लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

छात्रों का मनोबल बढ़ाने का समय

वर्ष 2020 एक बुरे सपने की तरह रहा लेकिन अब चला गया है। यह वर्ष हमारे जीवन में अनेक घाव छोड़ गया। वर्ष 2020 केवल हमारे लिए ही नहीं पूरी दुनिया के लिए बेहद कठिन रहा है।

वर्ष 2020 एक बुरे सपने की तरह रहा लेकिन अब चला गया है। यह वर्ष हमारे जीवन में अनेक घाव छोड़ गया। वर्ष 2020 केवल हमारे लिए ही नहीं पूरी दुनिया के लिए बेहद कठिन रहा है। हमने लगभग पूरा साल पाबंदियों में बिताया। अब नव वर्ष का आगमन हो चुका है। नए साल का आरम्भ नई उम्मीदों के साथ हो रहा है। जीवन की गाड़ी पटरी पर लौटने लगी है। कोरोना की वैक्सीन ने भी हमारे हौंसलों को उड़ान दी है। जीवन में उतार-चढ़ाव जिन्दगी का एक हिस्सा हैं, इनसे बचा नहीं जा सकता। पिछले साल से सबक लेकर हम सबको आगे बढ़ना है। भारतीय मनीषियों ने हमें लगातार सलाह दी है-
‘‘बीती ताहि बिसार दे
आगे की सुधि लेय।’’
हमें 2020 को भूल जाना चाहिए और नव वर्ष को सामने रखकर भविष्य को संवारना होगा। नव वर्ष के पहले दिन शिक्षा और छात्रों पर चर्चा करना चाहता हूं। कोरोना वायरस के चलते शिक्षण संस्थान पिछले वर्ष मार्च से ही बंद हैं। कोरोना ने शिक्षा के चरित्र को ही बदल डाला है। जब-जब समाज का स्वरूप बदला, शिक्षा के स्वरूप में भी परिवर्तन की बात हुई। ऑनलाइन शिक्षा मात्र तकनीक नहीं, समाजीकरण की नई प्रक्रिया बनी। कोरोना संकट में शारीरिक दूरी बनाए रखने के लिए शिक्षा के लिए तकनीक का प्रयोग एक अच्छी पहल है। तकनीक के विकास के साथ में शिक्षा में इसका प्रयोग होता रहा है, यह होना भी जरूरी है। शिक्षकों के लेक्चर रिकार्ड करना और उन्हें ऑनलाइन उपलब्ध कराना भी तकनीक का उपयोग ही है। कोरोना काल में बच्चों को पढ़ाना कोई आसान काम नहीं है। बच्चे, शिक्षक और अभिभावक शिक्षा की तीन महत्वपूर्ण कड़ियां हैं। हमारी शिक्षा व्यवस्था इन तीन कड़ियों को जोड़ने में जुटी हुई थी कि इसमें डिजिटल की एक और कड़ी जुड़ गई, लेकिन वर्चुअल कक्षाओं ने इंटरनेट को भी शिक्षा की महत्वपूर्ण कड़ी बना दिया है लेकिन देश में एक बड़े वर्ग के पास न तो स्मार्ट फोन है और न ही कम्प्यूटर और न ही इंटरनेट की सुविधा। आज का दिन वर्चुअल शिक्षा के गुण और दोष पर चर्चा का है। शिक्षा मंत्रालय ने दूरदर्शन पर कक्षाएं आरम्भ कीं ताकि शिक्षा की पहुंच उन क्षेत्रों में भी पहुंचे जहां तकनीकी सुविधाएं नहीं हैं। जो कुछ भी किया गया वह वक्त की नजाकत थी। संकट की घड़ी में आॅनलाइन शिक्षा सही है लेकिन इसे कक्षाओं का विकल्प नहीं बनाया जा सकता। आप उन बच्चों की कहानी नहीं समझ सकते जिनके घर बहुत छोटे हैं, कोई एकांत नहीं और प्राथमिक जिम्मेदारी पढ़ाई नहीं ​​बल्कि पेट पालना है। घंटों ऑनलाइन मोबाइल के साथ अकेले बैठकर पढ़ने की स्थिति कितने घरों में है। रद्द की गई दसवीं-बारहवीं की परीक्षाओं को ऑनलाइन नहीं कराने का फैसला काफी चिंतन-मंथन के बाद ही किया गया है। ये परीक्षाएं 4 मई से शुरू होंगी और दस जून तक चलेंगी ​तथा 15 जुलाई तक परिणाम घोषित किए जाएंगे। परीक्षाएं आयोजित कराना अपने आप में बड़ी चुनौती है। अभिभावक कोरोना के नए स्ट्रेन से चिंतित हैं। कुछ लोग अभी भी ऐसे स्वर उठा रहे हैं कि परीक्षाएं इतनी जरूरी नहीं थीं जितनी बच्चों की जिन्दगी। इस तरह की बातें बच्चों का मनोबल कमजोर कर सकती हैं, जबकि इस समय जरूरत है कि स्कूली बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ाया जाए और उन्हें परीक्षाओं के लिए मानसिक रूप से तैयार किया जाए। छात्रों के पास चार माह का समय है। इस वर्ष बदले पैटर्न में परीक्षाएं  होंगी क्योंकि दसवीं और बारहवीं कक्षाओं के लिए 30 फीसदी सिलेबस कम किया गया है। घटाए गए सिलेबस पर ही बोर्ड की परीक्षाएं ली जाएंगी। अभिभावकों की चिंता यह भी है कि इन परीक्षाओं से पहले अलग-अलग शिक्षा बोर्डों से जुड़े स्कूल प्री बोर्ड परीक्षाएं लेने की तैयारी कर रहे हैं। प्री बोर्ड परीक्षाएं ऑनलाइन ली जाएंगी। स्कूल वालों का कहना है कि ऑनलाइन परीक्षाएं कराने से बच्चों की गलती पकड़ कर ठीक कर लिया जाएगा। इससे बच्चों की क्षमता का पता चलेगा।
अभिभावकों को इस समय बच्चों को केवल स्कूली परीक्षा के लिए तैयारी करने में भरपूर सहयोग तो देना ही चाहिए, साथ ही जीवन की चुनौतियों का सामना करने की सीख भी देनी चाहिए क्युकि जीवन परीक्षा है। दसवीं और बारहवीं की परीक्षाएं जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ होती हैं। ये परीक्षाएं छात्रों का भविष्य तय करती हैं। किसी ने क्षेत्र में आगे बढ़ना है, ये परीक्षाएं ही तय करती हैं। बिना परीक्षा के छात्रों को पास करना उनके भविष्य से खिलवाड़ होता। बिना परीक्षा बड़ी कक्षाओं के छात्रों को ‘कोरोना सर्टिफिकेट’ देना भी कोई बेहतर कदम नहीं होता। अभिभावकों को चाहिए कि चार महीने में बच्चों से कुछ ज्यादा अपेक्षा नहीं रखें कि उसके नम्बर ज्यादा आने चाहिएं। उन्हें तो यह समझना होगा कि नम्बर कम आने से जिन्दगी खत्म नहीं होती। उन्हें धैर्य के साथ चार माह में उनकी मनोस्थिति को ठीक रखना होगा ताकि वह पूरी तैयारी कर सकें।
आज अच्छे पोर्टल उपलब्ध हैं। पोर्टल पर अच्छे शिक्षक उपलब्ध हैं। कोरोना काल में उन्होंने जो कुछ सीखा है, उसका इस्तेमाल कर वह परीक्षा की तैयारी कर सकते हैं। कोरोना वायरस की चेन तेजी से टूट रही है। मई तक स्थितियां सामान्य होने की उम्मीद है, फिर भी सतर्कता बरतना जरूरी है। इस समय बच्चों में आत्मविश्वास पैदा करने की जरूरत है, यह काम समाज को करना होगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

3 + 10 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।