अश्विनी जी आपको शारीरिक रूप से हमसे बिछुड़े हुए 2 साल बीत गए विश्वास ही नहीं होता। सच पूछो तो हर सैकेंड आप मेरे साथ रहते हो और आंखों के सामने रहते हो। अगर मुझे कोई कहता है वाइफ ऑफ लेट अश्विनी जी या कोई पेपर साइन करने के लिए मेरे पास आता है, जिसमें लिखा हो विडो ऑफ लेट अश्विनी जी तो मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता, क्योंकि विडो तो वो होती है जिसका पति उससे दूर चला जाए। आप तो एक सैकेंड भी मेरे से दूर नहीं गए। आपके तीनों बेटे, बहू, पोते आपके अक्श मेरे सामने हैं। आप वो शख्सियत थे, एक अच्छे पौत्र, बेटा, भाई, पिता, पति, पत्रकार, सांसद, क्रिकेटर पति के रूप में भी जो कभी भी इस दुनिया से जा नहीं सकते। भले आपका शरीर चला गया हो परन्तु आप हमेशा हमारे सबके दिलों में जीवित हैं और जीवित रहेंगे।
हमारा साथ बचपन से था, भले आप बहुत बड़े परिवार से, मैं मध्यम परिवार से, हमारा एक-दूसरे का साथ जालंधर रेडियो स्टेशन में बच्चों के प्रोग्राम से शुरू हुआ। शुरू-शुरू में मुुझे आप बिल्कुल भी नहीं भाते थे। मुुझे लगता था कि मैं अपने टैलेंट पर इसमें हिस्सा लेती हूं और आप लाला जगत नारायण के पौत्र और रमेश चन्द्र जी के पुत्र के रूप में, परन्तु धीरे-धीरे यह गलतफहमी भी दूर होती गई कि आप अपनी कक्षा में फर्स्ट आने वाले क्रिकेट में नम्बर वन आने वाले विद्यार्थी थे, जिसकी नाैलेज बचपन से ही बहुत ज्यादा थी। हमारे समय में लड़के-लड़कियां आपस में कम ही बात करते थे परन्तु हम दोनों टैलेंटेड थे तो दोनों को हर प्रोग्राम में आगे रखा जाता था तो थोड़ी बहुत बात हो जाती थी। उस समय तो हद ही हो गई जब 10वीं कक्षा का रिजल्ट आया। मैं मेरिट पर आई, मुझे स्कॉलरशिप लगा तो उस समय बॉबी पिक्चर लगी थी तो आपने मुझे रिजल्ट की मुबारक देते हुए बॉबी पिक्चर देखने का प्रस्ताव दिया और कहा कि मैं तुमसे शादी भी करूंगा। हम दोनों उस समय किशोर थे तो झट से मैंने गुस्से में आपको चपेड़ लगा दी और कहा कि तुम अपने आपको क्या समझते हो। बड़े होंगे अपने घर में, हमारे यहां रिवाज नहीं। मेरे पापा को पता चल गया तो तुम्हें मार देंगे, पहले कुछ बनो जिन्दगी में। वो दिन उनके लिए एक चैलेंज का दिन था। जैसे उन्होंने ठान लिया कि मैं कुछ बनकर दिखाऊंगा। उसके बाद कालेज चली गई। कभी एक-दूसरे का आमना-सामना नहीं हुआ।
हां यह जरूर था जब भी मैं किसी कम्पीटिशन में जाती आप सबसे अगली सीट में बैठे होते थे। जब मैं डीएवी कालेज जालंधर में एम.ए. पालिटिकल साइंस को ज्वाइन किया तो आपकी फोटो एज़ क्रिकेटर और बेस्ट स्टूडेंट रह चुके होने के नाते बोर्ड पर लगी होती, तब आप चंडीगढ़ में पत्रकारिता कर रहे थे तो आपने मेरे घर अपनी मां और चाची के साथ रिश्ता भेजा और मेरे माता-पिता को लाला जी ने बुला लिया। मेरे पिता इस बात पर अडग थे कि वह ब्राह्मण है और उनकी बेटी ब्राह्मण में जाएगी परन्तु लाला जी, रमेश जी से मिलने के बाद एक सैकेंड में उनकी यह बात गफूर हो गई क्यों लाला जी बहुत स्पष्टवादी और स्पष्ट बोलने वाले थे। एक सच्चे इंसान थे, जो कहते थे उस पर अमल करते थे तो उनकी इस स्पष्टता को कोई इंकार ही नहीं कर सकता था।
मैंने उस समय कालेज में कसम खाई थी कि दहेज लेने वाले से शादी नहीं करूंगी, तो वो भी मेरी इच्छा पूरी हो गई थी। हमारी शादी आर्य समाज मंदिर में सादे तरीके से एक रुपए से हुई, जिसके लिए कई मुख्यमंत्री और गवर्नर शामिल हुए। 10,000 करीब लोग थे। टॉप मिठाई वालाें ने अपने स्टाल लगवाए थे। अभी मेरी शिक्षा पूरी नहीं हुई थी, परन्तु शादी करवाने में अश्विनी जी के चाचा और उनकी बुआ जी का बहुत प्रयास था, हाथ था। उनके अनुसार पढ़ाई बाद में हो जाएगी और मैंने एम.ए. का प्रथम और द्वितीय वर्ष शादी के बाद किया।
आपके ऊपर लाला जी की पत्रकारिता का बहुत प्रभाव था। आपकी निष्पक्ष, निडर, निर्भिक पत्रकारिता लाला जी और रमेश जी से आई। आप हर क्षेत्र में आल राउंडर थे, चाहे वो खेल का मैदान या पत्रकारिता कोई भी क्षेत्र ले लो, राजनीति, हिस्ट्री, जाेगरफी, एस्ट्रोलाजी, धर्म, फिल्म हर खेल का ज्ञान था। यहां तक कि वेदों का ज्ञान था। आपने जिन्दगी में किसी गलत बात के साथ समझौता नहीं किया। आप हमेशा सच्चाई और देशभक्ति के मार्ग पर चले। आपकी कलम कभी भी किसी के आगे झुकी नहीं, जिसके कारण जिन्दगी में बहुत से नुक्सान हुए, आर्थिक नुक्सान भी झेलने पडे़ परन्तु आपकी पत्नी होने का हर समय गर्व महसूस हुआ। जब आप पहली बार सांसद बने आपने भारी बहुमत से चुनाव जीता और हरियाणा की राजनीति बदल दी। गांव-गांव के लोग पूरे निर्वाचन क्षेत्र के लोग या यूं कह लो पूरे हरियाणा के लोग आपकी राजनीति, बुद्धिमता और सच्चाई को मानते थे। आपने दिखा दिया कि राजनीति केवल राजनीति ही नहीं बल्कि समाज सेवा है। आपने अपने निर्वाचन क्षेत्र में गांवों के विकास के लिए अपनी सांसद निधि की एक-एक पाई लोगों की सेवा के लिए खर्च की। यहां तक पैट्रोल, गाड़ी, आफिस का खर्च भी अपनी जेब से किया। आपने अपनी अलग पहचान बनाई और लोगों से प्यार लिया। आखिर में जब आप कैंसर से पीड़ित थे, बहुत बहादुरी से जंग लड़ी। आप ज्ञानी थे, आपको मालूम था कि आपके पास समय कम है, आपने अपनी जीवनी ‘इट्स माई लाइफ’ अपने आप लिखी। आप अपने अंतिम समय के दो दिन पहले तक आफिस को दिशा-निर्देश देते रहे। अभी आपके तीनों बेटे मिलकर आदित्य, अर्जुन, आकाश आपकी कलम और विरासत को सम्भाल रहे हैं।
अंतिम क्षणों में आपकी आंखों की कसक, कि बहुत से काम अधूरे हैं। मेरी तरफ देखना और लिखकर बात करना, अभी तक मेरे व्हाट्सएप पर बहुत कुछ मौजूद हैं और यह बातें मुझे बार-बार रूलाती हैं। एक साल तो आंसू थमने का नाम ही नहीं लेते थे, अब बहुत कोशिश करती हूं बहादुर इंसान की पत्नी हूं। बहादुरी से दुनिया की चुनौतियों का दीखता है, जो मुझे आगे बढ़ने और काम करने के लिए उत्साहित करता है। अक्सर लोग कहते हैं समय के साथ दर्द कम हो जाता है, परन्तु मुझे अपने अनुभव से यह लग रहा है, मैं दर्द के साथ बहुत ही कठिनाइयों के साथ जीना सीख रही हूं। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि अभी जान निकल जाएगी। असल में आपने मुझे जिन्दगी में सब कुछ सिखाया, परन्तु सबसे बड़ी बात आपके बिना कैसे जिया जाए यह नहीं सिखाया, जो बहुत ही कठिन है।
आप के बिना एक-एक पल काटना मुश्किल है। अभी तक तो मैं बुजुर्गों और जरूरतमंद लड़कियों के लिए काम कर रही थी, अब सोच रही हूं उन महिलाओं के लिए भी काम करूं जो अकेली रह गई हैं और पल-पल चुनौतियों का सामना कर रही हैं, क्योंकि ऐसी महिलाओं का दर्द मैं ही समझ सकती हूं, क्योंकि एक संस्कारी पत्नी एक-एक पल किस दर्द से गुजरती है और उसे हर समय किन मुश्किलों का सामना करना पड़ता है जिसका पति शारीरिक रूप से तो चला गया परन्तु आत्मा और दिल से हमेशा साथ है, साथ रहेगा।