Ukraine peace summit in Switzerland failed: रूस और यूक्रेन के बीच बीते 2 साल से भी ज्यादा समय से युद्ध चल रहा है। युद्ध समाप्त करने के लिए दुनियाभर के 92 से भी अधिक लोग स्विट्जरलैंड शांति सम्मेलन में इकट्ठे हुए। उम्मीदें तो बहुत थी कि युद्ध समाप्त करने के लिए कोई न कोई रोड मैप तैयार होगा लेकिन दो दिन तक चले सम्मेलन में नतीजा कुछ नहीं निकला। युद्ध शुरू होने के बाद ही यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की अपनी 10 सूत्री योजना का ढिंढोरा पीट रहे हैं। जिसमें परमाणु खतरा, खाद्य सुरक्षा और कब्जाए गए क्षेत्रों से रूसी सैनिकों की वापसी और यूक्रेन में मानवीय आवश्यकताओं के सूत्र शामिल हैं। रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन यूक्रेन की 10 सूत्री योजना को ठुकरा चुके हैं। पुतिन का साफ कहना है कि यूक्रेन के जो इलाके उसने कब्जाएं हैं वह उन्हें नहीं छोड़ेगा और यूक्रेन को नाटो में शामिल होने की अपनी कोशिशें छोड़ देनी होंगी। युद्ध शुरू होने के साथ ही दुनिया दो धड़ों में बंटनी शुरू हो गई थी। यूूक्रेन का साथ देने के लिए नाटो सदस्य देश खड़े हो गए थे तो अमेरिका, ब्रिटेन, पोलैंड, फ्रांस समेत कई देशों ने युद्ध से बाहर रहते हुए इसकाे मदद पहुंचानी शुरू कर दी।
दूसरी ओर चीन, दक्षिण कोरिया, ईरान जैसे देश रूस के साथ खड़े हुए। भारत ने तटस्थ रुख अपनाया। हालांकि भारत ने समय-समय पर युद्ध रुकवाने का समर्थन किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जी-7 सम्मेलन में भाग लेकर इटली से स्विट्जरलैंड जाने का कार्यक्रम था लेकिन प्रधानमंत्री इटली से सीधे स्वदेश लौट आए। स्विट्जरलैंड शांति सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व विदेश मंत्रालय में सचिव पवन कपूर ने किया। भारत एक बार फिर यूक्रेन के दबाव में नहीं आया और उसने अपने परखे हुए दोस्त रूस का साथ देते हुए शांति सम्मेलन के संयुक्त वक्तव्य से खुद को अलग कर लिया और उस पर हस्ताक्षर करने से साफ इंकार कर दिया। भारत के प्रतिनिधि पवन कपूर ने युद्ध पर भारत के रुख पर जोर देते हुए कहा, 'हमारे विचार में केवल वे विकल्प ही स्थायी शांति की ओर ले जा सकते हैं जो दोनों पक्षों को स्वीकार्य हों। इस दृष्टिकोण के अनुरूप हमने इस शिखर सम्मेलन से निकलने वाले संयुक्त विज्ञप्ति या किसी अन्य दस्तावेज़ से जुड़ने से बचने का फैसला किया है।' सम्मेलन में भारत की उपस्थिति के बारे में बताते हुए कपूर ने कहा, 'हम यूक्रेन में स्थायी शांति प्राप्त करने के लिए सभी गंभीर प्रयासों में योगदान देने के लिए सभी हितधारकों के साथ-साथ संघर्ष के दोनों पक्षों के साथ बातचीत जारी रखेंगे।'
यूक्रेन की पहल पर आयोजित इस शांति सम्मेलन में रूस को अामंत्रित ही नहीं किया गया था। रूस भारत का अभिन्न मित्र है। उसके और अपने हितों के अनुरूप विदेश नीति अपनाना भारत के लिए बहुत जरूरी है। जिस सम्मेलन में रूस को आमंत्रित ही नहीं किया गया हो तो यह सम्मेलन व्यर्थ की कवायद ही साबित हुआ। भारत यूक्रेन और रूस को वार्ता की मेज पर लाने का इच्छुक है। भारत ने स्वतंत्र एवं संतुलित विदेश नीति अपना कर एक बार फिर स्पष्ट संकेत दे दिया है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों पर आधारित विदेश नीति पर कायम है। चीन भी इस सम्मेलन से दूर रहा। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन खुद तो नहीं गए लेकिन अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस को सम्मेलन में भेजा।
भारत के प्रतिनिधि ने सम्मेलन में भाग लिया लेकिन स्पष्ट किया कि वह किसी भी एक पक्ष में खड़ा दिखने की बजाय युद्ध में उलझे दोनों देशों के बीच बातचीत और सहमति के प्रयासों को ज्यादा तवज्जो देता है। इसी बीच यूक्रेन-रूस युद्ध पर अमेरिका के नए बयान ने सबको चौंका दिया है। व्हाइट हाउस के प्रवक्ता ने कहा है कि रूस कभी भी यूक्रेन के लिए खतरा नहीं था। यदि नाटो देश अपने सहयोगियों से बात नहीं करते तो यह गैर जिम्मेदराना होगा। व्हाइट हाउस ने यह भी कहा कि नाटो देश अपने सहयोगियों से लगातार बातचीत नहीं करेंगे तो फिर प्रतिबद्धिताओं को कैसे पूरा कर सकते हैं। सर्वविदित है कि पूरी दुनिया में शांति-शांति का ढिंढोरा पीटने वाले अमेरिका का रवैया हमेशा ही दोगला रहा है। इस वक्तव्य का अगर अर्थ निकाला जाए कि क्या अमेरिका रूस को निर्दोष मानने लगा है। युद्ध से यूक्रेन की हालत खराब हो चुकी है। बेहतर यही होगा कि यूक्रेन रूस से वार्ता के िलए तैयार हो।
यूक्रेन शांति समझौते में जो शर्तें थीं उसमें मुख्य रूप से रूस को सेना पीछे हटाने के लिए कहा गया है लेकिन भारत, सऊदी अरब समेत कई देशों ने इस समझौते पर साइन करने से मना कर दिया। भारत के विदेश मंत्रालय के सचिव पवन कुमार ने कहा कि हमारा मानना है कि हम किसी भी दस्तावेज से खुद को नहीं जोड़ेंगे क्योंकि समिट में कुछ भी ऐसा नहीं हो रहा है जिससे युद्ध खत्म हो सकें। इस पूरे समिट पर भारत ने काफी सधा हुआ रास्ता अख्तियार किया। भारत ने चीन की तरह इसे पूरी तरह से खारिज भी नहीं किया और शांति समझौते पर साइन करने से इन्कार कर दिया। इस समिट पर फिलिपींस को छोड़कर तमाम ब्रिक देश, अफ्रीकी देशों ने भी साइन नहीं किये हैं। ऐसे में इस समिट को फेल समिट कहा जा रहा है। स्विट्जरलैंड के राइट विंग के नेताओं ने भी इस समिट को विफल करार दिया है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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