कतर में मौत की सजा से रिहाई पाने वाले पूर्व भारतीय नौसैनिक भारत लौट आए। पूर्व सैनिकों की रिहाई को भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक जीत माना जा रहा है। कतर में मौत की सजा पाने वाले इन आठ भारतीयों को दोहा की एक अदालत ने रिहा कर दिया था। इन भारतीयों की रिहाई में भारतीय विदेश मंत्रालय ने अहम भूमिका निभाई थी और मौत की सजा को जेल की सजा में परिवर्तित करवाया था। दरअसल, ये सभी सैनिक दोहा स्थित अल दहरा ग्लोबल टेक्नोलॉजीज के साथ काम करते थे। ये कंपनी सशस्त्र बलों और सुरक्षा एजेंसियों को प्रशिक्षण और अन्य सेवाएं प्रदान करती है। पिछले साल 28 दिसंबर को कतर की एक अदालत ने इन्हें जासूसी के आरोप में मौत की सजा सुना दी थी। इसके बाद भारत सरकार एक्टिव मोड में आ गई और इन्हें राजनयिक तौर पर सहायता दी गई। भारत की अपील के बाद मौत की सजा को तीन साल से लेकर 25 साल तक की जेल की सजा सुनाई गई।
भारत की पैरवी और पीएम मोदी के हस्तक्षेप के बाद इन सभी भारतीयों को रिहा कर दिया गया। रिहा हुए पूर्व सैनिकों में कैप्टन नवतेज गिल और सौरभ वशिष्ठ, कमांडर पूर्णेंदु तिवारी, अमित नागपाल, एसके गुप्ता, बीके वर्मा और सुगुनाकर पकाला और नाविक रागेश शामिल हैं। कैप्टन नवतेज गिल को उत्कृष्ट कार्य करने के लिए राष्ट्रपति के स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया था। उन्होंने नौसेना अकादमी से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और बाद में तमिलनाडु के वेलिंगटन में डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज में प्रशिक्षक के रूप में कार्य किया।
इन सभी आठों पूर्व भारतीय नौसैनिकों को बीते साल अगस्त में गिरफ्तार किया गया था। इन पर कतर की जासूसी करने का आरोप लगाया गया था। एक रिपोर्ट के अनुसार इन भारतीयों पर इजराइल के लिए कतर के सबमरीन प्रोजेक्ट से जुड़ी जानकारी जुटाने का आरोप था। भारत ने पहले कतर की छोटी अदालत द्वारा दी गई मौत की सजा पर चिंता व्यक्त की थी और इसे गलत बताया था। सरकार ने सभी अधिकारियों की मदद के लिए कानूनी विकल्पों पर विचार करने का वादा किया था। इसके बाद भारत ने मौत की सजा के खिलाफ कतर की अपील अदालत का रुख किया। 28 दिसंबर को कतर की अपील अदालत ने मौत की सजा को कम कर दिया और उन्हें जेल की सजा सुनाई।
इस बीच नौसेना के पूर्व अधिकारियों के चिंतित परिजनों ने उनकी रिहाई और उनकी सुरक्षित वतन वापसी की गुहार लगाई। जिसके बाद विदेश मंत्रालय ने आश्वासन दिया था कि वह सभी राजनयिक चौनलों को जुटाएगा और उन्हें वापस लाने के लिए कानूनी सहायता की व्यवस्था करेगा। कतर अदालत के फैसले को भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक जीत भी माना जा रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह दुबई में सीओपी 28 शिखर सम्मेलन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कतर के अमीर शेख तमीम बिन हमद अल-थानी के साथ मुलाकात के कुछ हफ्तों बाद आया है। तब पीएम मोदी ने कहा था कि उन्होंने कतर में भारतीय समुदाय की भलाई पर चर्चा की थी।
दोनों नेताओं के बीच ये मुलाक़ात इसलिए अहम मानी गई थी क्योंकि उस समय ये भारतीय पूर्व नौसैनिक क़तर की जेल में बंद थे। भारतीयों को मिली मौत की सज़ा पर भारत ने कहा था कि वह स्तब्ध है और सभी क़ानूनी विकल्पों पर काम कर रहा है। इस बीच विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इन आठ भारतीयों के परिवारों से भी मुलाक़ात की थी। केंद्र की मोदी सरकार पर लगातार इन आठ पूर्व नौसैनिकों की रिहाई के लिए दबाव बन रहा था। कांग्रेस, एआईएमआईएम और अन्य विपक्षी पार्टियां इन भारतीयों को जल्द भारत वापस लाने की मांग कर रहे थे।
वास्तव में पूर्व की हमारी सरकारें पश्चिम एशिया और पर्शियन गल्फ को कम महत्व देती थीं लेकिन जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आए हैं तब से माहौल बदला है। भारत अपना कूटनीतिक समय और प्रभाव इन जगहों पर खर्च नहीं करता था। अब वह गलती सुधारी जा रही है। मई 2014 में प्रधानमंत्री का पद ग्रहण करने के बाद जो पहला विदेश दौरा नरेंद्र मोदी ने किया वह भूटान का था और दूसरा दौरा यूएई का किया। शुरू से ही उन्होंने यह स्पष्ट रखा कि पश्चिम एशिया और अरब देशों से संबंधों के मामले में वह नया अध्याय जोड़ने जा रहे हैं। कतर से हमारे संबंध पुराने और बेहतरीन रहे हैं। अगर हम देखें तो कतर की 30 फीसदी जनसंख्या तो भारतीय प्रवासियों की है। वहां जो श्रमिक वर्ग है या ब्लू कॉलर्ड वर्ग है वह कतर जाते-आते रहते हैं। खासकर राजस्थान, केरल और कर्नाटक से वहां बहुत लोग जाते हैं। अगर हम बारीकी से देखें तो पाएंगे कि यह कूटनीतिक सफलता भारत के लिए आदत बनती जा रही है।
कतर के अलावा अफगानिस्तान से भी भारत ने बड़ी कूटनीति और चालाकी से अपने नागरिकों को निकाला। कीव और मारियोपोल में भी भारतीय नागरिकों को बड़ी चतुराई से भारत ने निकाला। मारियोपोल में पुतिन ने भारतीय विद्यार्थियों को सेफ पैसेज दिया और पोलैंड, लाटविया और लिथुआनिया में हमारे पांच केंद्रीय मंत्री इंतजार कर रहे थे और यूक्रेन-संकट के दौरान भी वे निकाल कर लाए। यह भारत और प्रधानमंत्री की कूटनीतिक चालाकी है। इसमें यह भी एक मुद्दा गौर करने का है कि हमारा पड़ोसी पाकिस्तान इस षड्यंत्र में शामिल था, ऐसी भी आशंका जताई गयी है, क्योंकि पाकिस्तान भी कतर में काफी निवेश करता है। उसके पर्व-त्याैहार और छुट्टियों में भी पाकिस्तानी अधिकारी जाते हैं, साथ ही पाकिस्तान इस तरह के षड्यंत्र में रहता भी है।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि नेहरूवादी विदेश-नीति के दौर से हम आगे निकल चुके हैं। पहले हमारी नीति प्रतिक्रियावादी होती थी। जब तक भारत को बिल्कुल ही कोने में धकेला नहीं जाता था। एक शब्द अंग्रेजी का है- प्रीएम्पशन, जिसका अर्थ होता है- पहले से तैयार रहना। नयी दिल्ली पहले इसका इस्तेमाल नहीं करती थी और इसका एक कूटनीतिक शस्त्र की तरह प्रयोग तो बहुत दूर की बात थी। देखा जाए तो मोदी और विदेश मंत्रालय ने प्रयत्न कर अपने संबंध अमेरिका और तेल से ऊपर उठ कर इन देशों से बनाए।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि कतर उनके दूसरे घर की तरह है। जो पहले की सरकारें थीं वे तेल और अमेरिका के संदर्भ में ही पश्चिम एशिया और अरब देशों को देखते थे। इसकी पृष्ठभूमि नरेंद्र मोदी और सुषमा स्वराज ने तैयार की। इसके चलते आज हम बहुत आसानी से नौसेना के पूर्व अधिकारियों को वापस ले आ सके हैं। इन पूर्व-अधिकारियों ने तो प्रोटोकॉल तोड़ते हुए सीधा स्वीकार भी किया है कि अगर पीएम मोदी का सीधा हस्तक्षेप नहीं होता तो उनकी वापसी मुमकिन नहीं थी। एक बात टाइमलाइन की भी है। इन अधिकारियों की मौत की सजा को पहले विदेश मंत्रालय ने बदलवाकर लंबी कैद में करवाया, फिर इनको वापस लाने में सफल हुए। भारत ने पहले से सोचा कि ऐसी मुश्किलें आ सकती हैं और कतर की सफलता एक मील का पत्थर है।
कतर से आठ पूर्व नौसैनिकों की रिहाई की कमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद संभाल रखी थी। उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को छह बार गुपचुप कतर भेजा। सूत्रों ने बताया कि पीएम की सलाह व विदेश मंत्रालय और विभिन्न भारतीय खुफिया एजेंसियों के संयुक्त प्रयास से यह रिहाई हो सकी। एजेंसियां पिछले एक साल से लगातार काम कर रही थीं। अजीत डोभाल ने कतर सरकार और वहां के अमीर शेख तमीम बिन हमद अल थानी के नजदीकी लोगों को मौजूद जियो पॉलिटिक्स के मद्देनजर मामले की बारीकियां समझाईं। उधर, विदेश मंत्री एस. जयशंकर की अगुवाई में खास गठित टीम कूटनीतिक स्तर पर मामले को संभाल रही थी। कुल मिलाकर भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक और वैदेशिक नीति में जीत का दिन है, जश्न का दिन है।
– राजेश माहेश्वरी