लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

समाज का जघन्य चेहरा

दिल्ली में निक्की यादव हत्याकांड में दो बड़े नए खुलासे न केवल चौंका देने वाले हैं बल्कि हमें यह सोचने को मजबूर करते हैं कि हम कैसे समाज में जी रहे हैं। निक्की यादव हत्याकांड में लिव-इन वाली बात गलत साबित हो चुकी है।

दिल्ली में निक्की यादव हत्याकांड में दो बड़े नए खुलासे न केवल चौंका देने वाले हैं बल्कि हमें यह सोचने को मजबूर करते हैं कि हम कैसे समाज में जी रहे हैं। निक्की यादव हत्याकांड में लिव-इन वाली बात गलत साबित हो चुकी है। जांच में खुलासा हुआ है कि साहिल गहलोत और निक्की यादव ने मंदिर में शादी की थी और वह पति-पत्नी के तौर पर रहे थे। इस खुलासे से हत्याकांड में नया मोड़ आ गया है कि आरोपी साहिल के पिता काे हत्या की जानकारी थी। आरोपी के दो रिश्तेदार और दो दोस्त सभी आरोपियों ने साजिश रची और शव को ढाबे के रेफ्रीजरेटर में छिपाया। इसका अर्थ यही है कि हत्या योजना बनाकर की गई। ऐसा करते हुए साहिल को भी कानून का कोई खौफ नहीं था। हैरानी की बात तो यह है कि हत्या करने के बाद आरोपी और पूरा परिवार बिना अपने चेहरों पर शिकन लाए दूसरी शादी में शामिल हुआ। साहिल का परिवार उसकी पहली शादी से खुश नहीं ​था। परिवार ने ही साहिल पर दूसरी शादी करने के लिए दबाव बनाया हुआ ​था। 
सवाल यह भी है कि साहिल ने संबंधों को लेकर स्पष्टता क्यों नहीं बरती और दबाव की स्थिति में निक्की की हत्या तक करने में हिचक क्यों नहीं दिखाई। क्या उसके दिमाग में अपराधिक मानसिकता पल रही थी, अगर परिवार ने उस पर दबाव बनाया था तो उसने अपने विवेक से काम क्यों नहीं लिया, जहां तक साहिल के पिता और परिवार के अन्य सदस्यों का सवाल है उस संबंध में भी नई जानकारियां सामने आ रही हैं। पुलिस का कहना है कि साहिल के पिता को भी 25 साल पहले एक हत्याकांड में गिरफ्तार किया गया था और कई सालों तक मुकद्दमा चलने के बाद उसे दोषी भी ठहराया गया था। बाद में हाईकोर्ट में अपील करने पर वह बरी हो गया ​था अगर इस हत्याकांड में पिता की लिप्तता साबित होती है तो यह समाज के लिए घातक प्रवृति होगी कि एक पिता ही अपने बेटे को हत्या के लिए उकसा रहा ​​था। एक परिवार अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देता है लेकिन यहां तो गंगा उल्टी ही बहती नजर आ रही है। साहिल के पिता और परिवार ने यह भी नहीं सोचा कि वह दो-दो लड़कियों की जिंदगी बर्बाद कर रहे हैं।
हत्या के बाद साहिल ने जिस लड़की से शादी की वह कितने नए-नए सपने लेकर आई होगी लेकिन उसे आंसुओं के अलावा कुछ नहीं मिला और जिस लड़की का घर बसा हुआ था उसे मार डाला गया। जब रिश्तों का सच परिवार को पता था तो फिर घिनौना हत्याकांड क्यों किया गया। यद्यपि इस केस में कानून अपना काम करेगा लेकिन यह कैसे संभव हो पाता है कि कोई व्यक्ति अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा और सुविधा को कायम रखने के लिए उस युवती के खिलाफ इस हद तक बर्बर हो जाता है जिसने शायद सब कुछ छोड़कर उस पर भरोसा किया। विडम्बना यह है कि समाज जैसे-जैसे उदार हो रहा है वर्जनाएं टूट रही हैं। युवा पीढ़ी जड़ताएं तोड़कर अपनी दुनिया बसा लेना चाहती है। अंतर्जातीय विवाह भी हो रहे हैं लेकिन हमारे समाज में जातिवाद की जड़ें बहुत गहरी हैं। प्रेम संबंधों में और शादियों में जातिवाद बड़ी बाधा बनकर उभरा है। परिवार और समाज आज भी रूढ़ीवादी विचारों में उलझा हुआ है। शादियों में कभी जाति आड़े आती हैं, कभी धर्म। कभी यह देखा जाता है कि किस की जाति ऊंची है और किस की जाति नीची। देश को आजाद हुए सात दशक से भी अधिक समय बीत चुका है लेकिन हम जाति प्रथा के चंगुल से मुक्त नहीं हो पाए। सामाजिक परम्पराएं और मर्यादाएं भी आड़े आ रही हैं।
जाति प्रथा न केवल हमारे मध्य वैमनस्थता को बढ़ाती है बल्कि ये हमारी एकता में भी दरार पैदा करने का काम करती है। जाति प्रथा प्रत्येक मनुष्य के मस्तिष्क में बचपन से ऊंच-नीच, उत्कृष्टता-निकृष्टता के बीज बो देती है। अमुक जाति का सदस्य होने के नाते किसी को लाभ होता है तो किसी को हानि उठानी पड़ती है। जाति श्रम की प्रतिष्ठा की संकल्पना के विरुद्ध कार्य करती है और ये हमारी राजनीति दासता का मूल कारण रही है। जाति प्रथा से आक्रांत समाज की कमजोरी विस्तृत क्षेत्र से राजनीतिक एकता को स्थापित नहीं करा पाती तथा यह देश पर किसी बाहरी आक्रमण के समय एक बड़े वर्ग को हताेत्साहित करती है। स्वार्थी राजनीतिज्ञों के कारण जातिवाद ने पहले से भी अधिक भयंकर रूप धारण कर लिया है जिससे सामाजिक कटुता बढ़ी है।
निक्की यादव हत्याकांड में कौन सा सामाजिक दबाव काम कर रहा ​था। इस संबंध में तो जांच के निष्कर्स ही कुछ बता पाएंगे लेकिन इतना तय है कि समाज अपनी जड़ताओं से बाहर नहीं निकल रहा इसलिए निक्की हत्याकांड को सोच-समझकर की गई किसी पेशेवर अपराधी की हरकत ही कहा जा सकता है। निक्की हत्याकांड में श्रद्धा कांड की तरह हिन्दू-मुस्लिम एंगल नहीं है इसलिए इस पर ज्यादा हंगामा नहीं मचा। जब तक समाज में रूढ़ीवादी परम्पराओं का अंधेरा नहीं मिटेगा तब तक युवा पीढ़ी को नया सवेरा भी नहीं दिखाई देगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

4 × four =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।