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भारत-सऊदी अरब रिश्तों का सच

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पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ भारत को एक बड़ी कूटनीतिक सफलता मिली जब सऊदी अरब के शहजादे मोहम्मद बिन सलमान ने आतंकवाद के मुद्दे पर भारत के साथ एकजुटता दिखाई। दोनों देशों ने आतंक को बढ़ावा देने वाले मुल्कों पर दबाव बनाने पर सहमति जताई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मोहम्मद बिन सलमान के संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में सऊदी शहजादे ने पुलवामा हमले का जिक्र नहीं किया था तो मीडिया ने तुरन्त भारत-सऊदी अरब सम्बन्धों का विश्लेषण शुरू कर दिया था।

अलग-अलग प्रतिक्रियाएं सामने आ रही थीं लेकिन देर रात जारी संयुक्त बयान में दोनों पक्षों की ओर से पुलवामा हमले की कड़ी निन्दा की गई और पाकिस्तान का परोक्ष रूप से जिक्र करते हुए कहा गया कि आतंकवाद को समर्थन किसी भी देश की नीति नहीं होनी चा​हिए। आतंकियों को हथियार या अन्य मदद नहीं दी जानी चाहिए।

सऊदी अरब के विदेश मंत्री अदेल बिन अहमद अल जुबेर ने भी स्पष्ट कर दिया कि सऊदी अरब अजहर मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित करने के प्रस्ताव का विरोध नहीं करेगा आैर न ही उनका देश भारत-पाकिस्तान विवाद में पड़ेगा। आतंकवाद के खिलाफ भारत को वैश्विक शक्तियों का समर्थन पहले ही काफी मिल चुका है। सऊदी शहजादे के भारत दौरे पर कूटनीतिक क्षेत्रों की पैनी नजर थी क्योंकि वह पाकिस्तान दौरे के बाद भारत पहुंचे थे।

मोहम्मद बिन सलमान इन दिनों काफी दबाव में हैं क्योंकि पत्रकार खशोगी हत्याकांड के बाद उन पर सीधी अंगुलियां उठ रही हैं। सीधे-सीधे पुलवामा का जिक्र न करना उनकी मजबूरी भी है। पाकिस्तान से सऊदी अरब के सम्बन्ध काफी नजदीकी के हैं। दरअसल इस्लामिक कॉन्फ्रेंस आर्गेनाइजेशन में पाकिस्तान के कश्मीर से जुड़े प्रस्ताव का सऊदी अरब और खाड़ी के दूसरे देश हमेशा समर्थन करते रहे हैं। इसके अलावा अफगानिस्तान और तालिबान को लेकर भी भारत और सऊदी अरब के बीच मतभेद हैं।

पाकिस्तान के अलावा सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ऐसे देश हैं जिन्होंने तालिबान को सत्ता में आने पर उसे मान्यता दी थी और उसकी मदद भी की थी। दरअसल सऊदी अरब और भारत में शासन पद्धति में जमीन-आसमान का अन्तर है। भारत में लोकतंत्र है, वहीं सऊदी अरब में इस्लामिक हुकूमत। वहां एक कट्टरपंथी शासन है और वो हुकूमत कट्टरपंथी ताकतों को प्रोत्साहित भी करती है। इन बातों को लेकर भारत कुछ असहज भी रहता है लेकिन इसके बावजूद भारत-सऊदी अरब के रिश्ते काफी अच्छे हैं।

व्यापारिक सम्बन्ध लगातार मजबूत हो रहे हैं। 27 लाख से भी ज्यादा भारतीय सऊदी अरब में काम करते हैं। 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और 2016 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सऊदी अरब दौरे से दोनों देशों के बीच सामरिक भागीदारी अच्छे स्तर पर पहुंची है। सऊदी अरब के पाकिस्तान से नजदीकी रिश्तों का एक कारण ईरान भी है। दोनों देशों के सम्बन्ध ठीक नहीं हैं। सऊदी अरब की सेना काफी कमजोर है। सुरक्षा के लिए उसे अमेरिका की गारंटी मिली हुई है।

पाकिस्तान सऊदी अरब के शाही परिवार की रक्षा करता है। पाक के सैनिक वहां तैनात रहते हैं। पाकिस्तानी सैनिक उन इलाकों में बड़ी संख्या में तैनात हैं जहां शिया समुदाय के लोग ज्यादा रहते हैं। सऊदी अरब को लगता है कि भविष्य में अगर ईरान से टकराव की स्थिति बनती है तो पाकिस्तान से उसे बड़ी मदद मिलेेगी। पाकिस्तान और चीन मिलकर डिफेंस प्रोटेक्शन की बात कर रहे हैं। पाकिस्तान में लगाए जाने वाले चीनी असेम्बली प्लांट से सऊदी अरब हथियार खरीदेगा इसलिए पाकिस्तान सऊदी अरब के लिए काफी महत्वपूर्ण है।

मौजूदा दौर में भारत और ईरान के सम्बन्ध काफी बेहतर हैं। ईरान भारत के लिए मध्य एशिया का गेटवे है। भारत के कतर और संयुक्त अरब अमीरात के बीच राजनीतिक, आर्थिक और रणनीतिक सम्बन्ध हैं। भारत के फलस्तीन के साथ-साथ इस्राइल से भी काफी अच्छे सम्बन्ध हैं। इन तमाम बातों के बावजूद सऊदी अरब भारत को नजरंदाज नहीं कर सकता। भारत की अर्थव्यवस्था इतनी बड़ी हो चुकी है कि उससे अलग होना किसी भी देश के लिए नुक्सानदेह साबित हो सकता है।

भारत 20 फीसदी तेल सऊदी अरब से खरीदता है। भारत उसके लिए बड़ा बाजार है। 2017-18 में भारत ने सबसे अधिक कच्चा तेल सऊदी अरब से ही खरीदा जबकि पहले भारत को कच्चा तेल देने के मामले में ईरान का पहला स्थान था। इसके अलावा भारत हाइड्रोकार्बन, एथिलीन पॉलिमर, अल्युमीनियम स्क्रैप, कॉपर स्क्रैप, कंज्यूमर प्रोडक्ट्स, ज्वैलरी, डेयरी प्रोडक्ट्स खरीदता है। सऊदी अरब को भारत से आमदनी होती है तो भारत के लाखों लोग वहां से कमाकर अपने घरों को धन भेजते हैं।

सऊदी अरब के शहजादे मोहम्मद बिन सलमान ने भारत-पाक सम्बन्धों में संतुलन कायम करने की कोशिश की है। भारत आैर सऊदी अरब में पांच समझौते भी हुए हैं। मोहम्मद बिन सलमान अपने देश को एक आधुनिक देश बनाने में लगे हुए हैं। उम्मीद है कि वह पाकिस्तान से आतंकवाद को काबू पाने को कहेंगे। अगर सऊदी अरब आतंक के खिलाफ अपनी भूमिका निभाएगा तो भारत-पाक में शांति भी कायम हो सकती है अन्यथा टकराव तो तय है ही।

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