सड़कों पर बदहवास होकर वाहनों को दौड़ाने वाले लोग ट्रैफिक नियमों की धज्जियां पूरे देश में भले ही उड़ा रहे हों लेकिन दिल्ली, हरियाणा विशेष रूप से सुर्खियों में हैं। एक स्कूटी सवार का 23 हजार से ज्यादा का चालान हो जाना और उसका अपनी स्कूटी को वहीं छोड़कर चले जाना, गुरुग्राम का यह किस्सा आज सबसे ज्यादा चर्चा में है तो वहीं एक ट्रैक्टर सवार का 59 हजार रुपए का चालान या फिर सिरसा में एक बाइक सवार का 20 हजार रुपए का चालान इत्यादि खबरें अखबारों में रोज प्रमुखता से छापी जा रही हैं। वजह हर कोई जानता है कि पूरे देश में नया मोटर व्हीकल एक्ट लागू हो चुका है।
अंजाम भी हर कोई जानता है कि जो नियम तोड़ेगा उसे भारी जुर्माना देना होगा। सोशल मीडिया पर इस मामले पर तीखी बहस छिड़ गई है और जुर्माने की रकम को लेकर जिस तरह से चीजें वायरल हो रही हैं वो देश की ट्रैफिक व्यवस्था पर भी सवालिया निशान लगा रही हैं। देश के परिवहन मंत्री को इस नये मोटर व्हीकल एक्ट को लेकर बाकायदा सड़क दुर्घटनाओं का हवाला देना पड़ रहा है कि किस प्रकार ट्रैफिक नियमों का पालन न होने पर 5 लाख से ज्यादा लोग एक्सीडेंट का शिकार होते हैं और डेढ़ लाख लोग मौत के मुंह में समा जाते हैं लेकिन हम सोशल मीडिया पर हो रही चीजों के वायरल को लेकर कुछ कहना चाहते हैं। क्या रैड लाइट पर हमारे यहां इतने कैमरे लगे हुए हैं जिससे ट्रैफिक पुलिस कर्मचारियों द्वारा दिए जा रहे एवीडेंस सामने लाए जा सकें।
सड़कों पर जैबरा क्रॉसिंग या लाल बत्ती के मामले में सबकुछ वही सच मान लिया जाएगा जो ट्रैफिक पुलिस वाला कहेगा। क्या उस व्यक्ति के बारे में आप चालान काटने की सही वजह प्रमाण सहित अदालत में प्रस्तुत कर पाएंगे जो बिना सीसीटीवी वाले चौराहे हों। ठीक है कि ट्रैफिक नियमों का पालन होना चाहिये और नियम सख्ती से लागू होते हैं तथा कानून का डर होना भी चाहिए लेकिन एक कानून को लागू करते हुए जमीनी हकीकत का भी ध्यान रखना चाहिए। आप अमरीकी या ब्रिटेन वाला ट्रैफिक सिस्टम उस भारत में ला रहे हैं जहां सड़कें और ट्रैफिक की रफ्तार में तथा इसके मिलेजुले स्वरूप में जमीन-आसमान का फर्क है। इंग्लैंड और अमरीका में एक गांव से लेकर शहर तक और हर महानगर के हर चौराहे पर सीसी टीवी है जहां ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन हाेने पर व्यवस्था अपने आप लागू रहती है और कंट्रोल रूम में बैठे-बैठे नियम तोड़ने वाले का चालान हो जाता है।
हमारे यहां दिल्ली, गुरुग्राम, नोएडा, फरीदाबाद या सोनीपत-पानीपत में नेशनल हाइवे स्थित बाईपास पर क्या सीसी टीवी दिन और रात में सक्रिय रहते हैं। ट्रैफिक पुलिस कर्मचारियों की निगाहबानी में और उनकी सरपरस्ती में कितने कमर्शियल वाहनों को कितने नाकों से गुजार कर नोट कमाए जाते हैं, क्या यह नियमों का उल्लंघन नहीं है। ऐसा उदाहरण देकर हम नये मोटर व्हीकर एक्ट की खिलाफत नहीं करना चाहते लेकिन सोशल मीडिया पर ऐसे ढेरों सवाल उठ रहे हैं और लोग नये कानून के उल्लंघन को लेकर हो रहे चालान और जुर्माने की रािश को लेकर मजे लेने का काम कर रहे हैं तो बताइए कानून के डर की परिभाषा क्या है। कानून के प्रति सम्मान होना चाहिए, कानून का मजाक नहीं उड़ना चाहिए।
ट्रैफिक नियमों का पालन होना चाहिए। हम इसके पक्षधर हैं लेकिन यह भी तो सच है कि सड़कों पर जैबरा क्रॉसिंग या रैड लाइट जम्प को लेकर समुचित सीसी टीवी व्यवस्था न होने से ट्रैफिक पुलिस वाले उस इंस्पैक्ट्री राज को जन्म दे रहे हैं जिसके तहत नियम तोड़ने वालों से गाड़ी जब्त करने की आड़ में मोटे नोट वसूले जाते हैं वहीं सबकुछ अब नये नियम को लागू करने के आवरण तले भारी जुर्माना करके पूरा
किया जा रहा है।
महज चार दिन में ही अकेले हरियाणा में 52 लाख के, उड़ीसा में 88 लाख के चालान काटे गए। दिल्ली में अभी कोई आंकड़ा तैयार नहीं किया गया। सीट बैल्ट, हैलमेट या मोबाइल पर बात करना जैसे अनेकों नियमों का हवाला देकर भारी चालान काट देना या फिर आरसी या डीएल चैक करने साथ-साथ इंश्योरेंस और पोल्यूशन सर्टिफिकेट की मांग एक साथ करना अच्छे खासे गाड़ी चलाने वाले के लिए मुसीबत का एक सबब है और यह काम अकेले वो ट्रैफिक पुलिस वाले कर रहे हैं कि उनकी हर बात को बिना सबूत सच मानकर चालान काट दिया जाए। कश्मीर से लेकर कन्या कुमारी तक चालान काटना अपने आप में देश में चर्चा का विषय बन चुका है।
हमारा मानना है कि ट्रैफिक व्यवस्था को सुचारू करने और हर साल होने वाले एक्सीडेंटों से बचने के लिए कारगर उपाय किए जाने चाहिए तो वह जागरूकता से संभव है। सुप्रीम कोर्ट ने तीन साल पहले हाइवे के आसपास शराब ठेके हटाने की बात कही थी क्योंकि मामला रेवेन्यू से जुड़ा था। पंजाब सरकार से इसे चैलेंज किया और आज हकीकत सबके सामने है।
चौराहों पर उचित सीसी टीवी व्यवस्था होनी चाहिए और सबकुछ कानून की शर्तों के साथ मैच होना चाहिए। सड़कों पर स्कूटर या बाइक पर दो-दो, तीन-तीन लोगों का बिना हैलमेट चलना तथा शराब पीकर व्हीकल चलाना हम इसका कभी समर्थन नहीं करते लेकिन एक निश्चित परीधि में ही कानून का डर दिखाकर कानून लागू किया जाना चाहिए।
तभी बात बनेगी, कई बार कानून की शक्ति लोकतंत्र में निरंकुशता का भाव प्रकट करती है जिससे बचा जाना चाहिए। बदलते वक्त में, बदलते देश में नियम क्रम अनुसार लागू किया जाना चाहिए तो इसे पूरे देश में सामूहिक रूप से स्वीकार किया जाएगा वरना अनेक सामाजिक संगठन और टैक्सी, ट्रक तथा अन्य ट्रांसपोर्ट यूनियन और पब्लिक आक्रामक आवाज उठाने लगे हैं। उम्मीद है इस दिशा में सबकुछ सिस्टम और सरलता से लागू होगा जो कि देश और सरकार दोनों के लिए बेहतर होगा, यह बात भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है।