सत्ता का भारतीय शास्त्र कहता है कि नेता को अपराधी नहीं होना चाहिए, अलबत्ता अपराधी नेता हो सकता है। इस तरह अपराध नेता में नहीं रहता, अपराध में नेता हो सकता है। यह भारत की राजनीति की मौलिक पहेली है कि अपराध और राजनीति एक न होते हुए भी एक जैसे लगते हैं। दोनों में रिमिक्स या घालमेल चलता रहता है। जिस तरह राजनेता भड़कीले बयान देकर खुद को सुर्खियों में लाता है और अपना वोट बढ़ाता है।
आपराधिक पृष्ठभूमि के लोग जो नेता नहीं हैं वे तो अपराध करके अपना भविष्य सुरक्षित कर लेते हैं क्योंकि अपराध जगत में उनका रेट बढ़ जाता है। सत्ता बड़ी निष्ठुर होती है, कभी-कभी दाव उलटा भी पड़ जाता है। भाजपा से निष्कासित उत्तर प्रदेश के विधायक कुलदीप सेंगर को दिल्ली की अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई और 25 लाख का जुर्माना भी लगाया।
जब सजा सुनाई गई तो उन्नाव बलात्कार कांड का आरोपी न्यायाधीश के सामने हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाने लगा। उसके वकील की तरफ से कहा गया कि दोषी की दो नाबालिग बेटियां हैं, उसके पास कोई ज्यादा सम्पत्ति नहीं। सवाल यह है कि दोषी विधायक ने भावनाओं का सहारा लेकर जो कुछ भी न्यायालय में कहा, तब उसकी भावनाएं कहा थी जब उसने घृणित अपराध को अंजाम दिया था। अब तो विधायकी भी गई, दबंगई भी गई और सारी हेकड़ी निकल गई।
पहले उसने 17 वर्षीय लड़की की अस्मत लूटी जब पीड़िता ने न्याय के लिए गुहार लगाई तो विधायक के भाई और उसके साथियों ने लड़की के पिता को बुरी तरह पीटा और पुलिस के हवाले कर दिया। तब भी पीड़िता चिल्लाती रही कि उन्हें फर्जी मामलाें में फंसाया जा रहा है। उत्तर प्रदेश पुलिस तो दबंग विधायक के साथ रही और उसने मुकदमा दर्ज कर लड़की के पिता को जेल भेजा था, जहां दो दिन बाद ही उसकी मृत्यु हो गई थी। यही नहीं पीड़िता की चाची और मौसी की मौत के लिए भी विधायक को जिम्मेदार ठहराया गया था। पीड़िता के चाचा को भी हत्या की कोशिश के मामले में फंसाने की साजिश रची गई थी।
यह बात किसी से छिपी नहीं कि अपने रसूख के बल पर कुलदीप सिंह सेंगर ने न केवल मामले को दबाने से लेकर फैसले को प्रभावित करने की कोशिश की बल्कि सत्ता का सहारा लेकर लड़की का पूरा घर बर्बाद कर दिया। कौन नहीं जानता कि सेंगर की सियासत की फसल हर सत्ता में लहराई। बसपा, सपा के साथ भाजपा शासनकाल में उसने खूब मलाई चाटी। चार बार विधायक रहने वाले सेंगर ने दल बदल-बदल कर दबंग राजनीति की। अगर जनता और मीडिया का दबाव नहीं होता तो यह मामला उछलता नहीं लेकिन बचने की लाख कोशिशों के बाद सेंगर काे पुलिस ने दबोच ही लिया।
हैरानी तो तब हुई थी जब भाजपा सांसद साक्षी महाराज ने रेप के आरोपी सेंगर को जन्मदिन की मुबारकबाद दी थी और जेल में जाकर मुलाकात की थी। सेंगर को जन्मदिन की बधाई वाले ट्वीट पर बवाल होने के बाद साक्षी महाराज ने ट्वीट को डिलीट कर दिया था। लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर में बैठने वाले सांसद अगर बलात्कारियों का गुणगान करें, विजयीभव और लम्बी आयु की कामना करेंगे तो देश में क्या संदेश जाएगा।
जम्मू-कश्मीर के कठुआ में भी एक बच्ची से बलात्कार के आरोपियों के समर्थन में पीडीपी-भाजपा सरकार में मंत्री रहे भाजपा के ही लाल सिंह चौधरी और चन्द्रप्रकाश राव ने प्रदर्शन किया था, क्या सियासत में ऐसा करना जायज है? क्या इसे बर्दाश्त किया जा सकता है। अगर इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता तो फिर राजनीतिक दलों को सोचना होगा कि क्या किया जाना चाहिए।
दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट का फैसला आज के दाैर में काफी अहम है। पहले से कहीं अधिक विकृत हो रहे समाज में दोषियों को सख्त सजा दी ही जानी चाहिए। न्यायालय ने जुर्माने की 25 लाख की राशि में से दस लाख पीड़िता को देने का आदेश देकर पीड़िता और उसके परिवार की सुरक्षा तय की है। इसके अलावा सीबीआई खुद पीड़िता की सुरक्षा व्यवस्था करेगी, बल्कि हर तीन महीने में उसके जीवन पर खतरे का आकलन करेगी।
अदालत के फैसले से उम्मीद बंधी है कि बलात्कार और हत्या जैसे जघन्य मामलों में भी अब फैसले जल्दी आएंगे और पीड़िताओं काे इंसाफ मिलेगा। राजनीतिक दलों को चाहिए कि आपराधिक पृष्ठभूमिवाले लोगों को उम्मीदवार बनाए ही नहीं तभी राजनीति का अपराधीकरण बंद होगा। अगर ऐसे ही चलता रहा तो फिर सियासत और अपराध का अंतर ही समाप्त हो जाएगा।