वैसे तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 8 नवम्बर 2016 की रात नोटबंदी की घोषणा किए जाने के बाद पहले ही दिन बैंक अधिकारियों की मिलीभगत से दलाली लेकर नोट बदलने का सिलसिला शुरू हो गया था मगर आम आदमी, छोटे दुकानदार, रेहड़ी-पटरी वाले और नौकरीपेशा लोग घंटों हर रोज लाइनों में खड़े रहे थे। समाज के प्रभावशाली और धनी वर्ग ने तो कमीशन देकर नोट बदलवा लिए लेकिन अनेक लोगों ने पंक्ति में खड़े-खड़े दम तोड़ दिया। नोट बदलने के लिए अारबीआई ने तीन मार्ग दिए थे। इसके तहत 31 मार्च 2017 तक अप्रवासी भारतीय नोट जमा कर सकते थे। दूसरा रास्ता नोटबंदी की अवधि में विदेश प्रवास पर रहने वाले भारतीयों के लिए था और वह 30 जून 2017 तक पुरानी करेंसी भारतीय रिजर्व बैंक के जरिये अपने खाते में जमा कर सकते थे। तीसरा रास्ता 21 जून 2017 को खोला गया। इसमें सरकारी बैंकों के पुराने नोट जमा करने के लिए 20 जुलाई 2017 तक का समय दिया गया था। यानी इन तीन रास्तों की समय-सीमा कब की खत्म हो चुकी है।
बैंक में जमा नोट की डिटेल रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया भारत सरकार के पास पहुंचा चुका है। ऐसे में पुराने नोट जमा ही नहीं हो सकते। इन नोटों को बदलवाने का कोई रास्ता नहीं हो सकता फिर इन नोटों को कैसे बदला जा सकता है। अगर बदला भी जा रहा है तो फिर इसे कौन बदल रहा है। कानपुर में बिल्डर के घर से मिली लगभग एक करोड़ की पुरानी करेंसी और उसके बाद अलीगढ़ के एक होटल मेें छापेमारी में 50 लाख की पुरानी करेंसी की बरामदगी के बाद लोग सवाल कर रहे हैं कि आखिर नोट कौन बदल रहा है? जांच एजेंसियां भी इस सवाल का उत्तर तलाश रही हैं कि आखिर यह सब कैसे हो रहा है। कानपुर में तो बिल्डर पुराने नोटों का बिस्तर बनाकर सोता था। बरामदगी के बाद पुलिस वाले तो हैरान ही रह गए आैर नोट गिनते-गिनते उन्हें सवेर ही हो गई थी। वैसे तो नोटबंदी के बाद पुराने नोटों की बरामदगी होती रही है लेकिन इतनी बड़ी संख्या में पुराने नोटों की बरामदगी का होना काफी आश्चर्यजनक है। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश की मेरठ पुलिस ने एक बिल्डर के कार्यालय पर छापा मारकर 25 करोड़ की एक हजार और पांच सौ रुपए की प्रतिबंधित करेंसी बरामद की थी और चार लोगों को गिरफ्तार किया था। इनमें से एक व्यक्ति दिल्ली की एक कम्पनी में काम करता है जो नोट बदलवाने के धंधे में लगी थी। इसके बाद से एनआईए को जानकारी मिली थी कि उत्तर प्रदेश में कानपुर समेत कई जिलों में मनीचेंजर गिरोह सक्रिय है, जो औने-पौने दाम पर पुरानी करेंसी को नई करेंसी में बदल रहे हैं।
कानपुर में पकड़ी गई पुरानी करेंसी एक या दो व्यक्तियों की नहीं होगी। कोलकाता, हैदराबाद आैर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई शहरों से लेकर दिल्ली तक सिंडीकेट फैला हुआ है। कहा जा रहा है कि 15 करोड़ की पुरानी करेंसी अब तक बदली जा चुकी है। कालेधन की समानांतर व्यवस्था को खत्म करने के लिए नोटबंदी मोदी सरकार का अहम कदम था लेकिन जो खुलासे अब हो रहे हैं उससे साफ है कि कालेधन के कुबेर अब भी सरकार को पलीता लगाने से बाज नहीं आ रहे हैं। पकड़े गए लोगों से पूछताछ के दौरान जानकारी मिली है कि इस रकम को हवाला के जरिये अमेरिका, दुबई या नेपाल भेजा जाना था जहां यह रकम प्रवासी भारतीयों या कम्पनियों के माध्यम से बैंकों में जमा कराई जानी थी। क्या इतनी बड़ी रकम का हवाला सम्भव है? अगर सम्भव है तो इसका अर्थ यही है कि ये नोट किसी न किसी माध्यम से रिजर्व बैंक में पहुंच रहे हैं। मान लीजिये कुछ करोड़ के पुराने नोट 70 फीसदी कमीशन लेकर गिरोह ने खपा दिए तो जाहिर है कि प्रतिबंध प्रणाली में छिद्र है। व्यवस्था में कोई न कोई ऐसा रास्ता जरूर खुला है जिसके माध्यम से यह गोरखधंधा चल रहा है।
रिजर्व बैंक के अधिकारी भी इस रास्ते के जानकार होंगे अन्यथा किसी को क्या जरूरत है कि अपने घर में नोटों का जखीरा रख ले। लोग सवाल उठा रहे हैं कि आखिर विदेशियों के जरिये पुराने नोट कैसे बदले जा रहे हैं? नोटबंदी के 14 माह बाद पड़ोसी देश नेपाल के कसीनो में भारत में बन्द हो चुके नोट धड़ल्ले से चल रहे हैं। भारतीय वहां 500 आैर 1000 के नोट लेकर जाते हैं और वहां इसे बदलकर नेपाली करेंसी हासिल कर लेते हैं। भले ही भारतीयों को कम पैसे मिलते हैं लेकिन गोरखधंधा जारी है। नेपाल ने अभी पुरानी करेंसी लौटाने की प्रक्रिया शुरू नहीं की है। जब तक सभी छिद्र बन्द नहीं होते तब तक लोग उनका फायदा उठाते रहेंगे। वित्त मंत्रालय आैर आरबीआई को कोई ठोस कदम उठाने होंगे।