पहले कोराेना वायरस और फिर चक्रवती तूफान अम्फान। महामारी और महाविनाश। पश्चिम बंगाल की राजनीति इस स्तर पर पहुंच चुकी है कि अब इन चीजों पर राजनीति की जा रही है और विरोधियों को शह-मात देने के खेल में इन्हें मोहरे की तरह चला जा रहा है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और राज्यपाल जगदीप धनखड़ में जुबानी जंग चल रही है। कटुता इतनी बढ़ चुकी है कि राज्यपाल ने मुख्यमंत्री पर अल्पसंख्यक तुष्टिकरण से लेकर भ्रष्टाचार तक के आरोप लगा दिए हैं।
तूफान के बाद सेना की मदद लेने पर भी कड़वी बयानबाजी हुई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ममता बनर्जी के साथ तूफान प्रभावित इलाकों का दौरा कर तुरन्त राज्य सरकार को एक हजार करोड़ की मदद देने का ऐलान किया था। केन्द्र की टीमें तूफान से हुए नुक्सान का जायजा ले रही हैं। ममता बनर्जी ने तूफान से करोड़ों लोगों के प्रभावित होने की बात कही और केन्द्र से एक लाख करोड़ की सहायता मांगी है। सहायता राशि को लेकर भी सियासत तेज हो चुकी है।
तूफान ने हजारों घरों को तबाह किया। इलैक्ट्रिक पोल उखड़ गए, बिजली आपूर्ति ठप्प हो गई। चक्रवात के चलते तटीय क्षेत्रों में बड़ी संख्या में पेड़ उखड़ गए। निचले क्षेत्रों में पानी भर गया। अब सेना और एनडीआरएफ की टीमों की मदद से आवश्यक सेवाओं को बहाल िकया जा रहा है। सियासत के बीच सेना और एनडीआरएफ टीमें दिन-रात एक किए हुए हैं। राज्य प्रशासन को एक तरफ कोरोना, दूसरी तरफ वापस लौट रहे श्रमिकों और तीसरा तूफान के बाद पैदा हुई स्थितियों से जूझना पड़ रहा है।
तटीय क्षेत्रों के आबादी वाले क्षेत्रों में कीचड़ ही कीचड़ है। लोगों ने अपने घरों की छतों पर पुरानी साड़ियां डाल दी हैं, उन्हें प्लास्टिक की शीट्स भी उपलब्ध नहीं हो रही। सेना और एनडीआरएफ की टीमें बिजली और पानी की सप्लाई बहाल करने में जुटी हुई हैं। नौकाओं से लोगों तक खाद्य सामग्री, दवाइयां पहुंचाई जा रही हैं। पुनर्निर्माण कार्य भी शुरू किये गए हैं। सेना और एनडीआरएफ सच्चे मायनों में देश के धर्मनिरपेक्ष संस्थान हैं।
पड़ोसी देशों के हमले हों या अचानक बादल फटने का कहर और प्रकृति का प्रकोप या विनाशकारी भूकम्प, राष्ट्र को प्राकृतिक आपदाओं या मानव निर्मित आपदाओं से बचाने में सेना और आपदा बल सदा आगे रहे हैं। ईमानदार, देशभक्त, मानवीय तथा बलिदान के लिए तत्पर तैनाती की कला ही भारतीय सेना को दुनिया की एक विशिष्ट सेना का दर्जा देती है। सेना ने हमेशा विविधता में एकता का प्रदर्शन किया है। सेना और एनडीआरएफ की टीमों ने कोलकाता के तूफान प्रभावित इलाकों में जिस ढंग से काम किया है, उसकी सराहना की जानी चाहिए।
24 घंटे में बिजली आपूर्ति बहाल करना आसान नहीं था। लगभग 4.5 लाख बिजली के खम्भे उखड़ गए थे। उत्तरी और दक्षिणी 24 परगना में सुन्दरवन और 7 अन्य जिलों में भयंकर तबाही हुई है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने घरोें के निर्माण में लोगों की मदद करने और उनके बैंक खातों में सीधे धन पहुंचाने के लिए 6,250 करोड़ की धनराशि रिलीज की है। दक्षिणी 24 परगना के सात जिलों में कोरोना का प्रकोप भी बढ़ रहा है। अब तक आधा दर्जन मौतें हो चुकी हैं। गांव के लोगों ने लौट रहे प्रवासी मजदूरों के लिए रास्ते बंद कर दिए हैं। संक्रमित लोगों की संख्या बढ़ रही है। लोगों का कहना है कि वे नहीं चाहते कि कोलकाता और अन्य शहरों से लोग गांवों में लौटें।
लोगों को मनरेगा के तहत सौ दिन के रोजगार के कार्ड बांटे जा रहे हैं, परन्तु लोगों की सबसे बड़ी समस्या बिना छत के घर हैं। जो बांस 150 रुपए में मिलते थे, अब पांच सौ रुपए में मिल रहे हैं, जो एस्वैस्टस शीट 530 रुपए की मिलती थी अब 650 रुपए में मिल रही है। अब पंचायतों के जरिये प्लास्टिक शीट्स भेजी जा रही हैं। खेत पानी में डूबे हैं, पशुओं के लिए चारे का संकट है। अब प्रशासन को पशुओं का चारा भी भेजना पड़ रहा है। प्रवासी श्रमिकों के लिए भी शिविर लगाने पड़ रहे हैं। स्थितियों काे सामान्य बनाना अपने आप में चुनौती है।
दुख इस बात का है कि सभी दल इस संकट की घड़ी में भी वोट तलाश रहे हैं। समय सियासत का नहीं है। केन्द्र सरकार को भी पश्चिम बंगाल की जल्दी से जल्दी और मदद करनी चाहिए क्योंकि नुक्सान बहुत ज्यादा हो चुका है। ममता बनर्जी को भी टकराव की मुद्रा छोड़ पश्चिम बंगाल में जीवन पटरी पर लाने के लिए काम करना चाहिए। उम्मीद की जानी चाहिए कि पश्चिम बंगाल में हालात सामान्य होंगे और कोलकाता में दिनचर्या सामान्य हो जाएगी। पश्चिम बंगाल के लोगों काे खुद सेना और एनडीआरएफ की टीमों के साथ श्रम में हाथ बंटाना चाहिए। राज्य सरकार को भी राहत कार्य पर निगरानी रखनी होगी ताकि राहत जरूरतमदों तक ही पहुंचे, इसमें कोई लूट न हो।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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