भारत और अमेरिका की मित्रता काफी प्रगाढ़ है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रशंसक हैं। दोनों देशों में रक्षा सौदे भी हुए हैं। जब मैं अमेरिका की बात कर रहा हूं तो बिना किसी लाग-लपेट के मैं यह कहना चाहता हूं कि अमेरिका के लिए उसका अपना निजी स्वार्थ छोड़ कर दूसरा कुछ भी नहीं। अमेरिकी खुद को सबसे बुद्धिमान समझते हैं। अमेरिका के चरित्र का जहां तक ताल्लुक है, उसका खुलासा एक बार नहीं कई बार हो चुका है। अमेरिका ने इराक, अफगानिस्तान आैर लीबिया में विध्वंस का खेल खेला आैर उसने दुनिया की एक नहीं सुनीं। जरा-जरा सी बात पर दूसरों के खिलाफ प्रतिबंध लगाने वाले अमेरिका के विरुद्ध कौन प्रतिबंध जारी करता? इसे कहते हैं-समरथ को नाहिं दोष गुसाईं। पूरी दुनिया जानती है कि अमेरिका अगर किसी के लिए कुछ करता है तो उसकी पूरी कीमत वसूलता है। अब ऐसा लग रहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत को दोस्ती के नाम पर ब्लैकमेल कर रहे हैं। इसे इस बात का विश्लेषण भी करना होगा कि भारत- अमेरिका दोस्ती से भारत को क्या मिल रहा है।
हाल ही में रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन भारत के दौरे पर आए थे। इस दौरान दोनों देशों के बीच एस-400 मिसाइल रक्षा सौदे पर समझौता हुआ था। अमेरिका इस सौदे का विरोध कर रहा था। उसने इस सौदे के कारण अमेरिकाज एडवर्सरीज थ्रू सैंक्शन एक्ट के तहत भारत पर प्रतिबंध लगाने की धमकियां भी दीं। कई बार धमकाने के बावजूद उसने अपना स्टैंड बदल लिया। उसने पहले भारत पर ईरान से तेल नहीं खरीदने के लिए भी दबाव बनाया लेकिन भारत ने स्पष्ट रूप से कहा कि वह अपनी जरूरत के मुताबिक ईरान से तेल खरीदता रहेगा। अमेरिका को अब भारत की जरूरत है। जरूरत इसलिए है कि चीन लगातार अमेरिका को नीचा दिखा रहा है। भारत को अमेरिकी सहयोग की जरूरत इसलिए है क्योंकि भारत चीन-पाकिस्तान मैत्री से पीड़ित है।
बदलती वैश्विक परिस्थितियों में भारत-अमेरिका करीब आए हैं। जिस तरह से चीन भारत विरोध की अपनी पुरानी नीति पर कायम है आैर पाकिस्तान से कंधे से कंधा मिलाकर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों और संस्थाओं में विशेष रूप से परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह आैर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थाई सदस्यता का विरोध कर रहा है, उसे देखते हुए भारत को अमेरिका के सहयोग की जरूरत है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि भारत का बाजार बहुत विशाल है और अमेरिका को भारत के बाजार की बहुत जरूरत है। एक तरफ डोनाल्ड ट्रंप सरकार भारत को कभी प्रतिबंध लगाने की धमकी दे रही है, दूसरी तरफ वह भारत सरकार पर दबाव डाल रही है कि अगर प्रतिबंधों से बचना है तो उसे इस बात का भरोसा देना चाहिए कि वह अमेरिका से एफ-16 लड़ाकू विमान खरीदेगा। भारत इस विमान को खरीदने का इच्छुक नहीं है क्योंकि एफ-16 विमान पहले से ही पाकिस्तान के पास है।
भारत ने अब तक इसे खरीदने के लिए अमेरिका को कोई आश्वासन नहीं दिया है। इस मामले पर रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण और अमेरिका के रक्षा मंत्री मैटिस की मुलाकात भी हुई थी। मैटिस सीए एटीएस के तहत भारत को छूट देने के बड़े समर्थक हैं। इस मुद्दे पर उन्होंने अमेरिकी कांग्रेस में बहस भी की थी। इस मामले पर भारत को छूट देने का फैसला अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा लिया जाना है। ट्रंप ने हाल ही में कहा था कि भारत जो सोच रहा है उससे पहले ही उसे जवाब मिल जाएगा। हकीकत यह है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में आने के बाद अमेरिका के उसके सभी दोस्तों के साथ संबंध पहले जैसे नहीं हैं। उसके निकटतम सहयोगी भी किसी न किसी बात पर क्षुब्ध हैं। ट्रंप के अधिकतर फैसले एक तरफा होते हैं और उनके रवैये से ऐसा लगता है कि उन्हें दोस्त या दुश्मन, किसी की भी परवाह नहीं। ट्रंप लगभग शीतयुद्ध की स्थिति ही पैदा कर रहे हैं जब देशों को सोवियत खेमे और अमेरिकी खेमे में से किसी एक को चुनना होना था लेकिन आज रूस का तो कोई खेमा ही नहीं है।
चीन और पाकिस्तान के प्रति ट्रंप प्रशासन का जैसा रुख है, वैसा भारत के अनुकूल रुख पहले किसी भी राष्ट्रपति का नहीं रहा लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि भारत अमेरिका का पिछलग्गू बन जाए। अमेरिका ने भारत के स्टील, एल्युमीनियम पर ड्यूटी बढ़ाई तो भारत ने भी अमेरिकी उत्पादों पर ड्यूटी बढ़ाई। एच-वन वीजा पर भारतीयों को अमेरिका ने कोई ढील नहीं दी। अमेरिका दोस्ती की आड़ में भारत की बाजू मरोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा। अमेरिका का इतिहास भारत जानता है कि उसने किस तरह आतंक की खेती करने वाले पाकिस्तान को अपने डालरों से सींचा है। अमेरिका ने भारत विरोध के चलते पाकिस्तान को क्या नहीं दिया। यह बात अलग है कि अमेरिका पाकिस्तान से अब दूरी बना चुका है लेकिन भारत अमेरिका की बेवजह की शर्तें कैसे मान सकता है। भारत अपने पुराने मित्र रूस को कैसे छोड़ सकता है।