कोरोना काल में अप्रैल से लेकर अब तक राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में भूकम्प के 29 हल्के झटके आ चुके हैं, जिनमें से 18 का एपिक सैंटर रोहतक, गुड़गांव, फरीदाबाद और आसपास के क्षेत्र रहे। रविवार को गुजरात, लद्दाख और मिजोरम में भी भूकम्प के झटके महसूस किए गए। गुजरात में भूकम्प के पांच झटके आ चुके हैं यद्यपि रविवार को भूकम्प के झटकों की तीव्रता 3.9 थी। इससे पहले गुजरात में 14 जून को 5.3 की तीव्रता वाला भूकम्प का झटका आया था।
गुजरात का कच्छ जिला भूकम्प के मामले में अति संवेदनशील माना जाता है। वर्ष 2001 के भुज भूकम्प में लाखों लोग बेघर हो गए थे और बड़ी संख्या में लोगों की मौत हो गई थी। हाल ही के दिनों में पूर्वोत्तर के असम, मेघालय, मणिपुर और मिजोरम में भी भूकम्प के झटके महसूस किए गए।
जम्मू-कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक धरती कांप रही है, लोग खौफजदा हैं और वे इन झटकों को किसी बड़ी आपदा का संकेत मान रहे हैं। हालांकि वैज्ञानिकों की राय अलग-अलग हो सकती है। प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने के लिए अब यद्यपि तकनीकी और रणनीतिक तरीके ईजाद कर लिए गए हैं। समुद्री तूफान की जानकारी कई दिन पहले मिल जाती है, जिससे सतर्क रहा जा सकता है।
प्रशासन मछुआरों और किसानों को पहले ही सावधान कर देता है, उन्हें सुरक्षित स्थानों पर भेज दिया जाता है। प्राकृतिक आपदाओं पर काबू पाना मनुष्य के लिए बड़ी चुनौती है। अम्फान चक्रवाती तूफान से तटीय क्षेत्रों के लोग तो प्रशासन ने कारगर इंतजाम करके बचा लिए मगर पश्चिम बंगाल में जैसी तबाही मची उससे 70 से ऊपर लोग मारे गए और कई घायल हो गए। अब वज्रपात में बिहार और उत्तर प्रदेश में डेढ़ सौ से ज्यादा जानें जा चुकी हैं।
आसमानी बिजली जहां-जहां भी गिरती है वहां सब कुछ खाक हो जाता है। यह सही है कि वैज्ञानिकों ने तकनीकी सूचनाओं के जरिए भूकम्प संभावित इलाकों को चिन्हित कर लिया है। पृथ्वी के भीतर होने वाली हलचल की आहट भी कुछ पहले मिल जाती है परन्तु भूकम्प से नुक्सान को रोकना संभव नहीं होता।
दिल्ली एनसीआर समेत देश के कई इलाके भूकम्प के हिसाब से काफी संवेदनशील इलाकों में आते हैं। सिस्मिक जोन 5 भूकम्प के लिहाज से देश का सबसे खतरनाक इलाका है। सििस्मक पांच जोन में पूरा नार्थ ईस्ट इलाका, जम्मू-कश्मीर, उत्तरांचल के इलाके, गुजरात का कच्छ, उत्तर बिहार और अंडमान निकोबार द्वीप आते हैं। दिल्ली सिस्मिक जोन चार में आती है और यहां सात से 7.9 तीव्रता वाला भूकम्प आ सकता है। इस जोन में राजधानी दिल्ली, एनसीआर के इलाके, जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के इलाके, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल का उत्तरी इलाका, गुजरात का कुछ हिस्सा और पश्चिम तट से सटा महाराष्ट्र और राजस्थान के इलाके आते हैं।
सििस्मक तीन और सििस्मक दो में भूकम्प की तीव्रता अधिक नहीं होती। इंडियन इंस्टीच्यूट आफ टैक्नोलोजी के अलग-अलग विशेषज्ञ दिल्ली एनसीआर में बड़ा भूकम्प आने की चेतावनी दे चुके हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि हल्के झटकों को चेतावनी की तरह देखा जाना चाहिए। आईआईटी धनबाद के डिपार्टमेंट आफ एप्लाईड जियोफिजिक्स और सीस्मोलॉजी के मुताबिक दिल्ली और एनसीआर में हाई इन्टैसिटी का भूकम्प आ सकता है।
आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञ ने चेतावनी दी है कि दिल्ली-हरिद्वार रिज में खिंचाव के कारण आए दिन धरती हिल रही है। हिमालय पर्वत शृंखला से लगभग 280 से 350 किलोमीटर की दूरी पर स्थित दिल्ली हिमालय की सक्रिय मुख्य सीमा थ्रस्ट से दूर नहीं है जो कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश तक जाती है। आईआईटी कानपुर में सिविल इंजीनियरिंग विभाग के एक प्रोफैसर के अनुसार पिछले 500 वर्षों से गंगा के मैदानी क्षेत्रों में कोई भूकम्प नहीं आया। उत्तराखंड में रामनगर में खुदाई के दौरान 1305 और 1803 में भूकम्प के अवशेष मिले थे।
1885 और 2015 के बीच देश में सात बड़े भूकम्प दर्ज किए गए हैं। इनमें से तीन भूकम्पों की तीव्रता 7.5 से 8.5 के बीच थी। दिल्ली ऐतिहासिक शहर तो है ही लेकिन इसका विकास बेतरतीब हुआ है। अब बाजारों का विस्तार हो चुका है। अब पारंपरिक ढंग से भवन नहीं बनते, बहुमंजिला और कंक्रीट के भवनों को भूकम्प तोड़ते हैं तो बड़ा नुक्सान होता है। दुकानों, मार्डन रेस्तराओं का जाल भी बिछ चुका है।
पुरानी दिल्ली के इलाके तो पहले से ही बेतरतीब ढंग से बसे हुए हैं। संकरी गलियों में पुराने जर्जर मकान इस तरह खड़े हैं कि कोई भी झटका उन्हें गिरा सकता है। भूकम्प जैसी त्रासदी का सामना करने के लिए दिल्ली एनसीआर कितना तैयार है? प्रशासन और लोगों को पहले ही सबक लेना होगा। इन्सानों को अपनी मनमानी पर भी नियंत्रण पाना होगा। इसलिए पहले से ही तैयारी रखनी होगी। वैसे प्रकृति का कुछ पता नहीं, वह किस-किस को हिला दे।
-आदित्य नारायण चोपड़ा