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‘हादसे’ को ‘अवसर’ में बदल डालो

मोदी सरकार द्वारा लाॅकडाऊन की वजह से लड़खड़ाई अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए 20 लाख करोड़ रुपए का जो आर्थिक पैकेज घोषित किया गया है

मोदी सरकार द्वारा लाॅकडाऊन की वजह से लड़खड़ाई अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए 20 लाख करोड़ रुपए का जो आर्थिक पैकेज घोषित किया गया है उसमें से 8 लाख करोड़ रुपए पहले ही रोकड़ा की सुलभता बढ़ाने के लिए रिजर्व बैंक के माध्यम से अर्थ तन्त्र में आ चुका है इसके साथ ही एक लाख 70 हजार करोड़ रुपए का पैकेज सरकार ने लाॅकडाऊन के पहले चरण में घोषित किया था। इस तरह लगभग दस लाख करोड़ रुपए इस 20 लाख करोड़ के पैकेज में समाहित है।
 आज वित्तमन्त्री निर्मला सीतारमन ने इस पैकेज का खुलासा लघु व मध्यम उद्योग क्षेत्र को विभिन्न राहत देने के साथ जिस प्रकार किया है उसका लक्ष्य भारतीय बाजारों को घरेलू माल से पाट कर इसे अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में मूल्य गत प्रतियोगी बनाने का है। यह आत्मनिर्भरता के उस मूल मन्त्र को पूरा करने के लिए है जो प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार को पैकेज की नीतिगत घोषणा करते समय दिया था। इसका उद्देश्य यह भी है कि 17 मई के बाद लाॅकडाऊन का चौथा चरण शुरू होने के साथ भारत आर्थिक मोर्चे पर उठ कर चलने लगे और कोरोना से डरे बिना अपनी पुरानी दिनचर्या पर लौटे।
 गौर से देखा जाये तो चीनी माल से लदे भारतीय बाजारों को अब घरेलू माल से लादने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। 20 लाख करोड़ रुपए का पैकेज परोक्ष रूप से चीनी माल के चंगुल से छुटकारा पाने का संघर्ष भी है। देखने में यह पैकेज भारत के कुल बजट का 75 प्रतिशत लगता है परन्तु इसमें सबसे बड़ी भूमिका बैंकों की है जो विविध रूपों में भारतीय उद्योग जगत का नीचे से लेकर ऊपर तक वित्तपोषण करेंगे और औद्योगिक गतिविधियों को अंजाम देंगे। गारंटी सरकार की होगी। आर्थिक पैकेज में सरकारी गारंटी का हिस्सा बहुत बड़ा होगा जिसमें खजाने से रोकड़ा नहीं जायेगी रोकड़ा बैंकों से जायेगा। मगर भारत की अर्थव्यवस्था को पटरी पर डालने के लिए यह कारगर औजार होगा जिससे उत्पादन से लेकर व्यापार व वाणिज्य में रौनक लौटेगी। 
इस पैकेज से उद्योग जगत की लाभप्रदता में वृद्धि का रास्ता लागत मूल्य में कमी से खुलेगा और कर्मचारियों को वेतन देने में उसका हाथ खुलेगा तथा कार्यशील पूंजी की उसे दिक्कत नहीं आयेगी।  साथ ही ऋणों के ब्याज आदि भुगतान में उसे सहूलियत होगी और उत्पादनस्थल पर कार्यरत कर्मियों के बीच भौतिक दूरी बनाये रखने की कीमत चुकाने में उसे मदद मिलेगी। कुल मिलाकर निर्मला सीतारमन द्वारा किये गये आज खुलासे से देश में रोजगार के अवसर बढ़ाने में मदद मिलेगी, परन्तु यह तस्वीर का एक पहलू है। दूसरा पहलू यह है कि लाॅकडाऊन ने जिस तरह भारत में ‘सप्लाई चेन’ को तोड़ डाला है उसे पुनः जोड़ने में अधिक समय गंवाना आत्मघाती होगा।  इसी वजह से प्रधानमन्त्री ने सप्लाई चेन पर काफी जोर देते हुए कहा है कि इसे अन्तर्राष्ट्रीय सिरों से जोड़ कर हमें अपने पैरों पर फिर से खड़ा होना होगा और स्थानीय माल को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करना होगा।
 श्री मोदी का यह कहना कि ‘लोकल पर वोकल’ होना होगा बताता है कि सस्ते चीनी माल का मोह छोड़ कर घरेलू क्षेत्र में बने माल को प्रतियोगी बनाते हुए चीन से प्रतियोगिता करनी होगी।  एक बात और समझने वाली है कि यह सब केवल हवाबाजी से नहीं हो सकता इसके लिए ‘प्रौद्योगिकी मूलक’ उत्पादन शृंखला का निर्माण करना होगा जिससे हमारा घरेलू उद्योग प्रतियोगी बन सके। सप्लाई चेन को गांवों से जोड़ कर बन्दरगाहों तक तैयार करके रोजगार के एेसे अवसर सृजित किये जा सकते हैं जिसमें स्थानीय स्तर पर युवाओं को अाधिकाधिक नौकरियां मिलें। यह काम आसान नहीं है क्योंकि अभी तो लाॅकडाऊन के दिये हुए उन जख्मों को सबसे पहले भरना है जो उसने हमारे मजदूरों और कामगारों को दिये हैं। इसका शहरों से गांवों की ओर उल्टा पलायन विकास की सारी गति को उल्टा घुमा रहा है और हमें चेतावनी दे रहा है कि उद्योगों का पहिया घुमाने वाले इन साहसी लोगों की फौज निराशा के दौर से गुजर रही है। अतः इनमें साहस का संचार करना सरकार का पहला कर्त्तव्य बनता है। 20 लाख करोड़ रुपए के पैकेज में से मोटे तौर पर चार लाख 20 हजार करोड़ रुपये की धनराशि ही चालू वित्त वर्ष में केन्द्र सरकार के खजाने से जायेगी क्योंकि केवल एक सप्ताह पहले ही इसने चालू वर्ष के बजट में बाजार से लिये जाने वाले ऋणों की धनराशि 7.8 लाख करोड़ से बढ़ाकर 12 लाख करोड़ रुपये की है, परन्तु जाहिर तौर पर इतना नकद रोकड़ा यदि विभिन्न मदद स्कीमों के माध्यम से सरकार गरीबों व जरूरतमन्द वंचितों में बांटती है तो बाजार की अर्थव्यवस्था पर उसका जबर्दस्त असर पड़ेगा और घरेलू मांग में तूफानी वृद्धि होगी। हो सकता है इससे महंगाई थोड़ी बढे़ मगर निकास वृद्धि की दर भी तेज होगी। अभी देखना यह है कि निर्मला सीतारमन इस वर्ग को रियायतों को खुलासा किस तरह करती हैं। मगर मोदी ने यह मन्त्र दे दिया है कि ‘हादसे को अवसर में बदल दो’  लाॅकडाऊन के बाद के भारत को इसे अवसर में बदलने के लिए श्रम शक्ति की आवश्यकता होगी और यह शक्ति अब गांवों में जाकर अपनी हैसियत तोल रही है अतः इसे जागृत किये बिना हम अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सकते। कोरोना पर हो रही सियासत को दरकिनार करते हुए शायर ‘मजाज’ का यह शेर हमें याद रखना है और अपने रास्ते पर आगे बढ़ते जाना है।

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