जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद उसे दो केन्द्र शासित प्रदेशों में विभाजित किया गया था और अब देश के दो केन्द्र शासित प्रदेशों को एक किया जा रहा है। सरकार ने देश के पश्चिमी हिस्से में बसे दमन-दीव और दादर-नागर हवेली को एक केन्द्र शासित प्रदेश करने की तैयारी कर ली है। दोनों केन्द्र शासित प्रदेशों के विलय के बाद देश में केन्द्र शासित प्रदेशों की संख्या 8 रह जाएगी।
दोनों केन्द्र शासित प्रदेशों का इतिहास बहुत पुराना है। इतिहास में रुचि रखने वालों को इस संबंध में जानकारी होगी लेकिन वर्तमान पीढ़ी का इतिहास से कोई ज्यादा लेना-देना नहीं। 1779 में मुगलों के बढ़ते दबाव से निपटने और दूसरी तरफ अंग्रेजों से लड़ने के लिए मराठियों ने पुर्तगालियों का हाथ थामा और उन्हें दादर-नगर हवेली से टैक्स इकट्ठा करने का अधिकार दिया। दो अगस्त 1954 को दादर-नगर हवेली पुर्तगालियों के शासन से स्वतंत्र हुई और यहां की जनता ने अपना शासन चलाया। 1961 में इसे एक केन्द्र शासित प्रदेश के तौर पर भारत में शामिल किया गया।
यहां का 40 फीसद इलाका जंगलों और पहाड़ों से घिरा हुआ है और आबादी 2 लाख 20 हजार के लगभग है। इसमें 63 फीसदी के लगभग आदिवासी हैं। गुजरात के सहाद्री पर्वत से निकली दमन गंगा नदी ही सिंचाई का मुख्य साधन है। दूसरी ओर दमन और दीव केन्द्र शासित प्रदेश केवल दो जिलों का नाम है। दोनों जिले समंदर के दो छोर पर बसे हैं। दमन गुजरात के दक्षिणी हिस्से के निकट है जबकि दीव जूनागढ़ के नजदीक समंदर से सटा है। 1987 में गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया और दमन-दीव को केन्द्र शासित प्रदेश बनाया गया।
कहा जाता है कि मौर्य सम्राट अशोक के दौरान दमन भी मौर्य साम्राज्य का हिस्सा था। बाद में सातकर्णी के शासन में रहा। दीव का अस्तित्व भी मौर्य साम्राज्य से जुड़ा रहा। दीव कभी इंडो ग्रीक राजाओं के अधीन रहा तो कभी मुस्लिम राजाओं के। 1546 से लेकर 1961 तक दीव में पुर्तगालियों का शासन रहा। गोवा मुक्ति संग्राम का भी इतिहास रहा है। दमन-दीव और दादर-नागर हवेली के बीच महज 35 किलोमीटर की दूरी है, ऐसे में अलग-अलग केन्द्र शासित प्रदेश होने का कोई औचित्य नहीं है।
केन्द्र सरकार ने काफी सोच-समझ कर दोनों के विलय का फैसला किया है ताकि दादर और नागर हवेली में सिर्फ एक जिला है जबकि दमन और दीव में दो जिले हैं। दोनों के लिए पहले अलग-अलग बजट तैयार करना पड़ता है। विलय के बाद तीनों संघ प्रदेशों की राजधानी दमन होगी। प्रशासक की जगह उपराज्यपाल लेंगे। दिल्ली की तर्ज पर बाद में मिनी विधानसभा भी गठित की जा सकती है। लोकसभा सीटें पहले की ही तरह रहेंगी। दोनों के विलय से केन्द्र शासित प्रदेश का प्रशासन आसान हो जाएगा।
दोनों प्रदेशों में सरकारी विभाग एक सचिव के अधीन कार्यरत होंगे। नौकरशाही के खर्च में भारी कटौती होगी। आईएएस दानिक्स, आईपीएस अधिकारियों के पदों में भी कटौती होगी। तीनों जिलों के सरकारी महकमे एक होने से मनमानी पर अंकुश लगेगा। क्षेत्र के विस्तार को देखें तो दादर-नागर हवेली 491 और दमन-दीव 110 किलोमीटर में बसा हुआ है। सामाजिक ताने-बाने के साथ दोनों प्रदेशों की संस्कृति और सभ्यता में काफी असमानताएं हैं। सांस्कृतिक विविधता में एकता ही भारत के लोकतंत्र की खूबसूरती है।
साक्षरता व प्रभात में दमन दादर-नागर हवेली से बहुत आगे है। विलय के बाद हालांकि दोनों प्रदेशों के अधिकारी, कर्मचारी तीनों जिलों में होने वाले तबादलों को लेकर चिंतित हैं। फिर भी फिलहाल कोई प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिली है। सम्भव है कि विलय के बाद इनकी प्रतिक्रिया देखने को मिले। संस्कृति और सभ्यता में असमानता तो है ही मगर दोनों प्रदेश अपना मुक्ति दिवस अलग-अलग मनाते रहे हैं लेकिन अब कोई समस्या नहीं। बाद में दोनों ने दो अगस्त को मुक्ति दिवस घोषित कर दिया था। इसी तर्ज पर विलय के बाद मुक्ति दिवस मनाया जा रहा है। दोनों प्रदेशों के विलय को दो संस्कृतियों और सभ्यताओं का मिलन करार दिया जा सकता है।
दादर-नागर हवेली के आदिवासी अपने अधिकारों की रक्षा के लिए आवाज बुलंद करते रहे हैं। आदिवासियों का शोषण नहीं पोषण हो। उनकी तमाम समस्याओं के निराकरण का दायत्व वहां के जनप्रतिनिधियों का है। विलय के बाद आदिवासियों को नौकरशाही के शोषण से मुक्ति दिलाने का काम जनप्रतिनिधियों को करना होगा। न्यूनतम सरकार अधिकतम शासन नीति के तहत विकास की बयार बहाई जा सकती है। दमन की अपनी समस्याएं हैं। प्रशासन और जनता के बीच पानी को लेकर, खनन को लेकर गतिरोध कई बार देखने को मिलता रहा है।
वहां के उद्योग हर वर्ष लाखों क्यूसेक पानी का दोहन करते रहे हैं। नौकरशाही की गलत नीतियों ने लोगों के लिए कई बार मुश्किलें खड़ी कीं। दोनों ही प्रदेश बहुत शांत प्रदेश हैं। उम्मीद है कि विलय के बाद विकास गति पकड़ेगा और लोगों को रोजगार मिलेगा। प्रशासन को देखना होगा कि लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए क्या-क्या कदम उठाए जाने चाहिए।