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आज का ‘अर्जुन’

भारत के महान ग्रंथ महाभारत में अर्जुन की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है। कुरुक्षेत्र के रणक्षेत्र में कौरवों के साथ युद्ध के समय जब अर्जुन कुछ विचलित हुए तो उनके सारथी बने भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें ही संदेश दिया ​था

भारत के महान ग्रंथ महाभारत में अर्जुन की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है। कुरुक्षेत्र के रणक्षेत्र में कौरवों के साथ युद्ध के समय जब अर्जुन कुछ विचलित हुए तो उनके सारथी बने भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें ही संदेश दिया ​था जो गीता के रूप में अमूल्य धरोहर बन गया। अर्जुन जैसा अचूक निशानेबाज कोई नहीं था। अर्जुन का अर्थ है एकाग्रता, धैर्य और शौर्य। अर्जुन ने तीरों के माध्यम से महाभारत युद्ध में अपने रण कौशल प्रदर्शन का परिचय दिया और अंततः अधर्म पर धर्म की विजय हुई। गर्व की बात है कि भारतीय सेना को अब ऐसा ही ‘अर्जुन’ मिल गया है। ये एक टैंक है जिसे अर्जुन एमबीटी कहा जाता है। एमबीटी का मतलब है मेन बैटल टैंक। अर्जुन टैंक का निशाना भी महाभारत के अर्जुन की तरह अचूक है। टैंक का काम होता है युद्ध के मैदान में रास्ता बनाना। टैंक आगे-आगे चलता है और सेना उसके पीछे-पीछे चलती है। एक अच्छे टैंक का सबसे बड़ा गुण होता है कि वह शत्रु की जमीन को बिना किसी बाधा के लगातार कुचलते जाना। अर्जुन टैंक अब अपनी योग्यता सिद्ध कर चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चेन्नई के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में सबसे पहले युद्धक टैंक अर्जुन काे सलामी देकर इसे सेना प्रमुख एमएम नरवणे को पूरी तरह स्वदेशी रूप से विकसित पहला अर्जुन मार्क-1ए टैंक सौंपा। इसके साथ ही 6600 करोड़ के अर्जुन एमबीटी के अंतिम बैच के उत्पादक के लिए औपचारिक रूप से आदेश देने का रास्ता साफ हो गया है। इस तरह रक्षा उपकरण, डिवाइन, विकास और विनिर्माण में ‘आत्मनिर्भर’ भारत पहल ने एक और प्रमुख मील का पत्थर हासिल कर लिया है। अपग्रेड होने के बाद अर्जुन हर तरह से खतरनाक हो गया है। इसके शामिल होने से भारतीय सेना ने दुनिया की सबसे खतरनाक सेना बनने की तरफ एक कदम और बढ़ा दिया है।
अर्जुन टैंक को लम्बा सफर तय करना पड़ा है। सेना की कसौटी पर खरा उतरने के लिए उसे 35 वर्ष लग गए। इस प्रोजैक्ट की शुरूआत 1972 में की गई ​थी, हालांकि इसका बड़े पैमाने पर निर्माण तमिलनाडु के अवाडी की आर्डिनेंस फैक्ट्री में 1996 में शुरू किया जा सका था। डीआरडीओ के काम्बैट व्हीकल रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट ने इसे डिजाइन किया। अर्जुन टैंक को पहली बार 2004 में भारतीय सेना में शामिल किया गया था। मौजूदा समय में सेना के पास 124 अर्जुन टैंक की दो रेजीमेंट हैं जिन्हें जैसलमेर और भारत-पाकिस्तान की सीमा पर तैनात किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब नवम्बर में सैनिकों के साथ दीपावली मनाने जैसलमेर के लोंगोवाल सीमा पर गए थे तो उन्होंने जिस अर्जुन टैंक की सवारी की थी, उसी का यह उन्नत संस्करण एम के-1ए है।
यह परियोजना 2015 से ही अधर में लटकी हुई थी।  कभी बजट की समस्या तो कभी कुछ और। सेना ने रूस को 464 टी-90 के लिए 14 हजार करोड़ का आर्डर दिया भी था। 2012 में विकसित किए गए अर्जुन मार्क-2 को 2018 में अर्जुन मार्क-1ए का नाम दिया था। सेना ने अर्जुन टैंक में कई खामियां देखी। सेना ने कई तरह के अनुमान हासिल किये। इनके आधार पर इसके उन्नत वर्जन के लिए 72 तरह के सुधारों की मांग की। डीआरडीओ ने सेना के सुझावों को शामिल करते हुए हंटर किलर टैंक तैयार किया। ट्रायल में भी काफी समय लगा। मार्च 2020 में पोखरण में इसके परीक्षण किये गए जिनमें यह पूरी तरह खरा उतरा। सेना ने इस टैंक में भी 14 नए फीचर्स की मांग की थी। इन फीचर्स को शामिल करके डीआरडीओ ने नए टैंक तैयार किये। उन्नत संस्करण अर्जुन मार्क-1ए ने सभी ट्रायल पूरे कर ​लिए जिसके बाद इसको सेना में शामिल करने का फैसला किया गया। इन सभी सुधारों के बाद यह टैंक अपने आप में परिपूर्ण है और दुनिया में कहीं भी यह टैंक अपने लक्ष्य को स्वयं तलाश करने में सक्षम है और स्वयं तेजी से आगे बढ़ते हुए दुश्मन के लगातार हिलने वाले लक्ष्यों पर सटीक प्रहार कर सकता है। टैंक में कमांडर, गनर, लोडर और चालक का क्रू होगा। इन चारों  को यह टैंक युद्ध के दौरान पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करेगा। टैंक की सबसे बड़ी खासियत यह है कि रणक्षेत्र में बिछाई गई माइंस को साफ करते हुए आसानी से आगे बढ़ सकता है। कंधे से फोड़ी जाने वाली एंटी टैंक ग्रेनेड और मिसाइल का इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इसके अलावा कैमिकल अटैक से बचने के लिए इसमें विशेष तरह के सेंसर लगे हैं। कैमिकल पर परमाणु बम हमले की स्थिति में इसमें लगा अलार्म बज उठेगा। अर्जुन में 120 एमएम की राइफल गन है। टैंक में फिट गन में एक बार में 3000 राउंड फायरिंग कर सकती है। ये कभी अपना निशाना नहीं चूकती। रक्षामंत्री राजनाथ​ सिंह बार-बार कहते रहे हैं कि भारत रणनीतिक कौशल के साथ कूटनीतिक कर्णप्रियता पर भरोसा रखने वाला देश है जिससे दूसरे किसी देश के साथ कोई भी ​िववाद हल​ किया जा सकता है। रक्षामंत्री ने अंततः चीन को समझा दिया कि चाहे वह वार्ता की मेज हो या रणभूमि उसकी चालाकी किसी कीमत पर नहीं चलेगी। भारतीय सेनाएं हर परिस्थिति का सामना करने के लिए तैयार हैं। पूर्वी लद्दाख में भारतीय सेना ने रणनीतिक कौशल का परिचय दिया और चीन को अपनी सेनाएं पीछे हटाने को मजबूर होना पड़ा। इससे दुनिया भर में यह प्र​दर्शित हो चुका है कि भारतीय सेना अब काफी शक्तिशाली हो चुकी है। अर्जुन हासिल होने के बाद उसकी ताकत और बढ़ी है। रक्षा मंत्रालय हथियारों के मामले में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए जुटा हुआ है। मैं भारतीय सेना के ​जवानों और शस्त्रों को नमन करता हुआ यही करना चाहता हूं-
जहां शस्त्र बल नहीं 
वहां शास्त्र पछताते और रोते हैं
ऋषियों को भी तप में सिद्धि तभी मिलती है
जब पहरे में स्वयं धनुर्धर राम खड़े होते हैं।

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