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दो महाशक्तियों का मिलन

विश्व की कोई भी स्पर्धा हो, पहले दो ही देशों का नाम आता था अमेरिका और रूस (सोवियत संघ) इस बात पर लम्बी चर्चाएं होती थीं कि दोनों देशों में ज्यादा शक्तिशाली कौन है।

विश्व की कोई भी स्पर्धा हो, पहले दो ही देशों का नाम आता था अमेरिका और रूस (सोवियत संघ) इस बात पर लम्बी चर्चाएं होती थीं कि दोनों देशों में ज्यादा शक्तिशाली कौन है। 1970 से 1990 के दो दशकों तक दोनों में कोल्डवॉर यानि शीत युद्ध चला। जहां अन्दर ही अन्दर अमेरिका और रूस एक-दूसरे से न केवल विज्ञान, अंतरिक्ष एवं चांद पर पहुंचने के मिशन और अन्य सभी तकनीकी क्षेत्रों में आगे निकलने में प्रयासरत रहते थे,  वहां परमाणु हथियारों और मिसाइलों एवं युद्धक संबंधी सभी क्षेत्रों में एक-दूसरे को पछाड़ने के लिए अन्दर ही अन्दर गुप्त रूप से खतरनाक और विश्व की तबाही के हथियारों का निर्माण कर रहे थे। 
सोवियत संघ के बिखरने के बाद विश्व के समीकरण बदले। पूरा विश्व एक ध्रुवीय हो गया। काफी चुनौतियों का सामना करने के बाद रूस फिर एक बलशाली देश के रूप में उभरा। अमेरिका-रूस संबंधों में कई मुद्दों पर तनातनी आज भी चल रही है। यूक्रेन पर हमला कर क्रीमिया में रूस की ओर से 2014 में दखल बढ़ाए जाने के बाद से ही दोनों देशों के बीच रिश्ते काफी निचले स्तर पर पहुंच गए थे। इसके अलावा 2015 में सीरिया में रूस के दखल और फिर 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की मदद के आरोप भी रूस पर लगे थे। यद्यपि रूस के राष्ट्रपति और शक्तिशाली नेता ब्लादिमीर पुतिन प्रशासन ने इन आरोपों को खारिज कर दिया था। इसी वर्ष मार्च में दाेनों देशों के संबंध और बिगड़ गए जब अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडेन ने पुतिन काे हत्यारा बताया था। इसके बाद रूस ने अमेरिका से अपने राजदूत वापिस बुला लिए थे, इसके जवाब में अप्रैल में अमेरिका ने रूस से अपने राजनयिक को बुला लिया था।
वैश्विक राजनीति में एक-दूसरे के कट्टर प्रतिद्वंद्वी के तौर पर चर्चित अमेरिका और रूस के राष्ट्रपतियों में जैनेवा समिट के दौरान मुलाकात हुई। जो बाइडेन और ब्लादिमीर में लम्बी बैठक को हम दो महाशक्तियों का मिलन कह सकते हैं। दोनों नेताओं की मुस्कराते हुए हाथ मिलाने की तस्वीरें सामेन आई हैं। ऐसे में सवाल तो जरूर उठता है कि हाथ तो मिल गए, क्या दिल भी मिलेंगे। हालांकि इस मुलाकात से कोई ज्यादा उम्मीद तो नहीं रखी जा सकती लेकिन दोनों देशों में तनाव कम करने की दिशा में इसे बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। बाइडेन ने एक दशक में पहली बार रूस के राष्ट्रपति से मुलाकात की है। पिछली बार 2011 में पुतिन से उनकी मुलाकात तब हुई थी जब पुतिन रूस के प्रधानमंत्री थे और बाइडेन अमेरिका के उपराष्ट्रपति। आज की परिस्थितियों में अमेरिका और रूस अगर अपने संबंधों  में स्थिरता आैर गम्भीरता लाते हैं तो यह दोनों देशों और दुनिया के ​हित में होगा। दोनों में मुलाकात काफी सकारात्मक रही और ऐसा लगा ही नहीं कि दोनों में कोई शत्रुता है। अमेरिका और रूस अपने-अपने राजनयिकों को वापिस बुलाने पर राजी हो गए हैं। यूक्रेन और नाटो गठबंधनों पर भी व्यापक चर्चा हुई। दोनों नेताओं ने साइबर सुरक्षा पर बातचीत की। अमेरिका रूस पर साइबर हमलों के आरोप लगाता रहा है। टैक्सास में अमेरिकी तेल पाइप लाइन पर हमले और रूस के हैल्थ सिस्टम पर हमले की चर्चा करते हुए दोनों देश साइबर सुरक्षा पर आगे भी बातचीत को राजी हुए हैं। 
पुतिन ने आर्कटिक में रूसी सैन्यीकरण को लेकर अमेरिकी चिंताओं को दूर किया। परमाणु स्थिरता पर बात आगे बढ़ी और दोनों आने वाले समय में न्यू स्टार्ट आर्म्स कंट्रोल समझौते में बदलाव के बारे में विचार करेंगे। जिस मुद्दे पर टकराव नजर आया वह था एलेक्सी नवलेनी को जहर दिए जाने का मामला। बाइडेन ने यह भी कहा कि अगर नवलेनी की मौत हो जाती है तो रूस के लिए परिणाम भयंकर होंगे। साथ ही चेतावनी भी दी कि रूस विश्व शक्ति के रूप में खुद को मजबूत करने की कोशिश कर रहा है लेकिन वह अमेरिका में हस्तक्षेप करता रहा तो इसकी कीमत रूस को चुकानी पड़ सकती है।
 अगर भविष्य में अमेरिका और रूस तनातनी खत्म करके कई मुद्दों पर आगे बढ़ते हैं तो यह भारत के लिए अच्छी बात होगी। भारत न तो रूस को छोड़ सकता है क्योंकि रूस हमारा मित्र देश रहा है और हर संकट की घड़ी में उसने भारत का साथ दिया है। चीन से मिल रही चुनौती, व्यापार और अन्य मुद्दे भारत को अमेरिका के करीब ला रहे हैं तो रूस को भारत की पश्चिमी देशों से करीबी रास नहीं आ रही। भारत के लिए नए और पुराने दोस्तों में संतुलन बनाए रखना चुनौती बन गया है। अमेरिका भारत पर रूस से एस-400 सिस्टम की खरीददारी पर आपत्ति करता रहा है। हथियाराें की खरीद के लिए भारत एक बड़ा बाजार है और हथियार खरीद का 56 प्रतिशत हिस्सा अब भी रूस से आता है। फिलहाल दो महाशक्तिशाली नेताओं में सीधा संवाद अपने आप में बड़ी उपलब्धि है। इसमें बहुत रचनात्मकता है। आज की दुनिया में अमेरिका-रूस संबंध जरूरत भी हैं। भविष्य  में भारत, अमेरिका, रूस का त्रिकोण भी बन सकता है, फिलहाल अभी इसे कल्पना ही माना जाना चाहिए।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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