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न्यायपालिका पर अटूट विश्वास

भारत के लोकतन्त्र की यह विशेषता रही है कि जब भी इसे संभालने वाले स्तम्भों में से कोई एक कमजोर पड़ता दिखाई पड़ता है तो दूसरा स्तम्भ मजबूती के साथ उठ कर पूरी व्यवस्था को संभाल लेता है

भारत के लोकतन्त्र की यह विशेषता रही है कि जब भी इसे संभालने वाले स्तम्भों में से कोई एक कमजोर पड़ता दिखाई पड़ता है तो दूसरा स्तम्भ मजबूती के साथ उठ कर पूरी व्यवस्था को संभाल लेता है मगर इन स्तम्भों में स्वतन्त्र न्यायपालिका की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण रही है क्योंकि भारतीय संविधान ने इसे उस शक्ति से लैस किया है जिसके तहत पूरे देश में केवल संविधान के अनुसार शासन चलते देखना इसकी जिम्मेदारी है।  सर्वोच्च न्यायालय की यह शक्ति इतनी प्रभावशाली है कि यह संसद द्वारा बहुमत से बनाये गये किसी कानून को भी संविधान की कसौटी पर कस कर उसके वैध या अवैध होने की घोषणा कर सकता है।
स्वतन्त्र भारत में ऐसे कई अवसर आ चुके हैं जबकि स्वतन्त्र न्यायपालिका ने अपने इन संवैधानिक अधिकारों का इस्तेमाल करके सत्तारूढ़ सरकारों को न्याय का मार्ग सुझाया है क्योंकि राजनीतिक दल अक्सर अपनी बहुमत की सरकार बनने पर रास्ता भूल जाते हैं जिसकी वजह से उचित-अनुचित का भाव लुप्त हो जाता है और संविधान का सही व मूल भाव छूट जाता है जबकि कानून की रुह ऐसा करने से किसी भी सरकार को रोकती है। यह आश्चर्यजनक नहीं है कि आज सर्वोच्च न्यायालय ने हाथरस कांड को अपने प्रथम आंकलन में इसे दिल दहला देने वाली वीभत्स घटना कहा और पीड़ित परिवार की समुचित सुरक्षा के बारे में उत्तर प्रदेश सरकार को हिदायत दी लेकिन आश्चर्यजनक यह है कि योगी सरकार ने न्यायालय में दाखिल अपने हलफनामे में हाथरस कांड की सामूहिक बलात्कार की शिकार बाल्मीकि समाज की मृत 19 वर्षीय युवती के शव का अर्ध रात्रि के बाद किये गये अन्तिम संस्कार को उचित बताते हुए इसके लिए उसके परिवार की रजामन्दी का सबूत पेश करने की कोशिश की।  इसके साथ ही हलफनामे में अमेरिका के रंगभेदी आन्दोलन में उपजी परिस्थितियों को भी जस का तस जोड़ दिया। 
किसी सरकार द्वारा देश के सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल किया गया यह ऐसा पहला हलफनामा हो सकता है जिसमें हाथरस की परिस्थितियों से निपटने के लिए न्यूयार्क समेत अमेरिका के कई अन्य शहरों का हवाला दिया गया। इससे यह नतीजा तो निकाला जा सकता है कि उत्तर प्रदेश में नौकरशाही पूरी तरह लापरवाह हो चुकी है। हाथरस कांड से सही ढंग से न निपटने का आरोप भाजपा की ही महिला नेता सुश्री उमा भारती खुल कर लगा चुकी है। उमा भारती केन्द्र में मन्त्री रहने के साथ ही मध्यप्रदेश जैसे विशाल राज्य की मुख्यमन्त्री भी रह चुकी हैं। अतः उनके आंकलन को कोई भी आसानी से खारिज नहीं कर सकता। जिस तरह जिलाधीश ने पीड़िता के गरीब परिवार को धमकाया और उसके सदस्यों के साथ दुर्व्यवहार किया उससेे सीधे सरकार ही कठघरे में आ गई क्योंकि योगी सरकार का जोर शुरू से ही कानून व्यवस्था की स्थिति ठीक करने की तरफ रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तो उत्तर प्रदेश को अपराध मुक्त बनाना चाहते हैं लेकिन नौकरशाही पलीता लगाने में लगी है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पिछले 30 वर्ष के दौरान इस राज्य में जिस तरह समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के शासन में कानून-व्यवस्था को सत्ताधारी दलों का गुलाम बनाने की कोशिश की उसकी वजह से प्रदेश की पूरी नौकरशाही संविधान के प्रति उत्तरदायी होने के बजाय सत्तारूढ़ दलों की दासी जैसी बन चुकी है।
 यह प्रदेश उन चौधरी चरण सिंह का है जिन्होंने 1970 के करीब बतौर मुख्यमन्त्री एक जिले के जिलाधिकारी की अपनी पार्टी ‘भारतीय क्रान्ति दल’ के कार्यकर्ताओं द्वारा शिकायत करने पर यह कहा था कि  ‘‘तुम क्या ये समझते हो कि कलेक्टर मेरा नौकर है?  कान खोल कर सुन लो ये मुख्यमन्त्री का नौकर नहीं बल्कि कानून का नौकर है। जो कानून कहेगा ये वैसा ही करेगा।’’ इतना कह कर चौधरी साहब ने उस जिलाधिकारी को अभयदान दिया था और अपना काम ईमानदारी से करने की हिदायत दी थी। अब आरोप लग रहे हैं कि पीड़िता की शिकायत पर समय पर जिला प्रशासन ने ध्यान नहीं दिया। मीडिया ने सत्य को उजागर किया और पूरे देश को बताया कि जब रात्रि के ढाई बजे पीड़िता का दाह संस्कार पुलिस ने किया तो उसका पूरा परिवार अपने घर में कैद कर दिया गया था क्योंकि योगी जी एक ईमानदार व निष्कपट व्यक्ति हैं, इसी लिए उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय से अपनी निगरानी में सीबीआई जांच कराने की दख्वास्त की है।  आरोप ये भी लग रहे हैं कि नौकरशाही बलात्कार के मुद्दे पर भी गफलत पैदा कर रही है और पी​ड़िता द्वारा अपनी मृत्यु से पहले मजिस्ट्रेट के सामने दिये गये बयान का संज्ञान तक नहीं ले रही है और उस रिपोर्ट का हवाला दे रही है जो उसकी मृत्यु के 11 दिन बाद की गई।
कहा तो यह भी जा रहा है कि सर्वोच्च न्यायालय में ऐसा हलफनामा दायर करके नौकरशाही ने मुख्यमन्त्री को गुमराह किया गया है।  हकीकत यह है कि हाथरस कांड में जातिगत विद्वेष का कोई मामला नहीं है बल्कि यह निर्बल पर अत्याचार का कांड है मगर भारत की स्वतन्त्र न्यायपालिका प्रारम्भ से ही न्याय के तराजू को पूरा करके तोलती रही है जिसकी वजह से पूरे विश्व में हमारी न्यायपालिका की प्रतिष्ठा बहुत ऊंची है। अतः सर्वोच्च न्यायालय का यह कहना कि हाथरस कांड की जांच बिना किसी बाधा या रोकटोक के होगी, समस्त भारतवासियों में अटूट विश्वास को जिन्दा करता है।

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