ट्रम्प की विजय और भारत

ट्रम्प की विजय और भारत

अब यह निश्चित प्रायः है कि श्री डोनाल्ड ट्रम्प ही अमेरिका के नये राष्ट्रपति की शपथ जनवरी महीने में लेंगे। राष्ट्रपति पद के चुनाव में उनकी विजय कुल 270 चयनक (इलैक्टर) जीतने से सुनिश्चित हो चुकी है
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अब यह निश्चित प्रायः है कि श्री डोनाल्ड ट्रम्प ही अमेरिका के नये राष्ट्रपति की शपथ जनवरी महीने में लेंगे। राष्ट्रपति पद के चुनाव में उनकी विजय कुल 270 चयनक (इलैक्टर) जीतने से सुनिश्चित हो चुकी है क्योंकि अमेरिका के संघीय स्वरूप में पचास राज्यों में कुल 538 चयनकों का चुनाव होना है। श्री ट्रम्प को बहुमत प्राप्त हो चुका है जबकि ये पंक्तियां लिखे जाने तक 44 चयनकों का और परिणाम आना बाकी था। निश्चित रूप से ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने से भारतीय उपमहाद्वीप में अमेरिकी नीति में अन्तर आयेगा। श्री ट्रम्प रिपब्लिकन पार्टी के प्रत्याशी थे जबकि उनके विरुद्ध डेमोक्रेटिक पार्टी की उपराष्ट्रपति श्रीमती कमला हैरिस उम्मीदवार थीं। कमला हैरिस भारतीय मूल की हैं परन्तु अमेरिका की राजनीति में इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। उनकी पार्टी डेमोक्रेटिक पार्टी की नीतियां उदारवादी मानी जाती हैं जबकि रिपब्लिकन पार्टी की राष्ट्रवादी। अतः श्री ट्रम्प का यह नारा कि अमेरिका प्रथम नागरिकों को बहुत भाया और उन्हें अमेरिका के कुल पचास राज्यों में से अधिसंख्य में विजयश्री मिली। जहां तक भारत का सम्बन्ध है तो श्री ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने से दोनों देशों के मध्य सम्बन्धों में और प्रगाढ़ता आयेगी । इसका कारण यह नहीं है कि भारत के प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी की व्यक्तिगत रूप से श्री ट्रम्प से अच्छी दोस्ती है बल्कि असली कारण यह है कि ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी का रुख भारत के प्रति बहुत दोस्ताना है।

रिपब्लिकन पार्टी के शासनकाल में ही भारत के साथ 2008 में एेतिहासिक परमाणु समझौता हुआ था और अधिकारिक रूप से भारत विश्व की छठी परमाणु शक्ति बना था। जहां तक श्री ट्रम्प का व्यक्तिगत रूप से सम्बन्ध है तो भारतीय उपमहाद्वीप में उनकी नीति भारत के प्रति बहुत मित्रतापूर्ण रही है और उन्होंने अपने पिछले कार्यकाल 2016 से 2020 में पाकिस्तान को सबक सिखाने काम भी किया था। इतना ही नहीं ट्रम्प चीन के प्रति भी बहुत कड़ा रवैया रखते हैं जिसका परोक्ष लाभ भारत को मिलता रहा है। यह सर्वविदित है कि ट्रम्प के शासनकाल के अन्तिम वर्ष में ही अमेरिका ने अफगानिस्तान से अपनी फौजें वापस बुलाने का फैसला किया था। इस मायने में भारतीय सन्दर्भों में ट्रम्प को सख्त नीतियां रखने वाला नेता माना जा सकता है विशेष कर पाकिस्तान के बारे में उनके विचार बहुत खुले रहे हैं क्योंकि 2017 में उन्होंने स्पष्ट किया था कि अमेरिका ने पाकिस्तान को तब तक 55 अरब डालर की मदद आतंकवाद को समाप्त करने की गरज से दी थी। परन्तु ट्रम्प ने दो टूक तरीके से कहा कि पाकिस्तान ने इसका उपयोग लक्ष्य प्राप्ति के लिए नहीं किया। एक प्रकार से यह ट्रम्प सरकार की पाकिस्तान को चेतावनी थी क्योंकि अपने जन्म के दो-तीन साल बाद से ही पाकिस्तान अमेरिका की गोदी में जाकर बैठ गया था और वहां के हर पार्टी के राष्ट्रपति ने उसे वित्तीय व फौजी मदद देने में कोई कमी नहीं रखी थी लेकिन श्री ट्रम्प एेसे समय में अमेरिका के राष्ट्रपति बन रहे हैं जब विश्व की राजनीति में कोहराम मचा हुआ है।

एक तरफ फलस्तीन व इजराइल युद्ध में लिपटे हुए हैं तो दूसरी तरफ रूस व यूक्रेन में लड़ाई चल रही है। जाहिर तौर पर ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी की नीति पश्चिम एशिया के बारे में इजराइल समर्थन की है। श्री ट्रम्प अपने चुनाव प्रचार के दौरान कह चुके हैं कि यदि वह राष्ट्रपति होते तो विश्व की परिस्थितियां एेसी न होतीं। वह पश्चिम एशिया व रूस के क्षेत्रों में युद्ध नहीं होने देते। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि यदि वह राष्ट्रपति बने तो युद्ध रोक देंगे। इस मामले में उनकी नीति इजराइल को पुरजोर समर्थन देने की व रूस को उसकी हदों में रखने की होगी। अतः भारत की नीति से उनका टकराव हो सकता है क्योंकि भारत की रूस के साथ सच्ची मित्रता है और फिलस्तीन के मामले में भारत का रुख उसके एक संप्रभु देश होने के हक में है। मगर चीन को लेकर भी श्री ट्रम्प का रुख बहुत कड़ा रहा है और वह चीनी माल पर 60 प्रतिशत का आयात शुल्क लगाने के हक में हैं जिससे अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव न पड़ सके। यह उनकी अमेरिका प्रथम नीति का ही एक अंग है।

ट्रम्प के एजेंडे में चीन के बढ़ते प्रभाव को सीमित करना स्वाभाविक रूप से समाहित है क्योंकि यह ​रिपब्लिक पार्टी का एजेंडा है। इस मामले में हिन्द महासागर-प्रशान्त क्षेत्र में भारत-आॅस्ट्रेलिया- अमेरिका व जापान के बीच बने क्वाड सहयोग चक्र को मजबूत करना ट्रम्प का लक्ष्य रहेगा क्योंकि अमेरिका चीन को केवल व्यापार क्षेत्र में ही आर-पार नहीं लेना चाहता बल्कि सामरिक क्षेत्र में भी उसकी पकड़ सीमित कर देना चाहता है। यह पक्ष भारत के हक में जाता है क्योंकि चीन किसी न किसी बहाने से भारत को अपने दबाव में लेने के प्रयत्न करता रहता है। पूर्वी लद्दाख सीमा पर चीनी सेनाओं द्वारा जून 2020 में किया गया अतिक्रमण अकारण नहीं था।

भारत इस बात को भली भांति समझता है कि अमेरिका के साथ उसके गहरे होते रिश्ते चीन को कहीं न कहीं चिढ़ाते हैं और चीन दूसरे मोर्चों पर जाकर अपनी खीझ उतारता है। ट्रम्प के आने से इन परिस्थितियों में अन्तर आ सकता है। इस मामले में प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी व डोनाल्ड ट्रम्प की व्यक्तिगत दोस्ती की विशेष महत्ता रहेगी। वैसे ट्रम्प के अनुसार अमेरिका उनकी नजर में सर्वदा प्रथम रहेगा अतः भारत को उनकी आव्रजक नीतियों से ज्यादा अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए। वह अमेरिका की आव्रजन नीति को और अधिक सख्त बनायेंगे इसमें किसी को सन्देह नहीं होना चाहिए। राष्ट्रपति चुनाव में अमेरिकी आव्रजन नीति भी एक प्रमुख मुद्दा थी। जनवरी महीने तक अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति श्री जो बाइडेन शोभा की वस्तु की तरह ही रहेंगे क्योंकि श्री ट्रम्प अब चयनित राष्ट्रपति (प्रेजीडेंट इलेक्ट) कहलायेंगे। अतः बाइडेन अब कोई नीतिगत निर्णय नहीं कर पायेंगे।

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