लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

राजद्रोह और पत्रकारिता

सर्वोच्च न्यायालय ने आज वरिष्ठ पत्रकार के खिलाफ दायर राजद्रोह के मुकदमे को खारिज करते हुए स्पष्ट कर दिया कि मतभेद या मत भिन्नता किसी कीमत पर राजद्रोह की धाराओं के अन्तर्गत नहीं आते हैं।

सर्वोच्च न्यायालय ने आज वरिष्ठ पत्रकार के खिलाफ दायर राजद्रोह के मुकदमे को खारिज करते हुए स्पष्ट कर दिया कि मतभेद या मत भिन्नता किसी कीमत पर राजद्रोह की धाराओं के अन्तर्गत नहीं आते हैं। देश की सबसे बड़ी अदालत की न्यायमूर्ति यू.यू. ललित के नेतृत्व में गठित दो सदस्यीय पीठ ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि 1962 के केदारनाथ सिंह मामले के फैसले की रोशनी में प्रत्येक जायज पत्रकार सुरक्षित है और अपने विचारों की विविधता प्रकट करने के लिए स्वतन्त्र है बशर्ते वह इस फैसले में दिये गये निर्देशों पर खरा उतरता हो। इस फैसले में कहा गया था कि मतभिन्नता या विचारों का विरोधी होना किसी भी रूप में राजद्रोह के दायरे में नहीं आता है। इस फैसले मंे यह भी कहा गया था कि अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता (फ्री स्पीच) व सरकार की आलोचना और स्वतन्त्र प्रेस किसी भी लोकप्रिय सरकार के कायदे व ढंग से काम करने के लिए जरूरी होते हैं जिनमें उसकी कार्यप्रणाली की आलोचना भी शामिल होती है। इससे तीन दिन पूर्व ही सर्वोच्च न्यायालय ने आन्ध्र प्रदेश सरकार द्वारा दो स्थानीय टीवी चैनलों के खिलाफ दायर राजद्रोह के मुकदमों के तहत राज्य पुलिस को सम्बन्धित टीवी पत्रकारों के खिलाफ कोई भी सख्त कार्रवाई करने से रोकते हुए कहा था कि अब समय आ गया है कि न्यायालय का राजद्रोह के बारे में खास कर पत्रकारों के सम्बन्ध में पूरा खुलासा  करते हुए कानूनी स्थिति साफ करनी चाहिए और धुंधलका छांटना चाहिए। 
यह दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्र कहलाने वाले भारत में पिछले कुछ समय से पत्रकारों के खिलाफ राजद्रोह के मुकदमे दायर करने की बाढ़ आयी हुई है और हालत यह हो गई है कि जिस राज्य सरकार की भी किसी मामले में गलती पकड़ी जाती है तो वह दबाव बनाने के लिए अपना काम निष्ठापूर्वक करने वाले पत्रकार के खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा ठोक देती है। आन्ध्र प्रदेश की वाईएसआर कांग्रेस पार्टी की सरकार ने भी ऐसा ही रवैया अपनाया।  इतने पर भी बस नहीं होती तो सत्तारूढ़ पार्टी के नेता पत्रकारों को डराने के लिए एेसे मुकदमे ठोकने में सबसे आगे रहते हैं। सवाल केवल इतना सा समझने वाला होता है कि सच्चा पत्रकार किसी से वैर नहीं रखता और न ही वह किसी राजनीतिक दल का कार्यकर्ता होता है बल्कि वह आम जनता और समाज के सबसे पिछड़े नागरिक का प्रतिनिधि होता है और उसी की तरफ से सत्ता से सवाल उठाता है और सरकार को सचेत करता है कि उसे किस मोर्चे पर होशियार रहना चाहिए। इसी को जिम्मेदार पत्रकारिता कहा जाता है। अक्सर यह कहा जाता है कि राजनीतिक दल और उनकी सरकारें जनता के प्रति जवाबदेह होती हैं और हर पांच साल बाद उन्हें जनता को हिसाब देना पड़ता है मगर पत्रकार किसके प्रति जिम्मेदार होते हैं ?बेशक पत्रकारिता में भी लाख खामियां आ चुकी हैं और अधिसंख्य पत्रकारों को अपने संस्थान के मालिकों के प्रति जवाबदेह होना पड़ता है मगर असल पत्रकार भी केवल जनता के प्रति ही जवाबदेह होता है और जो भी लिखता है या दिखाता है वह लोकहित में ही होता है। हमारे सामने उदाहरणों की लम्बी फेहरिस्त है कि किस प्रकार स्वतन्त्रता से पहले भारत के नहीं बल्कि एक विदेशी वाशिंगटन पोस्ट के पत्रकार ने दुनिया के सामने सबसे पहले यह सत्य उजागर किया था कि महात्मा गांधी किसी नौजवान से भी ज्यादा तेज रफ्तार से चलते हैं। एक पंजाबी पत्रकार ने ही सत्य उजागर किया कि सबसे बड़ा जुल्म गुलामी होती है।
कहने का मतलब यह है कि पत्रकार अंधेरे की नहीं रोशनी की बात करता है और समाज को किसी भी सरकार के कार्यों से रोशन करने का रास्ता भी दिखाता है अतः जब वह आलोचना भी करता है तो उसका प्रतिफल सकारात्मक ही होता है। पत्रकार सरकारी तन्त्र की खामियां की तरफ सत्ता का ध्यान खींचने की कोशिश करते हैं तो उन्हें मुकदमों का सामना करना पड़ता है। लोकतन्त्र में पत्रकार अंधों के शहर में आइना नहीं बेचता बल्कि वह  खुले दिमाग और खुली आंखों वाले सुविज्ञ गुणीजनों के बीच यह जोखिम अपनी विश्वसनीयता को दांव पर लगा कर करता है। समाज से अपनी हिम्मत की दाद चाहता है न कि सजा। उम्मीद की जानी चाहिए कि सर्वोच्च न्यायालय पत्रकारों के खिलाफ राज्य सरकारों की दमनात्मक कार्रवाइयों का संज्ञान लेते हुए कोई ऐसा दिशा-निर्देश जारी करेगा जिससे सत्ता में बैठे लोग आलोचना को अपना अपमान नहीं बल्कि जनहित में किया गया पुण्य कार्य समझेंगे। राजद्रोह व अभिव्यक्ति  की स्वतन्त्रता के कानूनी पक्ष पर उचित समय आने पर तफ्सील से फिर कभी लिखूंगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

2 × two =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।