लोकतन्त्र में वैध सूचनाओं के प्रसार और पारदर्शिता का महत्व इतना अधिक होता है कि यह स्वयं सत्ता पर काबिज राजनीतिक दल की सरकार को सत्य की तह तक जाने में मदद करता है। दूसरे सर्वाधिक महत्वपूर्ण यह होता है कि इस व्यवस्था में पुलिस और प्रशासन परोक्ष रूप से आम जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं। यह बेवजह नहीं है कि जनता द्वारा चुने गये प्रतिनिधि के मन्त्री बनने पर बड़ा से बड़ा सरकारी अफसर उसे सलामी देता है। प्रत्यक्षतः यह सलामी उस लोकशक्ति को होती है जिसकी वजह से जनप्रतिनिधि सरकार में शामिल होता है, इसी व्यवस्था में चुने हुए सदनों में अल्पमत में पहुंचे जन प्रतिनिधियों का चुनाव भी आम जनता या लोकशक्ति द्वारा ही होता है। अतः लोकतन्त्र में विपक्ष के नेताओं की भी बराबर की हिस्सेदारी होती है। यही वजह है कि मतदाताओं के बहुमत से चुनी गई सरकार को हम ‘जनता की सरकार’ कहते हैं।
उत्तर प्रदेश के हाथरस शहर के निकट बुलगढ़ी गांव में जो कुछ भी हो रहा है उसे हम केवल लोकतन्त्र की इसी कसौटी पर कस कर देखेंगे। इस गांव की 19 वर्षीय बाल्मीकि युवती के साथ विगत 14 सितम्बर को जिस प्रकार सामूहिक बलात्कार हुआ और जिन बर्बर परिस्थितियों में उसकी मृत्यु हुई उसका सम्बन्ध हिन्दू समाज में फैली जाति-बिरादरी प्रथा से न होकर समाज के स्वयं को अधिकार सम्पन्न समझने वाले वर्ग और विपन्नता में जीवन जीने वाले वर्ग से है। इसी सामाजिक गैर बराबरी को दूर करने के लिए बाबा साहेब अम्बेडकर ने भारत का संविधान बनाते समय प्रत्येक भारतीय नागरिक को एक वोट का अधिकार देकर उसे राजनीतिक सम्पन्नता प्रदान की थी जिससे वह अपनी मन पसन्द की सरकार का चुनाव पांच वर्ष के लिए कर सके मगर इसके साथ ताईद भी की थी कि आर्थिक असमानता समाप्त किये बिना यह राजनीतिक स्वतन्त्रता कारगर नहीं हो सकती। बाबा साहेब की यह चेतावनी हमें अपने एक वोट के अधिकार का प्रयोग दिमाग खोल कर करने के प्रति सावधान भी करती है। अतः जब भी भारत में दलितों पर कहीं भी अत्याचार होता है तो समूची समाज व्यवस्था की मानसिकता कठघरे में खड़ी हो जाती है और राजनीतिक बवाल उठने लगता है।
यह बहुत स्वाभाविक प्रक्रिया है क्योंकि लोकतन्त्र सामाजिक संरचना की छाया से हमेशा प्रभावित रहता है। अतः दलित अत्याचार का सम्बन्ध राजनीति से जोड़ना मूर्खता है क्योंकि संसदीय लोकतन्त्र की बुनियाद सामाजिक न्याय पर ही खड़ी करने का लक्ष्य महात्मा गांधी स्वतन्त्रता आन्दोलन से लेकर चले थे। न्याय का सीधा सम्बन्ध हमारे संविधान से जाकर जुड़ता है जिसमें सभी को बराबर अधिकार दिये गये थे। संविधान में आरक्षण की व्यवस्था की गई जिसके तहत बाल्मीकि समाज के पढ़े-लिखे युवक-युवतियां भी उच्च पदों तक पहुंचने में सफल रहे हैं।
राज्य के योगी प्रशासन ने हाथरस के पुलिस कप्तान सहित कई अन्य पुलिस कर्मियों को मुअत्तल करके स्वीकार कर लिया है कि पूरे मामले से निपटने में उससे चूक हुई है। अतः योगी सरकार को अपनी ही पार्टी की नेता सुश्री उमा भारती की सलाह माननी चाहिए थी और बुलगढ़ी के रास्ते सभी राजनीतिक दलों के लिए खोल देने चाहिएं जिससे पीड़िता के परिवार द्वारा दी जा रही सूचनाएं सार्वजनिक हो सकें। अंततः मामले में आज जिस तरह से मीडिया और कांग्रेस नेता श्री राहुल गांधी व प्रियंका गांधी को हाथरस जाकर परिवार से मिलने की इजाजत दी गई है। पीड़िता के परिवार को यह आभास होना ही चाहिए कि वह स्वतन्त्र भारत में जी रहा है। वरना जिस तरह बुलगढ़ी गांव को दो दिन से ज्यादा समय तक स्थानीय प्रशासन ने मीडिया व अन्य लोगों से काट कर रखा और उनके फोन तक ले लिये उससे यही सन्देश जा रहा था कि सरकार दिवंगत युवती से जुड़े कुछ तथ्य छिपाना चाहती है। यह तो स्वयं में जगजाहिर ही है कि अर्ध रात्रि के बाद पुलिस ने उसका अन्तिम संस्कार जबरन परिवार वालों की मर्जी के बिना कराया जिसका संज्ञान इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी लिया है।
गौर से देखा जाये तो इसके बाद ही हाथरस के पुलिस कप्तान को निलम्बित किया गया मगर उस जिलाधीश का क्या होगा जो पीड़िता के घर पहुंच कर परिवार को धमका रहा था? पूरे मामले में एक तथ्य शीशे की तरह साफ है कि यह सब इसीलिए हुआ क्योंकि पीड़िता समाज के सबसे कमजोर और विपन्न वर्ग से सम्बन्ध रखती थी। जबकि हमारा संविधान उसे बराबर के अधिकार देता है। लोकतन्त्र में कमजोर के लिए आवाज उठाने का पहला दायित्व विपक्ष का ही होता है जिससे सरकार जनाधिकारों की रक्षा मुस्तैदी से कर सके। इस मामले में मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ की इस घोषणा को भी विपक्ष को गंभीरता से लेना चाहिए कि दोषियों को अनुकरणीय सजा मिलेगी।