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ट्रंप की एशिया यात्रा का संदेश

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अमेरिका के डोनाल्ड ट्रंप एशिया की यात्रा पर हैं। ट्रंप से पहले 1991 में अमेरिकी राष्ट्रपति पद पर रहते हुए जॉर्ज बुश इतनी लम्बी यात्रा पर एशिया आए थे। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में आने के बाद दुनिया का परिदृष्य बदला है। देशों के समीकरण बदले हैं। अमेरिका को भी इस बात का अहसास हो चुका है कि वह दुनिया में तभी शीर्ष स्थान पर रहेगा जब उसके लिए दुनिया के दरवाजे खुले रहेंगे। किसी भी क्षेत्र की अनदेखी ठीक नहीं। डोनाल्ड ट्रंप का उद्देश्य न केवल अमेरिकी व्यापार को बढ़ाना है, अपने देशवासियों के लिए रोजगार के अवसरों का सृजन करना है और अमेरिकी अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए हरसम्भव उपाय करना है। इसके अलावा ट्रंप का मकसद उत्तर कोरिया पर अंकुश लगाना भी है जिसके लिए वे लगातार चीन पर दबाव बनाए हुए हैं। अमेरिका उत्तर कोरिया में बढ़ते तनाव के कारण ऐसा लगता है कि दुनिया परमाणु युद्ध के कगार पर है।

राष्ट्रपति ट्रंप की एशिया यात्रा शुरू होने से पहले परमाणु बम हमले में सक्षम अमेरिकी अत्याधुनिक बमवर्षकों ने कोरियाई प्रायद्वीप के ऊपर से उड़ान भरी थी, जिसमें जापानी एवं दक्षिण कोरियाई लड़ाकू विमान भी थे। एक तरफ मानवता की रक्षा के लिए परमाणु निरस्त्रीकरण की बात हो रही है, वहीं उत्तर कोरिया तथा महाश​क्तियां हाईड्रोजन बम की ओर अग्रसर हो रही हैं। उत्तर कोरिया का तानाशाह किम जोंग उन लगातार अमेरीकियों को परमाणु हमले की धमकियां देता रहता है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर पागल की तरह व्यवहार करने वाले किम जोंग उन ने हाईड्रोजन बम का इस्तेमाल न्यूयार्क शहर पर कर दिया तो पूरा न्यूयार्क शहर तबाह हो जाएगा और एक भी मनुष्य जीवित नहीं बचेगा, जबकि परमाणु हमले में शहर का केवल एक हिस्सा ही नष्ट होगा। अमेरिका पूरी तरह स्थिति से चिन्तित है आैर ट्रंप जानते हैं कि उत्तर कोरिया पर अंकुश चीन को साथ लिए बिना नहीं लगाया जा सकता। ट्रंप आर्थिक हितों के साथ-साथ उत्तर कोरिया का मसला भी सुलझाना चाहते हैं। ट्रंप को इस दिशा में सफलता भी मिली है। ट्रंप और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग बातचीत के दौरान चीन उत्तर कोरिया के खिलाफ प्रतिबंध बढ़ाने पर सहमत हुआ है। चीन ने उत्तर कोरिया के मुद्दे का शां​ितपूर्ण हल निकालने पर सहमति व्यक्त की है। अमेरिका आैर चीन में 250 अरब डॉलर के समझौते भी हुए।

डोनाल्ड ट्रंप ने सभी देशों से अपील की थी कि उत्तर कोरिया के साथ व्यापार बन्द करे और उसे किसी भी तरह की मदद नहीं करे। ट्रंप ने शी ​​जिनपिंग के साथ पाक के आतंकवाद और अफगानिस्तान मुद्दे पर भी चर्चा की। वार्ता के बाद ट्रंप ने कहा कि आतंकवाद मानवता के लिए खतरा है आैर अमेरिका-चीन मिलकर कट्टरपंथी इस्लामी आतंकवाद को रोकेंगे। अमेरिका आैर चीन में कई मुद्दों पर टकराव के बावजूद ट्रंप का चीन से हाथ मिलाना क्रांतिकारी परिवर्तन है। चीन ही उत्तर कोरिया का बड़ा व्यापारिक साझेदार है और वह उसकी सभी जरूरतें पूरी करता है। ट्रंप जानते हैं कि चीन को साधना बहुत जरूरी है। अमेरिका, चीन और भारत तीनों ही देश आर्थिक रूप से एक-दूसरे के पूरक हैं। अगर चीन और अमेरिका में आपसी समझदार बढ़ी तो यह न सिर्फ इस क्षेत्र के लिए बल्कि दुनिया के लिए अच्छा रहेगा। दुनिया के दो शक्तिशाली मुल्क जब दुनिया के ज्यादातर सवालों पर समझदारी बनाकर काम को तो कई समस्याएं अपने आपमें सुलझ जाएंगी। चीन भी महसूस करता है कि उत्तर कोरिया का परमाणु कार्यक्रम विश्व के लिए खतरनाक है और इसकी पहली परीक्षा उत्तर कोरिया के मामले में होने वाली है। चीन ने जिस भव्य ढंग से डोनाल्ड ट्रंप का स्वागत किया है उसे देखकर तो उत्तर कोरिया भी परेशान हो उठा है। डोनाल्ड ट्रंप भले ही भारत नहीं आए लेकिन चीन के बाद वियतनाम पहुंचते ही उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जमकर तारीफ की। उन्होंने भारत की चौंकाने वाले अभूतपूर्व विकास की तारीफ करते हुए कहा कि नरेन्द्र मोदी देश को एकजुट करने के लिए सफलतापूर्वक काम किया। वियतनाम में एशिया पैसिफिक इकोनामिक सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और ट्रंप में मुलाकात भी होगी। ट्रंप और मोदी की व्यक्तिगत कैमिस्ट्री काफी अच्छी है।

चीन से नजदीकी बनाने के क्रम में ट्रंप एशिया प्रशांत क्षेत्र में अपने मित्र देशों को उनके हाल पर नहीं छोड़ सकते। जापान, वियतनाम, दक्षिण कोरिया और फिलीपींस के साथ रक्षा और अन्य सहयोग बढ़ाना इसी संतुलनकारी प्र​क्रिया का हिस्सा है। ट्रंप सभी मित्र देशों को आश्वस्त करते आ रहे हैं कि अमेरिका दक्षिण चीन सागर में उनके हितों की सुरक्षा करेगा। यद्यपि ट्रंप ने चीन की जमीन पर खड़े होकर उसकी नीतियों की आलोचना भी की। ट्रंप की एशिया यात्रा का साफ संदेश यह है कि एक तरफ उत्तर कोरिया काे शांत बने रहने का संकेत तो दूसरी तरफ चीन के लिए यह संकेत है कि वैश्वीकरण की दुनिया में केवल उसकी हेकड़ी नहीं चलने वाली। ट्रंप का रुख बिल्कुल स्पष्ट है कि यदि चीन उत्तर कोरिया को शांत रखने को सफल नहीं हुआ तो उसके पास सभी विकल्प खुले हैं। अब देखना यह है कि चीन अपने शब्दों पर कितना खरा उतरता है। अगर अमेरिका-चीन सम्बन्ध मधुर रहते हैं तो यह दुनिया के लिए अच्छा ही होगा।

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