जिस तरह की नकारात्मक भूमिका ट्विटर और अन्य सोशल मीडिया निभा रहा है उसके प्रति न केवल सरकारों काे बल्कि समाज को भी जागृत हो जाना चाहिए। सोशल मीडिया पूरी तरह अनसोशल हो चुके हैं। जो कुछ हो रहा है उसकी आशंका पहले से ही थी। माइक्रो ब्लागिंग वेबसाइट ट्विटर और सरकार में टकराव हो चुका है। ट्विटर का इस्तेमाल भारत विरोधी अभियान के लिए लगातार हो रहा है। केन्द्र सरकार ने ट्विटर को कथित पाकिस्तान और खालिस्तान समर्थकों से सम्बन्धित 1178 अकाउंट बंद करने का आदेश दिया था, जो किसानों के विरोध प्रदर्शन को लेकर गलत सूचना और उत्तेजक सामग्री फैलाते रहे हैं। इन ट्विटर अकाउंट्स की पहचान सुरक्षा एजैंसियों ने खालिस्तान समर्थक या पाकिस्तान द्वारा समर्थित और विदेशी धरती से संचालित होने वाले अकाउंट्स के तौर पर की थी, जिनसे किसान आंदोलन के दौरान सार्वजनिक व्यवस्था को खतरा है। इससे पहले सरकार ने ट्विटर को उन हैडल्स और हैशटैग्स को हटाने का आदेश दिया गया था जिनमें दावा किया गया था कि किसान नरसंहार की योजना बनाई जा रही है। अमेरिका माइक्रो ब्लागिंग कम्पनी ने सरकार के आदेश को आंशिक रूप से ही लागू किया। उसने सरकार द्वारा दी गई लिस्ट में ये करीब आधे अकाउंट्स को ब्लाक किया और बाकी को वैसे ही छोड़ दिया। इससे पहले कि सरकार के अधिकारी कम्पनी से बातचीत करते ट्विटर ने एक ब्लाग लिखकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पाठ पढ़ाना शुरू कर दिया और लिख डाला कि हाल ही में भारत सरकार ने जिस आधार पर ट्विटर अकाउंट्स बंद करने को कहा, वो भारतीय कानूनों के अनुरूप नहीं है। कम्पनी के नियमों का उल्लंघन करने वाले सैकड़ों अकाउंट्स के खिलाफ कार्रवाई की है, खासतौर पर उनके खिलाफ जो हिंसा, दुर्व्यवहार और धमकियों से भरे हुए थे। इसके साथ ही कम्पनी ने नियमों का उल्लंघन करने वाले कुछ ट्रेंड्स पर रोक लगाई है। ट्विटर के अनुरोध करने पर इलैक्ट्रानिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के सचिव कम्पनी के वरिष्ठ प्रबंधन के साथ बातचीत करने वाले थे लेकिन इस संबंध में कम्पनी द्वारा ब्लाग लिखा जाना कोई सामान्य बात नहीं है।
इस पर सरकार ने कड़ा रुख अपनाया और दो टूक कर दिया कि जिन अकाउंट्स को बंद करने के लिए कहा गया, ट्विटर काे उन्हें सेंसर करना ही होगा। ऐसा न करने की सूरत में भारत में उसके शीर्ष अधिकारियों को गिरफ्तार किया जा सकता है।
इस बात की पोल अब खुल चुकी है कि किसान आंदोलन की आड़ में भारत में हिंसा का षड्यंत्र रचा गया। एक दबी हुई खालिस्तान की विचारधारा को उभारने की कोशिशें की गईं। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत हमेशा से ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पक्षधर रहा है। भारत को यह पाठ ट्विटर या किसी विदेशी कम्पनी से पढ़ने की जरूरत नहीं है। इस बात पर गम्भीरता से ध्यान देना होगा। विवादित हैशटैग का इस्तेमाल न तो पत्रकारीय स्वतंत्रता है और न ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता क्योंकि ऐसा कंटेंट भड़का सकता है, हालात को और बिगाड़ सकते हैं।
लोगों को समझना चाहिए कि लालकिले के घटनाक्रम की तुलना कैपिटोल हिल की घटना से करना क्या उचित है? कैपिटोल हिल की घटना ट्रंप समर्थकों द्वारा की गई और इसे ट्रंप प्रायोजक माना जाना चाहिए लेकिन लालकिले की घटना किसान आंदोलन को हाइजैक कर एक विचारधारा काे उन्माद पैदा करने के लिए चंद अराजक तत्वों का खेल था। भारत में अभिव्यक्ति की आजादी के लिए संविधान में प्रावधान है लेकिन यह आजादी निरंकुश नहीं है। इस पर जरूरी प्रतिबंध लागू होते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी समय-समय पर इसे लेकर तमाम फैसले दिए हैं।
विदेशी कम्पनियां बिजनेस तो भारत में करती हैं लेकिन वह भारत की लोकतांत्रिक संस्थाओं का सम्मान नहीं करतीं। यह बात किसी भी सरकार के लिए असहनीय ही होगी। किसी भी कम्पनी को भारत में होने पर लोकतंत्र के सर्वोच्च मंदिर संसद द्वारा पारित कानूनों का पालन करना ही होगा। हैरानी की बात तो यह भी है कि ट्विट के सीईओ जैक डोर्सी ने खुद किसान आंदोलन पर किए गए ट्वीट्स को लाइक किया। जैक ने वाशिंगटन पोस्ट की पत्रकार केरेन अतिआ के उस ट्वीट को भी लाइक किया, जिसमें केरेन ने कहा कि रिहाना ने सूडान, नाइजीरिया और अब भारत में सामाजिक न्याय आंदोलनों के लिए अपनी आवाज उठाई है। यह भी बहुत बड़ा खेल है कि यूजर्स अचानक कैसे घट जाते हैं और अचानक कैसे बढ़ने लगते हैं। एक जानकारी के मुताबिक वर्ष 2020 में हर सैकेंड औसतन 6000 ट्वीट किए गए। हर मिनट साढ़े तीन लाख ट्वीट किए गए। यानी पूरे दिन में औसतन 50 करोड़ ट्वीट।
जरा सोचिये जब सोशल मीडिया के इतने शक्तिशाली प्लेटफार्म पर भारत के विरुद्ध दुष्प्रचार ट्रेंड होने लगे तो यह कितना खतरनाक होगा। ट्विटर पर ये हैशटैग #MODI PLANNING FARMER GENOCIDE यानी भारत में किसानों का जनसंहार हो रहा है का क्या अर्थ है। यह दुनिया में मोदी सरकार को बदनाम करने का षड्यंत्र नहीं तो और क्या है। प्रधानमंत्री ने लोकसभा में कहा है कि किसानों का आंदोलन तो पवित्र है लेकिन कुछ आंदोलनजीवियों ने उसे अनपवित्र बना दिया । देश को ऐसी साजिशों से सावधान रहना होगा। अगर कम्पनियां सरकार के निर्देशों को नहीं मानती ताे इनका बोरिया बिस्तर बांध देना चाहिए। भारत को विदेशों में बैठे आतंकवादियों और उनके समर्थकों तथा विदेशी ताकतों के इशारे पर काम करने वालों के मंसूबों को ध्वस्त करना ही होगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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