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सियासत की धुरी हैं अनधिकृत कालोनियां

दिल्ली की अन​धिकृत कालोनियां हमेशा ही सियासत की धुरी रही हैं। हर विधानसभा चुनावों में इन्हें लेकर सियासत की विरासत बिछाई जाती रही है।

दिल्ली की अन​धिकृत कालोनियां हमेशा ही सियासत की धुरी रही हैं। हर विधानसभा चुनावों में इन्हें लेकर सियासत की विरासत बिछाई जाती रही है। समय-समय पर राजनीतिक दलों ने अनधिकृत कालोनियों को ​नियमित करने का चुनावी वादा भी किया लेकिन तकनीकी और कानूनी अड़चनों के चलते नतीजा शून्य ही रहा। अगले वर्ष होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव में इन कालोेनियों में रहने वाले 40 लाख से अधिक लोग निर्णायक भूमिका निभाने वाले हैं इसलिए चुनावाें की आहट से ही यह मुद्दा गर्मा गया है। 
दिल्ली की आप सरकार अ​​नधिकृत कालोनियों में विकास कार्यों को लेकर श्रेय ले रही है। ​मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल पहले ही अनधिकृत कालोनियों में पक्की रजिस्ट्री की मांग उठा रहे थे। इस बार केन्द्र की मोदी सरकार ने दो कदम आगे बढ़कर अनधिकृत कालोनियों में रहने वाले लोगों को मालिकाना हक दिलाने का बिल पेश किया जिस पर लोकसभा ने अपनी मुहर भी लगा दी है। सियासत कितनी भी हो लेकिन अनधिकृत कालोनियों के लोगों को जीने के लिए बुनयादी सुविधाएं ​मिलनी ही चाहिए। 
1797 अनधिकृत कालोनियों में रहने वाले लोगों को हर समय आशियाना उजड़ने की चिंता सताती रहती थी लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। अब बाकायदा उनकी सम्पत्ति की रजिस्ट्री होगी। उनकी प्रोपर्टी को कानूनी मान्यता मिलेगी। सबसे खास बात यह है कि यदि कोई कालोनी सरकारी जमीन पर बसी है उसे भी मालिकाना हक मिलेगा। अब लोगों को प्रोपर्टी पर बैंक ऋण भी मिल सकेगा। कालोनियां वैध होने के बाद यहां सड़क, पार्क, सीवर लाइन मिलेगी। पिछले 25 वर्षों से इन कालोनियों को नियमित करने की बातें हो रही थी। उसके बाद घोषणाओं की बात करें तो वर्ष 1994 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना ने 1071 कालोनियों को नियमित करने की घोषणा की थी। 
वर्ष 2008 में तत्कालीन कांग्रेस की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने एक कार्यक्रम आयोजित कर कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी के हाथों अनधिकृत कालोनियों के लोगों को नियमितीकरण के प्रोविजनल सर्टिफिकेट भी बंटवा दिए थे। दिसम्बर 2014 को भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2 हजार अनधिकृत कालोनियां को ​नियमित करने की घोषणा की थी। 2012 में भी कालोनियां को नियमित करने की अधिसूचना केन्द्र सरकार ने जारी की थी लेकिन यह मामला लटकता रहा, न कोई सर्वे कराया गया, न कोई हदबंदी की गई। समस्या तो यह थी कि अधिकतर कालोनियां का सम्पूर्ण नक्शा उपलब्ध नहीं है। 
भूमाफिया ने ऐसा खेल खेला कि सार्वजनिक सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए अतिरिक्त जमीन तक नहीं बची है। दिल्ली में अनधिकृत कालोनियां बसने का इतिहास बहुत पुराना है। हर वर्ष दिल्ली में रोजी-रोटी की तलाश में दूसरे राज्यों से लोग आते हैं और यहीं के होकर रह जाते हैं। जहां आदमी को रोजगार मिलता है तो उसे रहने के लिए छत भी चाहिए। दिल्ली की आबादी हर साल बढ़ जाती है लेकिन लोगों को आवास मुहैय्या कराने वाला दिल्ली विकास प्रा​िधकरण इतनी बड़ी जनसंख्या को आवास उपलब्ध कराने में पूरी तरह विफल रहा। शुरू-शुरू में उसकी कुछ योजनाएं सिरे चढ़ीं लेकिन बाद में कई योजनाएं पूरी तरह से विफल रहीं। 
ऐसे में राजनीतिज्ञों, अफसरशाहों और भूमाफिया ने अपना खेल खेला। सरकारी जमीनों, ग्राम सभा और वन विभाग की जमीनों पर अवैध कब्जे कराए गए और प्लाट बेचे गए। कुकुरमुत्तों की तरह अवैध कालोनियां उग गईं। भू​माफिया ने पहले हजारों कमाए फिर लाखों करोड़ों की कमाई की। इन कालोनियों में कोई जनसुविधाएं नहीं थीं। कांग्रेस ने हमेशा अनधिकृत कालोनियों के नाम पर जमकर सियासत की। दिल्ली में रहने वालों को आशियाना चाहिए था, इसलिए दिल्ली बेतरतीब बसती गई। वोट बैंक की सियासत के चलते अवैध कालोनियां बसती गईं और दिल्ली बेढंगी होती गई। लोकतंत्र में निर्वाचित सरकारों का लक्ष्य जनकल्याण होता है। 
इसलिए जनता को नारकीय स्थिति से निकालना भी राज्य सरकारों का दायित्व है। कम से कम लोगों को जीने लायक सुविधाएं तो उपलब्ध होनी ही चाहिए। प्रजा के सुख में ही सरकार का सुख है।अब अवैध कालोनियों की मैपिंग का काम शुरू होगा। यद्यपि भाजपा की नजरें दिल्ली विधानसभा चुुनावों पर लगी हुई हैं तो फिर भी केन्द्र सरकार ने इनको नियमित कराने का विधेयक पारित करा गम्भीरता से पहल की है। देखना हाेगा कि महानगर की इन कालोनियां के लिए योजनाएं कैसे आगे बढ़ती हैं। प्लानिंग इतनी कारगर होनी चाहिए जिससे दिल्ली की खूबसूरती नजर आए और लोगों का जीवन स्तर बढ़े। अन्यथा अनधिकृत कालोनियां केवल वोट बैंक की धुरी ही बनी रह जाएंगी।

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