बेमौसमी बारिश और ओलावृष्टि के चलते किसानों के लिए आई आफत के बीच अच्छी खबर यह है कि गेहूं की सरकारी खरीद के जो आंकड़े सामने आए हैं वह काफी उत्साहजनक हैं। 25 अप्रैल तक के आंकड़ों के अनुसार देश में 1.84 करोड़ टन गेहूं की खरीद की जा चुकी है जबकि पिछले वर्ष 25 अप्रैल तक 1.42 करोड़ टन खरीद ही हो पाई थी। इस वर्ष अब तक 42 लाख टन से अधिक गेहूं खरीदा जा चुका है। इस साल देश में गेहूं खरीद का लक्ष्य 3.42 करोड़ का रखा गया है। बारिश से फसलों की गुणवत्ता में आई गिरावट के चलते राज्य सरकारों ने गेहूं की सरकारी खरीद में निर्धारित मानकों में छूट देने का आग्रह किया था। जिस के चलते केन्द्र सरकार ने किसानों को राहत देने का फैसला किया। सरकार 80 फीसदी तक लस्टर लॉस वाली गेहूं की खरीद करेगी और 18 फीसदी तक सिकुड़े, टूटे गेहूं की भी खरीद करेगी। राज्य सरकारें फसलों के नुक्सान पर किसानों को मुआवजा भी दे रही हैं। इससे काफी हद तक किसानों के माथे पर चिन्ता की लकीरें दूर होती नजर आ रही हैं। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में गेहूं का काफी ज्यादा उत्पादन होता है। गेहूं की खपत देश के अलावा विदेशों में भी है। भारत कई देशों काे गेहूं निर्यात भी करता है। गेहूं का उत्पादन करने वाले किसानों के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात होती है गेहूं का समर्थन मूल्य। केन्द्र सरकार ने 2023-24 में गेहूं का समर्थन मूल्य 110 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ा कर 2125 रुपए कर दि या। जो कि पिछले वर्ष 2015 था। नरेन्द्र मोदी सरकार ने सभी अनिवार्य रबी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि को मंजूरी दे दी है। इससे उत्पादकों को उनकी ऊपज का लाभकारी मूल्य मिल सकेगा। मंडियों में अब गेहूं की आवक रोजाना बढ़ रही है।
हरियाणा, पंजाब में गेहूं खरीद में तेजी देखी जा रही है। हरियाणा में 8.22 लाख किसानों से गेहूं खरीद की गई है। वहीं, किसानों के खाते में पैसा भी लगातार भेजा जा रहा है। राज्य के किसानों के खाते में 39,050 करोड़ रुपए की धनराशि भेजी जाएगी। वहीं, हरियाणा में पिछले साल 25 अप्रैल तक 36.8 लाख टन गेहूं खरीदा था, इस बार आंकड़ा 52 लाख टन को पार कर गया है। राज्य में गेहूं की एमएसपी 2125 रुपए प्रति क्विंटल है। वहीं पंजाब में इस साल गेहूं खरीद में 7 प्रतिशत की बढ़ाैतरी दर्ज की गई है। पिछले साल 25 अप्रैल तक 78.4 लाख टन गेहूं खरीदी थी जो कि इस साल बढ़कर 83.6 लाख टन हो चुकी है। पंजाब में गेहूं खरीद का लक्ष्य 1.32 लाख टन तय किया गया है।
बेमौसमी बारिश के बावजूद फसलों को नुक्सान तो हुआ लेकिन उतना नुक्सान नहीं पहुंचा जितने की आशंका व्यक्त की जा रही थी। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार में भी गेहूं की सरकारी खरीद धड़ल्ले से हो रही है। गेहूं की सरकारी खरीद के आंकड़े खाद्यान्न सुरक्षा के लिए और महंगाई पर काबू पाने के लिए काफी राहत भरे हैं। पंजाब में प्रति हैक्टेयर 47.2 क्विंटल पैदावार हुई है। जो कि पिछले 42.17 क्विंटल से कहीं ज्यादा है। पिछले वर्ष 18.79 मीट्रिक टन गेहूं की खरीद हुई थी। जो काफी कम आंकड़ा था। जिसके परिणाम स्वरूप भारतीय खाद्य निगम के गोदामों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली और अन्य सरकारी योजनाओं के लिए जरूरी गेहूं के लिए ज्यादा स्टॉक नहीं बचा था। बाजार में आटे की कीमतें लगातार बढ़ रही थी। गेहूं की सरकारी खरीद के बाद सरकारी एजैंसियों की सबसे बड़ी जिम्मेदारी खरीदे गए गेहूं की संभाल करने की है। कई जगह देखा गया है कि खरीदा गया गेहूं मंडियों में खुला पड़ा हुआ है और बारिश से गेहूं भीग रहा है। व्यवस्था इस तरह की होनी चाहिए कि गेहूं की सरकारी खरीद के तुरंत बाद ही उसे गोदामों में भेज दिया जाए लेकिन सरकारी एजैंसियों की व्यवस्था में भ्रष्टाचार के कई छिद्र होने के चलते पूरा तंत्र नाकाम हो रहा है। कहीं गेहूं भरने के लिए बारदाना नहीं मिल रहा तो कहीं गेहूं को गोदामों में ले जाने की व्यवस्था तक नहीं हो पाती। खाद्यान्न सुरक्षा के लिए अन्न का एक-एक दाना बेशकीमती है। अगर इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो गेहूं की सरकारी खरीद का लक्ष्य ही अधूरा रह जाएगा।
कोरोना महामारी के काल में अगर भारत को किसी ने बचाया है तो वे अन्नदाता किसान ही थे। केन्द्र सरकार देश की 80 करोड़ गरीब जनता को मुफ्त राशन देने में सक्षम इसलिए हुई क्योंकि भारतीय गोदामों में खाद्यान्न का पर्याप्त भंडार पड़ा था। कोरोना काल में जब सब उद्योग-धंधे बंद हो गए थे तब कृषि क्षेत्र ही अपनी गति से दौड़ रहा था। जिसके बल पर ही भारत की अर्थव्यवस्था चलती रही। इसलिए जरूरी है कि किसानों को हुए नुक्सान की भरपाई पारदर्शिता से की जाए और मौसम के बदलते तेवरों के चलते किसानों को भी जागृत करने की जरूरत है कि वह फसली चक्र में बदलाव करें। फिलहाल गेहूं की सरकारी खरीद के आंकड़े आफत में राहत के समान हैं।