लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

ट्रेड वार : बढ़ेगा टकराव

NULL

विश्व के दो शक्तिशाली देश अमेरिका और चीन के बीच शुरू हुई ‘ट्रेड वार’ वास्तव में परेशान कर देने वाली है। पहले अमेरिका ने चीन से आने वाले स्टील और एल्युमीनियम पर आयात शुल्क बढ़ाया और अब चीन ने जवाबी कार्रवाई करते हुए सुअर के मांस आैर वाइन जैसे 128 अमेरिकी उत्पादों के आयात पर शुल्क बढ़ा दिया। अब इन उत्पादों पर 15 से 25 फीसदी शुल्क देना होगा। यह तो लग ही रहा था कि चीन चुप होकर बैठने वाला नहीं है। चीन ने स्पष्ट कर दिया है कि यह कदम अमेरिका द्वारा बढ़ाए गए आयात शुुल्क से हुए नुक्सान को देखते हुए चीन के लाभ और संतुलन के लिहाज से लिया गया है।

चीन ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा की गई कार्रवाई पर जवाबी कार्रवाई कर दी है। 22 मार्च को ही अमेरिका ने कहा था कि वह चीन पर 60 करोड़ डॉलर का आयात शुल्क लगाने की योजना बना रहा है। बौद्धिक सम्पदा चोरी करने का आरोप लगाते हुए अमेरिका ने देश में चीन के​ निवेश को भी सीमित करने की बात कही थी। अमेरिका आैर चीन अब कारोबारी जंग में उलझ गए हैं। पूरी दुनिया अब इस बात का आकलन करने लगी है कि इस जंग में आखिर कौन पिसेगा? डोनाल्ड ट्रंप चीन के साथ ट्रेड डेफिसिट यानी व्यापार घाटे को कम करना चाहते हैं। राष्ट्रपति बनने से पहले भी ट्रंप चीन पर गलत व्यापारिक नीतियां अपनाने का आरोप लगाते रहे हैं।

चीन अमेरिका को भारी मात्रा में सामान बेचता है लेकिन अमेरिका से काफी कम मात्रा में सामान खरीदता है। यह अन्तर 375 अरब अमेरिकी डॉलर के लगभग है। ट्रंप पूरी तरह से संरक्षणवादी नीतियां अपना रहे हैं। जब सरकारें अपने देश के उद्योगों को बढ़ाने के लिए विदेशी सामानों पर कई तरह की पाबंदियां लगाती हैं तो सरकार के इस कदम को संरक्षणवाद कहा जाता है। भारत भी काफी हद तक संरक्षणवादी नीतियां अपनाता रहा है।

ट्रंप का मानना है कि चीनी स्टील और एल्युमीनियम पर टैरिफ लगाने से अमेरिकी कम्पनियां स्थानीय कम्पनियों से ही स्टील खरीदेंगी, इससे स्वदेशी उद्योग को फायदा होगा। नई नौकरियां पैदा होंगी। दोनों देशों की ट्रेड वार कब खत्म होगी, इसका अनुमान तो लगाया नहीं जा सकता लेकिन इससे दोनों देशों समेत दुनिया भर के उपभोक्ताओं को नुक्सान ही होगा। इतिहास गवाह है कि बढ़ा हुआ टैक्स उपभोक्ताओं के लिए सामान की कीमत बढ़ाता है। अमेरिकी अर्थश​ास्त्री भी ट्रंप प्रशासन के इस कदम के खिलाफ थे।

रिपब्लिकन पार्टी भी इस मुद्दे पर ट्रंप के खिलाफ है क्योंकि वह मुक्त व्यापार की समर्थक है। वैश्वीकरण की नीतियां लागू होने के बाद से युद्ध अब सीमाओं पर नहीं बल्कि व्यापारिक मोर्चे पर लड़े जा रहे हैं। पूरी दुनिया एक बाजार बन गई है। बाजार पर वर्चस्व के लिए कई देशों के बीच जंग चल रही है। दुनिया में चीन आज जिस तेजी से आगे बढ़ रहा है, उसकी मिसाल खोजनी मुश्किल है।

अमेरिका, भारत सहित कोई ऐसा देश होगा जहां के बाजारों में चीनी सामान न हो। वैश्वीकरण की नीतियां अलग-अलग देशों की अर्थव्यवस्थाओं के लिए तेजी लाने वाली साबित हुई हैं लेकिन निचले स्तर पर अनेक देशों में पुरानी तकनीक वाली छोटी-छोटी आैद्योगिक इकाइयां घाटे में आ गईं या बन्द हो गईं, जिसका खामियाजा स्थानीय आबादी के कमजोर वर्गों को बेरोजगारी के तौर पर भुगतना पड़ा है। भारत में भी ऐसा ही हुआ है। भारत भी निर्यात कम और आयात ज्यादा कर रहा है। ऐसी स्थिति में भारत किसी भी देश से ट्रेड वार की स्थिति में उलझने की क्षमता में नहीं है।

विश्व के बाजारों का लाभ भारत तभी उठा सकता है जब भारतीय उद्यमी खासकर छोटे उद्यमी और कारीगर कम लागत में गुणवत्ता वाले उत्पाद तैयार करें, वे बाजार के नियमों से परिचित हों और सरकार उनके व्यापार में सहायता करे। भारत में लघु एवं कुटीर उद्योगों का हाल किसी से छिपा हुआ नहीं है। व्यापार के बिना किसी भी देश के विकास की कल्पना नहीं की जा सकती। सभ्यताओं के विकास में भी व्यापार की बड़ी भूमिका रही है। अर्थ​शा​स्त्रियों का मानना है कि अमेरिका द्वारा स्टील और एल्युमीनियम पर शुल्क लगाने का नुक्सान स्वयं अमेरिका को होगा। अमेरिका में इतनी क्षमता नहीं है कि वह अपनी धातु की मांग स्वयं पूरी कर सके।

उसे बड़े पैमाने पर उत्पादन बढ़ाने में कई वर्ष लग जाएंगे। जो स्टील आता है वह भी मित्र देशों से आता है। जहां तक भारत का सवाल है, भारत अमेरिका के शीर्ष व्यापारिक भागीदारों में नहीं आता। व्यापार हिस्सेदारी में हम नौवें पायदान पर हैं। चीन का अमेरिका को निर्यात कम होता है तो वह अपना माल खपाने के लिए बाजार की तलाश करेगा और भारत जैसा बाजार उसे और कहां मिलेगा।

भारत को वैश्विक बाजार की चुनौतियों को गम्भीरता से लेना होगा। हमने बड़े-बड़े संस्थान, विश्वविद्यालय, प्रयोगशालाएं तो स्थापित कर दीं लेकिन हम अंतरिक्ष के क्षेत्र को छोड़ दें तो कोई नया आविष्कार और तकनीक विकसित नहीं कर सके। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्टार्टअप, मेक इन इंडिया आैर कौशल विकास के जरिये स्थिति को बदलने के इच्छुक हैं लेकिन अभी हमें बहुत लम्बा रास्ता तय करना होगा। अमेरिका-चीन ट्रेड वार का असर क्या होगा, इसका पता तो आने वाले दिनों में ही चलेगा लेकिन दो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में ट्रेड वार किसी के लिए भी बेहतर संकेत नहीं। जब अर्थव्यवस्थाएं प्रभावित होती हैं तो राजनीतिक तनाव बढ़ता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

18 − seventeen =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।