भारतीय संस्कृति में यह अवधारणा स्पष्ट है कि मनुष्य अच्छे कर्म करे तो मरने के बाद उसे स्वर्ग मिलता है। इस धारणा को अनेक रूप में चित्रित किया गया है। भारतीय चिन्तन कर्म फल के आधार पर स्वर्ग-नरक की कल्पना करता है। महाभारत और श्रीमद्भागवत गीता तो पूरी तरह से कर्म फल की अवधारणा से प्रभावित है। यदि स्वर्ग की तात्विक व्याख्या की जाए तो स्वर्ग धरती से इतर कोई स्थान नहीं है, बल्कि सद्गुणों से युक्त मनुष्य जहां निवास करते हैं, वही स्वर्ग है।
सद्गुणों से युक्त मनुष्य ही देवता है। इसलिए सद्गुण संपन्न और सेवाभावी मनुष्य इस धरती के देवता माने जाते हैं। आज समूचा भारत एकजुट होकर कोरोना से जूझ रहा है। डाक्टर, नर्सें, मैडिकल स्टाफ और पुलिस कर्मी धरती पर फरिश्तों की तरह लोगों की जान बचा रहे हैं। उपचार में जाति, धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता। देश में बहुसंख्यक हिन्दुओं ने राष्ट्र हित में अपने धर्म को कुछ समय के लिए होल्ड पर रख दिया।
– हिन्दुओं ने होली नहीं मनाई।
– हिन्दुओं ने नवरात्र पर्व नहीं मनाया।
– कन्याओं का पूजन नहीं किया, अगर किया तो घरों के भीतर।
– शक्ति पीठों के द्वार बंद रहे, अंधकार को चीर कर निकलने वाली शंख ध्वनियां नहीं गूंजी। जयकारों का उद्घोष नहीं हुआ।
– सड़कें भी श्मशान जैसी लग रही थीं।
अब सवाल यह भी उठता है कि देश के लिए कुर्बानी देना केवल हिन्दुओं की है नैतिक जिम्मेदारी है? क्या देश में रहने वाले अन्य मजहबों के लोगों को यह अपना देश नहीं लगता। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने बहुत महत्वपूर्ण बात कही कि कोरोना के खिलाफ लड़ाई में किसी तरह की बाधा नहीं आए इसलिए आपस में दीवारें खड़ी नहीं की जानी चाहिए।
हिन्दू का प्लाज्मा मुस्लिम और मुस्लिम का प्लाज्मा एक-दूसरे की जान बचा सकते हैं। अगर आप के मन में किसी दूसरे धर्म के व्यक्ति के प्रति दुर्भावना आए तो सोच लो कि उसका प्लाज्मा कल आपके काम आ सकता है। मनुष्य के लहू का सिर्फ एक रंग होता है, वह है लाल। फिर भी कुछ लोगों को समझ में नहीं आ रहा कि इस समय मनुष्य को बचाना ही उनका सबसे बड़ा धर्म होना चाहिए। मुस्लिम बहुल इलाकों में डाक्टरों, मैडिकल स्टाफ और पुलिस के जवानों पर हमले।
मस्जिदों में एक साथ बैठ कर नमाज पढ़ कर और बाजारों में सोशल डिस्टैंसिंग की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। नवरात्र के समान ही रमजान को मुस्लिम भाई माह-ए-मुबारक कहते हैं। इस्लाम के सच्चे अनुयायी इस माह में पूरे ईमान के साथ रोजे रखते हैं। मुस्लिम भाई इस बात को मानते हैं कि पैगम्बर-ए-इस्लाम का फरमान है कि जब इस मुबारक महीने में पहली रात आती है तो आसमान और जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं जो आखिरी रात तक बंद नहीं होते। इस माह की अहमियत का बयान करते हुए खुद पैगम्बरे इस्लाम ने फरमाया- ‘‘अगर लोगों को मालूम हो जाए कि रमजान क्या चीज है तो मेरी यह तमन्ना रहेगी कि सारा साल रमजान हो जाए।’’
इस्लाम के सच्चे अनुयायी घरों में बैठकर लॉकडाउन के नियमों का पालन करते देखे जा सकते हैं। इस देश का न हर मुस्लिम तबलीगी जमाती है और न ही हर तबलीगी जमाती कोरोना पॉजिटिव। दरअसल तबलीगी जमात का एक वर्ग असंवेदनशील है, वह महामारी के खतरे के बीच अपनी कट्टरपंथी विचारधारा को किनारे कर ही नहीं सका। यह भी सच है कि मुस्लिम समाज का एक वर्ग अब भी मानने को तैयार नहीं। इस्लाम का सबसे बड़ा धार्मिक केन्द्र मक्का-मदीना बंद है लेकिन यह वर्ग एक के बाद एक लोगों से मिल रहा है।
भारतीय प्रशासनिक सेवा और पुलिस सेवा से जुड़े मुस्लिम अधिकारियों ने भी महामारी के दिनों में अपना और दूसरों का बचाव नहीं करना इस्लाम के उसूलों के विपरीत बताते हुए अपील की है कि वे कोरोना से बचाव के लिए पूरा एहतियात बरतें। आत्महत्या या किसी लाइलाज बीमारी के प्रति लापरवाही इस्लाम में पाप के बराबर मानी गई है। जो भी व्यक्ति, चाहे वह किसी पर भी विश्वास रखता हो, अगर उसका आचरण, व्यवहार शुद्ध होगा तो वह देश की बेहतरी के लिए हमेशा सोचता रहेगा।
हमारी प्रार्थना में, हमारी दुआ में ईश्वर और अल्लाह से यही अनुरोध करें-हे मालिक, हे परवरदिगार हमें इतनी शक्ति दे, हमें इतनी शफा जरूर बख्श दे कि हम अपना राष्ट्रधर्म निभा सकें क्योंकि हम इसी मिट्टी का अन्न खाते हैं, इसी का पानी पीते हैं। इसी फिजा में सांस लेते हैं। आज हमारा देश आसन्न संकट से घिरा है।
दिल व्यथित होता है तो मैं हर विषय पर लिखता हूं, क्योंकि कलम अपने दायित्व का निर्वाह तो करेगी ही। रमजान के पवित्र माह की शुभता सबको नई प्रेरणा दे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी मुस्लिम समुदाय से अपील की है कि घरों में रहकर ज्यादा इबादत करें ताकि दुनिया ईद से पहले कोरोना वायरस से मुक्त हो जाए। हालांकि अनेक मुस्लिम नेताओं ने भी रमजान के दौरान घरों पर रहकर ही इबादत की अपील की थी। यह हमारा राष्ट्र चिन्तन होना चाहिए।