कोरोना वायरस के संकट के बीच इससे निपटने के लिए संस्थाओं द्वारा तरह-तरह के सुझाव दिए जा रहे हैं। महामारी से बचने और लॉकडाउन को खोलने के उपाय ढूंढे जा रहे हैं। इसी क्रम में सेना की तरफ से भी सुझाव दिए गए हैं, जिसकी काफी चर्चा की जा रही है और युवाओं में काफी उत्सुकता और जिज्ञासा भी देखी जा रही है। सेना ने मंत्रालय को सुझाव दिया है कि महामारी से प्रभावित देश की अर्थव्यवस्था को ठीक करने और बेरोजगारी कम करने के लिए सेना तीन वर्ष का इंटर्नशिप प्रोग्राम चलाएगी। इस प्रोग्राम के तहत अधिकारियों और सैनिकों को प्रशिक्षण दिया जाएगा। सेना का कहना है कि यह प्रोग्राम उन युवाओं के लिए होगा जो सेना में करियर तो नहीं बनाना चाहते लेकिन वह राष्ट्रवाद और देशभक्ति से ओतप्रोत हैं और सेना के काम का रोमांच लेना चाहते हैं। सेना ने इस तीन साल के प्रोग्राम को टूर ऑफ ड्यूटी का नाम दिया है। सेना पहले ट्रायल करेगी फिर इसका विस्तार किया जाएगा। इस प्रोग्राम में 80-85 लाख रुपए तीन साल में खर्च होंगे और इसका खर्च भी सेना के बजट से ही पूरा किया जाएगा। यदि सेना के इस प्रस्ताव पर आगे बढ़ा जाता है तो आम लोग भी तीन साल तक सेना में काम कर सकेंगे। दुनिया में कई देश ऐसे हैं जहां लोगों का सेना के िलए एक तय वक्त तक काम करना अनिवार्य है।
इस्राइल में पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए मिलिट्री सर्विस अनिवार्य है। पुरुष इस्राइली रक्षा बलों में तीन वर्ष और महिला करीब दो वर्ष तक सेवा देती है। यह देश-विदेश में रह रहे इस्राइल के सभी नागरिकों पर लागू होता है। ब्राजील में भी 18 वर्ष से अधिक आयु वाले युवाओं के लिए मिलिट्री सेवा अनिवार्य है। दक्षिण कोरिया में राष्ट्रीय सैन्य सेवा के िनयम बहुत सख्त हैं। सभी सक्षम पुरुषों को सेना में 21 महीने, नौसेना में 23 महीने और वायुसेना में 24 महीने सर्विस देनी होती है। अगर कोई ओलििम्पक या एशियन खेलों में गोल्ड मैडल जीता हो तो उसके लिए पुलिस फोर्स, तटरक्षक, अग्निशमन विभाग या किसी सरकारी विभाग में काम करने का विकल्प रहता है। पुरुषों को 11 वर्ष और महिलाओं को करीब 7 वर्ष तक सेवा देना अनिवार्य है। रूस में भी 12 महीने तक मिलिट्री सर्विस अनिवार्य है। भारतीय सेना में सबसे कम सेवा (दस वर्ष) के लिए लोग शार्ट सर्विस कमीशन को चुनते हैं। अगर तीन वर्ष का प्रोग्राम आता है तो भारत में कई लोग इससे जुड़ेंगे। अगर युवा चाहें तो वह स्वेच्छा से सेना से जुड़ सकते हैं।
सेना के इस प्रस्ताव का उद्देश्य देश की सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को अपनी ओर आकर्षित करना है। दूसरे देशों में अपनी इच्छा से सेना में भर्ती का मौका दिया जाता है। फ्रांस की सेना में तो तीन माह के लिए प्लेसमेंट दी जाती है। जहां प्रतिभागियों को रक्षा आैर सुरक्षा से जुड़े क्षेत्र में सेवा के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। भारतीय सेना भी शार्ट सर्विस कमीशन को युवाओं के लिए अधिक आकर्षक बनाने पर विचार कर रही है।
कई वर्षों से सेना में अधिकारियों आैर जवानों की कमी लगातार बनी हुई है, जिसमें थलसेना में 45 हजार से अधिक जवानों की कमी है, इसमें लेफ्टिनेंट रैंक से ऊपर के 7 हजार अधिकारियों की कमी भी शामिल है। शहरी क्षेत्रों में युवा तो फौज में भर्ती होक़ना ही नहीं चाहते। सेना में ड्यूटी काफी मुश्किल होती है और युवा वर्ग जिन्दगी को सहजता से जीना चाहता है। तीन साल के लिए फौज के लिए भर्ती होेने से युवा ऊर्जा को स्पष्ट दिशा मिलेगी। फिजीकल फिटनेस के अलावा देश भक्ति, अनुशासन और जिम्मेदारी की भावना इन युवाओं को न केवल बेहतर नागरिक बनाएगी बल्कि विभिन्न प्रोफैशनल भूमिकाओं के लिए उनकी पात्रता को नई ऊंचाई देगी। सेना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जिस स्तर की भर्ती के लिए जो भी पात्रता तय है उसमें कोई ढील नहीं दी जाएगी। आटोमेशन के युग में सेना ऐसे स्मार्ट सैनिक विकसित करना चाहती है जो कई स्रोतों से आ रही सूचनाओं का उपयोग करते हुए अत्याधुनिक हथियारों और उपकरणों के बल पर अपने काम को बेहतर ढंग से अंजाम दे सकें। जब मामला मनोबल और कौशल का हो तो ऐसी पहल को आजमाने में कोई हर्ज नहीं है। टूर ऑफ ड्यूटी का प्रस्ताव स्थाई आफिसरों और सैनिकों की जगह लेने के लिए नहीं है। सेना के पास कई तरह के काम हैं। मौजूदा प्रस्ताव का उद्देश्य सेना के साथ-साथ नागरिक समाज के लिए भी काफी उपयोगी सिद्ध हो सकता है।
सेना के टूर ऑफ ड्यूटी के प्रस्ताव का कई पूर्व सैन्य अधिकारियों ने स्वागत भी किया है लेकिन कुछ ने विरोध भी किया है। कुछ पूर्व सैन्य अधिकारियों ने आश्चर्य जताया है कि सेना ऐसे समय प्रस्ताव क्यों लेकर आई है जब उसे 13 लाख कर्मियों की संख्या वाले बल में प्रतिभाशाली युवा पेशेवरों को शामिल करने के उद्देश्य से शार्ट सर्विस कमीशन को आकर्षक बनाना चाहिए। तीन साल के लिए लोगों को सेना में भर्ती कर राष्ट्रवाद और देशभक्ति का झूठा बौध उत्पन्न नहीं िकया जा सकता। कुछ का कहना है कि यह कदम भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा हितों के लिए हानिकारक हो सकता है। सेना में तीन वर्ष तक काम करने वाले लोग महत्वपूर्ण सुरक्षा ब्यौरे के साथ बाहर जा सकते हैं और फिर दुश्मनों को लीक कर सकते हैं। इस काम में बहुत सावधानी बरतनी होगी। सेना का उद्देश्य तो आम लोगों को बल के करीब लाना है। एक सकारात्मक बात यह देखने को मिली है कि महिन्द्रा एंड महिन्द्रा के प्रमुख श्री महेन्द्रा ने यह कहा है कि तीन साल तक फौज में रहने वाले लोगों को वह अपने यहां नौकरी देंगे। देखना है सरकार इस प्रस्ताव पर क्या रुख अपनाती है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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