कि कोई भी बात ठीक न लगे तो लोग सड़कों पर उतर आते हैं, धरना-प्रदर्शन करते हैं। चाहे वो कश्मीर हो, असम हो, दिल्ली हो या देश का कोई भी कोना हो, उसमें सबसे बुरी बात लगती है जो सम्पत्ति को यानी बसों को, अन्य वाहनों को आग लगाना, जो हमारे दिए गए टैक्सों से बनी है और उसकी पूर्ति के लिए फिर हमसे टैक्स लिए जाएंगे।
उससे भी बुरी बात जब यूथ अपने कामकाज छोड़कर बिना सोचे-समझे सड़कों पर उतर आता है, पत्थरबाजी करता है, लाठियां खाता और मारता है। मैं मानती हूं कि किसी बात के लिए नाराजगी करना हमारा सबका अधिकार है। अगर हमें अपने माता-पिता की कोई बात अच्छी नहीं लगती तो हम उस पर भी रोष प्रकट करते हैं, रूठते हैं, खाना नहीं खाते, बोलते नहीं आदि। ऐसे ही प्रजा का भी अधिकार है अपनी सरकार से रूठने का, अपनी बात मनवाने का। परन्तु जो भी कानून हो उसे पहले समझें-सोचें फिर रोष प्रकट करें और रोष प्रकट करने के भी कई तरीके हैं।
इस मामले में हरियाणा के मेवात इलाके के मुसलमानों से सबक लेना चाहिए, जिन्होंने पूरी तरह अहिंसक मार्ग से अपनी आवाज लाखों की संख्या में एकत्र होकर बुलंद की। अब यह सरकार का काम भी है कि वह ऐसी खामोश आवाजों को ज्यादा से ज्यादा महत्व दें, उनसे बातचीत करें, उनकी समस्या समझें और उन्हें समझाएं। मैं राजनीतिज्ञ नहीं हूं, ज्यादा कानून नहीं जानती। क्या अच्छा, क्या बुरा परन्तु एक मां हूं इतना जानती हूं कि कितनी मन्नतें मांग कर बच्चे लेते हैं, फिर कितनी मुश्किलों से उनको पढ़ाते-लिखाते हैं, पालते हैं, फिर वह जवान होकर ऐसे प्रदर्शनों में घायल हो जाएं और जीवन गंवा दें तो किसका क्या जाएगा?
ऐसे युवा अपने माता-पिता के बारे सोचें, अपनी पढ़ाई-लिखाई के बारे में सोचें। माना आज युवा बेरोजगारी की पीड़ा सह रहा है इसलिए बहुत से बेरोजगार युवक ऐसे प्रदर्शनों में इस्तेमाल किए जाते हैं, सो हर सरकार को चाहिए कि वह अपने युवकों, विशेषकर बेरोजगार युवकों के लिए सोचें। मैं युवाओं से प्रार्थना करूंगी कि खुद सुरक्षित रहें। अगर वह खुद सुरक्षित हैं तो सब सुरक्षित हैं। अभी मैं लिख रही थी तो चंडीगढ़ से संजय टंडन जी ने व्हाट्सएप मैसेज भेजा जो आजकल के हालात पर सटीक बैठता है। अगर यहीं के हों तो इतना ‘डर’ कैसे, मगर चोरी से घुसे हो तो यह तुम्हारा ‘घर कैसे’? अगर तुम ‘अमन पसंद’ हो तो इतना ‘गदर’ कैसे?, जिसे खुद ‘खाक’ कर रहे हो, वो तुम्हारा ‘शहर’ कैसे? इजहार-ए-नाराजगी करो, संविधान की जद में, मगर गली-कूचों में, इतनी ‘मजहबी लहर’ कैसे?
सियासत से खिलाफत करो, हमें कोई गिला नहीं है, सियासत (नेशन) से दगा होगी, तो हम करें ‘सबर’ कैसे। मुझे नहीं मालूम यह फारवर्ड मैसेेज है या उनका लिखा या किसी कवि, शायर का परन्तु बहुत ही सार्थक है। मायने तो यही हैं कि हर हिन्दोस्तानी चाहे वो किसी धर्म, किसी मजहब से है। हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई वह हिन्दोस्तान का नागरिक है तो उसे किसी प्रकार की चिंता नहीं, जो घुसपैठ करते हैं आकर आतंक मचाते हैं, उनके लिए चिंता का विषय है। यह तो कोई भी देश हो चाहे अमेरिका हो वहां भी यही है।
देश के नागरिकों को कोई चिंता नहीं। मेरा मानना है कि सबको पहले समझना चाहिए फिर रोष प्रकट करें, जो उनका हक है परन्तु सड़कों पर जान माल हानि न करें। आप किसी के बच्चे हो, किसी के पिता हो, पति हो, भाई हो, बहन हो, आपकी एक-एक की जिन्दगी की बहुत कीमत है। आपकी जान की कीमत है। आपसे कई लोग, रिश्तेदार और आपका अपना देश जुड़ा है और आपसे ही भारत देश है। जिसमें हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी हैं भाई-भाई।