ट्रिपल तलाक और कानून - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

ट्रिपल तलाक और कानून

NULL

तीन तलाक का दंश मुस्लिम महिलाएं दशकों से झेलती आ रही थीं और इस प्रथा से महिलाएं एकाएक बेघर हो जाती रही हैं। विडम्बना यह रही कि जिस तेजी से इस प्रथा का दुरुपयोग बढ़ा, उससे साफ था कि अब इसे समाप्त करने का समय आ गया है और अंतत: गत 22 अगस्त को विभिन्न धर्मों और संप्रदायों से आने वाले पांच न्यायाधीशों की पीठ ने एक साथ तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया था। मुस्लिम महिलाओं और लड़कियों ने इस ऐतिहासिक फैसले पर खुशी में मिठाइयां बांटी थीं क्योंकि इससे मुस्लिम महिलाएं अधिक सशक्त बनेंगी। सुप्रीम कोर्ट के तीन न्यायाधीशों जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस नरीमन और जस्टिस यू.यू. ललित ने बहुमत से ट्रिपल तलाक को गैर-संवैधानिक और मनमाना करार दिया था। तीनों ने ही ट्रिपल तलाक को संविधान का उल्लंघन करार दिया था। इससे पहले तत्कालीन चीफ जस्टिस जे.एस. खेहर ने कहा था कि तीन तलाक धार्मिक प्रक्रिया और भावनाओं से जुड़ा मामला है और इस मुद्दे पर सबसे महत्वपूर्ण पक्ष है संसद और केन्द्र सरकार, उन्हें ही इस पर कानून बनाना चाहिए।

सरकार को कानून बनाकर इस पर एक स्पष्ट दिशा-निर्देश तय करने चाहिएं। जस्टिस खेहर ने अनुच्छेद 142 के तहत 6 माह तक तीन तलाक पर रोक लगा दी थी। मुस्लिम महिलाओं को अन्य धर्मों की महिलाओं के साथ समानता के आधार पर खड़ा करने वाले इस फैसले का प्रगतिशील वर्ग ने खुले दिल से स्वागत किया। न्यायालय केवल तथ्य, संविधान और न्याय के आधार पर चलता है। जो भी संविधान की कसौटी पर खरा नहीं उतरता उसे न्यायालय खारिज कर देता है। यद्यपि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड तथा जमीयत ने न्यायालय के समक्ष कई तर्क रखे जैसे ट्रिपल तलाक बोर्ड का हिस्सा है इसलिए न्यायालय इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता लेकिन न्यायालय ने अपना फैसला दे दिया। न्यायपालिका कानून नहीं बनाती, कानून तो विधायिका ही बनाती है। मुझे हैरानी होती है कि दुनिया के लगभग 22 से अधिक मुस्लिम देश ट्रिपल तलाक पर बैन लगा चुके हैं। इनमें कुछ कट्टरपंथी देश भी शामिल हैं, फिर भारत जैसे बड़े देश में इसे खत्म करने के लिए इतने वर्ष क्यों लग गए। पाकिस्तान ने तो 1961 में ही तीन तलाक पर रोक लगा दी थी।

सन् 1955 में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री मोहम्मद अली बोगरा ने अपनी पहली पत्नी की मर्जी लिए बगैर ही अपनी सचिव से निकाह कर लिया था लेकिन उनकी पत्नी ने इसे चुपचाप सहन नहीं किया बल्कि इसका कड़ा विरोध किया। पाकिस्तान में तीन तलाक के खिलाफ आवाजें उठने लगी थीं। धीरे-धीरे ट्रिपल तलाक के खिलाफ आंदोलन बहुत बड़ा हो गया तो फिर पाकिस्तान ने तलाक के कानून बदले। ट्रिपल तलाक को प्रतिबंधित करने वाला पहला राष्ट्र मिस्र रहा। वहां 1929 में ही कोर्ट ने तीन तलाक को असंवैधानिक करार दे दिया था। इससे पहले 1926 में तुर्की ने स्विस सिविल कोड अपनाया जिसके तहत तुरन्त प्रभाव से हर तरह का धार्मिक कानून अपने आप में बेअसर माना गया। विभिन्न समुदायों के पर्सनल लॉ में सुधारों के सम्बन्ध में मांग उठती रही है। समय-समय पर सुधार भी किए जाते रहे हैं। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कानूनी परिवर्तन के माध्यम से हिन्दू पर्सनल लॉ में कई सुधार किए थे। डा. मनमोहन सिंह सरकार ने अविभाजित हिन्दू परिवार में लैंगिक समानता सम्बन्धी विधायी परिवर्तन किए थे। इसी प्रकार अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने हितधारकों के साथ सक्रिय विचार-विमर्श के बाद लैंगिक समानता लाने के सम्बन्ध में ईसाई समुदाय से संबंधित विवाह एवं तलाक के प्रावधानों में संशोधन किया था। पर्सनल लॉ सुधार एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है।

पुराने और अप्रासंगिक हो चुके कानून भी खत्म किए गए लेकिन मुस्लिम समाज को लेकर राजनीतिक दलों की राय हमेशा अलग-अलग रही। इसके पीछे तुष्टीकरण की नीतियां और वोट बैंक की सियासत ने भी अहम भूमिका निभाई। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सरकार की यह जिम्मेदारी बनती थी कि वह इस पर कानून बनाए और कानून तोडऩे वालों पर आपराधिक मुकद्दमा दर्ज करने का प्रावधान करे, तभी यह प्रथा रुकेगी लेकिन अशिक्षा के कारण मुस्लिम समाज में भी जागरूकता का अभाव है, इसलिए मुस्लिम महिलाओं की स्थिति बदतर होती गई। अब मोदी सरकार ने तीन तलाक को रोकने के लिए कानून बनाने का फैसला किया है और इसका मसौदा भी राज्य सरकारों को भेजा गया है। इसमें एक बार में तीन तलाक देना अवैध माना गया है और इसके लिए पति को तीन वर्षकी कैद भी हो सकती है, यह अपराध गैर जमानती होगा। सरकार की योजना इस विधेयक को संसद के शीतकालीन सत्र में लाने की है। सरकार के इस फैसले को चुनावों से जोड़कर देखना ठीक नहीं होगा। यह तो सरकार का सराहनीय कदम है। सियासत इस पर भी कम नहीं होगी लेकिन इस प्रथा को खत्म करने के लिए मुस्लिम समाज को भी आगे आना होगा। कोई भी प्रथा खत्म करने के लिए समाज का सहयोग बहुत जरूेरी है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

ten − six =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।