वक्फ बोर्ड नहीं घपला बोर्ड है यह !

वक्फ बोर्ड नहीं घपला बोर्ड है यह !
Published on

आजकल वक्फ बोर्ड की खूब चर्चा है कि सरकार अब इस पर संशोधन लाने वाली है और इसकी जमीन कब्जाने की अपार शक्ति को नकेल डालने वाली है। इसको लेकर इंडी घटक के नेताओं ने अपना वही पुराना हिंदू-मुस्लिम खटराग गाना शुरू कर दिया है कि यह मुस्लिम विरोध में है, जबकि ऐसा कुछ नहीं है। 'वक्फ' अरबी भाषा के 'वकुफा' शब्द से बना है, जिसका अर्थ होता है 'ठहरना'। वक्फ का मतलब है ट्रस्ट-जायदाद को जन-कल्याण के लिए समर्पित करना अर्थात बेवाओं, यतीमों, गरीबों, मस्जिदों, मदरसों, शैक्षिक संस्थानों आदि के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला दान।
इस संशोधन से मुस्लिम समाज को बहुत सी ऐसी संपत्ति पुनः वापस मिल सकती है कि जिससे वे अपने जरूरतमंद बच्चों की मेडिकल, इंजीनियरिंग, देश-विदेश में शिक्षा का खर्च उठा सकते हैं और मुस्लिम विधवाओं व तलाकशुदा महिलाओं का गुज़ारा भत्ता दे सकते हैं। इससे वक्फ बोर्ड की उस प्रकार की दादागीरी भी समाप्त होगी जैसे चैन्नई में एक पूरे गांव को ही वहां के वक्फ बोर्ड ने अपनी बपौती बना दिया है, या एक ऐसे 1500 वर्ष प्राचीन मंदिर पर कब्जे का दावा ठोक दिया है कि वह वक्फ जायदाद है, जबकि उस समय न तो इस्लाम आया था न ही वक्फ बोर्ड था।
इस्लाम में ये एक तरह का धर्मार्थ बंदोबस्त है जो कुरान की सूरत 26, आयत 19 और सूरत 3, आयात 86 में दिया गया है कि जब तक धनाढ्य व्यक्ति इसे इस राह में नहीं लगाएंगे, अल्लाह उनसे खुश नहीं होगा। यही कारण है कि भारत में लगभग हजार साल से सुल्तान, बादशाह, नवाब व धनी मुस्लिम निर्धन लोगों के लिए जमीन व धन के रूप में दान करते चले आए हैं। वक्फ उस जायदाद को कहते हैं जो इस्लाम को मानने वाले दान करते हैं, ये चल-अचल दोनों तरह की हो सकती है। यह दौलत वक्फ बोर्ड के तहत आती है। पूर्ण भारत में नौ लाख एकड़ से भी ऊपर वक्फ संपत्ति है। वक्फ में भी दो प्रकार की संपत्ति होती है। प्रथम तो 'वक्फ अल्लाह' अर्थात अल्लाह के नाम में गरीबों हेतु और 'वक्फ-अल-औलाद' अर्थात औलाद के लिए वक्फ। वक्फ के पास काफी संपत्ति है, जिसका रखरखाव ठीक से हो सके और धर्मार्थ ही काम आए तो निर्धनों का बड़ा भला हो सकता है। इसके लिए स्थानीय से लेकर बड़े स्तर पर कई बॉडीज हैं, जिन्हें वक्फ बोर्ड कहते हैं। तकरीबन हर स्टेट में सुन्नी और शिया वक्फ हैं। इनका काम उस संपत्ति की देखभाल और उसकी आय का सही इस्तेमाल है। इस संपत्ति से गरीब और जरूरतमंदों की मदद करना, मस्जिद या अन्य धार्मिक संस्थान को बनाए रखना, शिक्षा की व्यवस्था करना और अन्य धर्म के कार्यों के लिए पैसे देने संबंधी चीजें शामिल हैं जो वास्तव में हो नहीं रहा।
वास्तव में इतनी अधिक भूमि होने के बावजूद मुस्लिम समाज को इसका कोई लाभ नहीं मिल रहा है, जिसका कारण है कि जब से वक्फ बोर्डों की भारत में स्थापना हुई है, तब से ही इनके पदाधिकारियों और अधिवक्ताओं ने इसकी जमीनों को बेईमानी करके कौड़ियों के मोल बेचते रहे। उदाहरण के तौर पर मुकेश अंबानी का जो 4535 मीटर में बना मकान, मुंबई की महंगी अल्टमाउंट रोड पर है, 2003 में महाराष्ट्र वक्फ बोर्ड ने मात्र 21.05 करोड़ में दे दिया, जिसकी असल कीमत उस समय 600 करोड़ थी। इसी प्रकार से बेंगलुरु में 'विंडसर मैनर' नामक एमजी रोड पर बने पांच सितारा होटल का किराया मात्र 12,000 रुपए जाता है, जबकि उसकी मार्केट वैल्यू आज 1100 करोड़ रुपए है।
पुरानी दिल्ली के प्रसिद्ध मुग़ल काल के बाज़ार, चांदनी चौक की फतेहपुरी मस्जिद के चारों ओर सैंकड़ों दुकानें हैं, जिनमें से हर दुकान 20-30 करोड़ से कम क़ीमत की नहीं है, मगर उनके किराए, कस्टोडियन के समय से 50, 100, 500 रुपए आदि दिए जा रहे हैं, क्योंकि वक्फ बोर्ड के अफसरों ने पगड़ी के नाम में करोड़ों रुपए से अपनी जेबें भरी हैं और भर रहे हैं। उदाहरण के तौर पर दिल्ली में 77 प्रतिशत ज़मीन का मालिक वक्फ बोर्ड है, जिसमें उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय, सीजीओ कॉम्प्लेक्स, दिल्ली पब्लिक स्कूल, बहादुर शाह ज़फ़र मार्ग पर अख़बारों के दफ्तर, लुटियंस दिल्ली के मंत्रियों, सांसदों आदि के बंगले आदि शामिल हैं। इन सभी पर सरकार द्वारा क़ब्जे कर लिए गए और कोई देखने वाला नहीं, सिवाय एक सामाजिक कार्यकर्ता, अत्यब सिद्दीकी के, जिन्होंने उच्च न्यायालय की जनहित याचिका पर क़ौमी स्कूल, सराय खलील में न्यायमूर्ति गीता मित्तल के आदेश पर 4000 मीटर जमीन ओल्ड स्लॉटर हाउस, ईदगाह के पास वक्फ बोर्ड से दिलाई थी, जिस पर केजरीवाल दिल्ली सरकार का कब्ज़ा हो गया है।
अजमेर में तो दरगाह हज़रत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती (र.) के पूरे बाज़ार की मिल्कियत दरगाह ख्वाजा साहेब एक्ट के अंतर्गत वक्फ बोर्ड की है। एक उदाहरण है, 'जन्नत निशान' होटल का, जिसको मार्केट रेट के अनुसार इस बहुमंजिला होटल का किराया कम से कम चार लाख रुपए महीना देना चाहिए, मात्र 11000 रुपए दे रहा है। इसमें सरकार द्वारा बनाई गई दरगाह कमेटी के सदस्य पैसा खाकर औने-पौने दामों पर किराया, पगड़ी आदि बांध देते हैं। यही हाल पूरे भारत का है। इस संशोधन में सरकार को देखना चाहिए कि वक्फ बोर्ड की अधीकृत जमीन को छुड़ा कर पुराने वक्फ बोर्ड को समाप्त कर ईमानदार  अफसरों का नया वक्फ बोर्ड  स्थापित करें ताकि गरीब मुसलमानों को लाभ हो।

– फ़िरोज़ बख्त अहमद

Related Stories

No stories found.
logo
Punjab Kesari
www.punjabkesari.com