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यह मोदी युग का आगाज है

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इस वक्त पूरी दुनिया की नजरें भारत पर लगी हुई हैं। भारत में लोगों की नजरें भी एक ही आदमी पर लगी रहती हैं। देश और दुनिया की इस महान शख्सियत का नाम नरेंद्र मोदी है, जो भारत के बेहद प्रभावशाली प्रधानमंत्रियों में से एक हैं। लोकतंत्र में उनकी पहचान एक उस जुझारू और गतिशील स्टेट्समैन के रूप में है, जो अपने देश को हमेशा सबसे ऊपर देखना चाहता है लेकिन जब इसे राजनीतिक दृष्टिकोण से देखा जाता है तो फिर चुनावी सफलता भी एक बड़ा पैमाना बन जाती है। भारतीय लोकतंत्र की कहानी भी बड़ी अजीबो-गरीब है। कहते हैं कि एक ही राज्य में हमारे यहां दूसरी और तीसरी बार किसी पार्टी और नेता के सत्तारूढ़ होने का चौथा या पांचवां टर्म उसे नहीं मिलता लेकिन मोदी ऐसे आइकॉन हैं कि जिनके गुजरात का मॉडल पिछले 22 साल से जिंदा है और इस बार भी 2017 में गुजरात विधानसभा चुनावों में उन्होंने भाजपा को तब सत्ता रिपीट करवाई जब वह प्रधानमंत्री के रूप में देश का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। वर्ष 2017 में विधानसभा चुनाव, जो हिमाचल और गुजरात में तय थे, को लेकर राजनीति में तूफान मचा हुआ था लेकिन मोदी ने दिखा दिया कि उनका राजनीतिक दमखम पूरी तरह से न सिर्फ जमा हुआ है, बल्कि लोगों का उन पर भरोसा भी बरकरार है। नरेंद्र मोदी एक ऐसा नाम है कि आज की तारीख में उनकी सफलता को लेकर शोध तक होने लगे हैं। उनकी सफलता के पीछे वे काम हैं जिन्हें मोदी देश की खातिर अंजाम दे रहे हैं। बात पाकिस्तान के आतंकवाद की हो या चीन की कूटनीति की, बॉर्डर पर या कश्मीर में आतंकियों के खूनी खेल की हो या फिर डोकलाम की, अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत के परचम की बात हो या दुनिया के नामचीन देशों से रिश्तों की बात हो, मोदी हर मामले में भारत का जिस तरीके से प्रतिनिधित्व कर रहे हैं वह सफलता के झंडे गाड़ ही देते हैं।

राजनीतिक दृष्टिकोण से अगर मूल्यांकन करें तो बड़ी बात यह है कि देश की सियासत अब जाति-पाति और मजहब में बंटने लगी है और इस लिहाज से अगर भीड़तंत्र को भी जोड़ लिया जाए तो मोदी उसमें भी कामयाब हैं। यही वजह है कि वह विपक्ष को मुंहतोड़ जवाब देते हैं। राजनीति में कहते हैं कि धीरे-धीरे चलना चाहिए और धैर्यशीलता के साथ आगे बढऩा चाहिए, लेकिन यहां मोदी ने अगर एक अलग पहचान बनाई है तो इसके पीछे उनका विपक्ष को घेरने का आक्रामक रवैया और लोगों का दिल जीतने के लिए धैर्यपूर्वक सच्चाई को भावनात्मक तरीके से पेश करना है। मोदी जिस तरह से अपना काम करते हैं तो हर कोई यही कहने लगता है कि मोदी के समक्ष कोई नहीं टिक सकता। भारत में अगर राजनीतिक दृष्टिकोण से किसी बड़े मुद्दे को देखा जाए तो वह बाबरी मस्जिद विध्वंस और श्रीराम मंदिर निर्माण का है। इसे लेकर प्रधानमंत्री ने जिस तरह से अपना पक्ष, जिस माध्यम से रखा है यकीनी तौर पर सब कुछ पार्टी प्लेटफार्म पर किया जा रहा है। मामला सुप्रीम कोर्ट में होने के बावजूद मोदी ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से इसे भाजपा और अन्य सहयोगी संगठनों को विश्वास में लेकर आरएसएस को भी जताया है कि अगर ईमानदारी, नैतिकता है तो फिर वह अपनी कत्र्तव्यपरायणता के मामले में उनकी हर कसौटी पर खरे उतरेंगे। राम मंदिर निर्माण को लेकर उन्होंने विशुद्ध हिन्दुत्व की भावनाओं को इस वक्त सही माहौल, सही वक्त पर तैयार कर दिया है। लोग कहने लगे हैं कि अब मोदी का अगला एजेंडा राम मंदिर है।

मुस्लिम महिलाओं पर तीन तलाक को लेकर होने वाले कथित अत्याचारों के मामले में उन्होंने जिस तरह से नया कानून तैयार कर लिया है और यह लोकसभा में पेश भी हो गया है तो हिन्दुओं के विश्वास वाली भाजपा पर अब मुसलमान लोग भी भरोसा करने लगे हैं। राजनीतिक छूआछूत से मुक्ति पाकर भाजपा को अब मुसलमान वोट भी देने लगे हैं। गुजरात चुनावों में मोदी ने अपने हिन्दू वोट बैंक के दम पर, जाति कार्ड खेलने वालों को करारा जवाब दिया और वहां लोगों ने मोदी पर भरोसा करके भाजपा को जिस तरह से सफलता दिलाई उससे यही सिद्ध होता है कि मोदी जैसा न कोई था, न कोई है और न होगा। आने वाले दिन विपक्ष के लिए फिर से चुनौती भरे होंगे, क्योंकि गुजरात को 2019 लोकसभा चुनावों का सेमीफाइनल देखा जा रहा था और मोदी इसमें भाजपा को सफलता दिला चुके हैं। लिहाजा राजनीतिक विश्लेषक मानने लगे हैं कि अब लोकसभा 2019 में और कई राज्यों के वर्ष 2018 में होने वाले विधानसभा चुनावों में भी भाजपा को कोई हिला नहीं सकता। मोदी ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तो भारत की पहचान बनाई ही है, लेकिन स्वच्छता अभियान और बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान चलाने के साथ-साथ जिस तरह से योग का पूरी दुनिया में परचम लहराया है वह अपने आप में एक मिसाल है। कोई कुछ भी कहे, कोई कुछ भी माने लेकिन यह सच है कि मोदी का युग भारतीय लोकतंत्र में इस समय चल रहा है। अभी कोई माने या न माने लेकिन देर-सबेर भाजपा और भारतीय लोकतंत्र में मोदी युग को स्वीकार करना ही पड़ेगा। भारतीय लोकतंत्र फिलहाल ऐसी ही कहानी बयां कर रहा है।

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