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टीकाकरण और अर्थव्यवस्था!

कोरोना महामारी की दूसरी लहर के कहर का अर्थव्यवस्था पर कितना असर पड़ा, इस ​संबंध में अलग-अलग विचार व्यक्त किए जा रहे हैं। अर्थशास्त्रियों के एक वर्ग का मानना है

कोरोना महामारी की दूसरी लहर के कहर का अर्थव्यवस्था पर कितना असर पड़ा, इस ​संबंध में अलग-अलग विचार व्यक्त किए जा रहे हैं। अर्थशास्त्रियों के एक वर्ग का मानना है कि महामारी का अर्थव्यवस्था पर असर तो पड़ेगा लेकिन पिछले वर्ष की तरह बड़े पैमाने पर प्रभाव की सम्भावना नहीं है। यह भी कहा जा रहा है कि दूसरी लहर के चलते विभिन्न राज्यों में लाकडाऊन या इसी तरह की पाबंदियों का असर चालू वित्त वर्ष की तिमाही तक ही सीमित रहेगा। अब जबकि दूसरी लहर का प्रकोप कम होता दिखाई दे रहा है, जैसे ही स्थानीय स्तर पर ही पाबंदियां हटेंगी अर्थव्यवस्था फिर से गति पकड़ने लगेगी। अर्थशास्त्रियों के एक वर्ग का मानना है कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए अभी काफी समय लगेगा। अर्थव्यवस्था और टीकाकरण आपस में जुड़े हुए हैं। आबादी के बड़े हिस्से का वैक्सीनेशन हो जाने के बाद लोगों में विश्वास जागेगा और बाजार में मांग बढ़ेगी और वित्तीय स्थितियां धीरे-धीरे सरल होती जाएंगी। देशवासियों को यह याद रखना होगा कि पिछले वर्ष अक्तूबर के बाद इस वर्ष फरवरी तक संक्रमण की दर बहुत कम हो जाने तथा पाबंदियों को हटाने से अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन अच्छा होने लगा था। तब उम्मीद बंधी थी कि अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट आएगी। लेकिन दूसरी लहर इतनी विकराल हुई कि उसने सबके विश्वास को हिला कर रखा दिया। भारत में बहुत कम समय में समूची वयस्क आबादी को राहत पहुंचाना आसान काम नहीं है। लेकिन अब परिस्थितियों को देखते हुए सरकार कोरोना की चार और वैक्सीन जल्द से जल्द भारत लाने का प्रयास कर रही है। जून माह में वैक्सीन की उपलब्धता सहज होने की उम्मीद है। रूसी वैक्सीन स्पूतनिक का उत्पादन भारत में ही शुरू हो चुका है और माडर्ना, फाइजर जैसी वैक्सीन भी आ जाएगी। कोवैक्सीन का उत्पादन बढ़ाने के लिए भी कुछ कम्पनियों से अनुबंध किया गया है।
अर्थव्यवस्था को कैसे सम्भाला जाए इस संबंध में अर्थशास्त्री और वित्तीय संस्थानों के प्रमुख अपनी-अपनी राय व्यक्त कर रहे हैं। सीआईआई के अध्यक्ष उदय कोरक के जो सुझाव सामने आए हैं, उससे बहुत सारे अर्थशास्त्री और उद्योगपति सहमत नजर आ रहे हैं। उदय कोरक का कहना है कि अर्थव्यवस्था की प्रगति इस बात पर निर्भर करती है कि हम कोरोना से निपटने के लिए क्या रणनीति बनाते हैं। अगर हम हर महीने 15 करोड़ टीके लगाने में सफल हो जाते हैं तो फिर अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटेगी, पहले यह धीमे होगी और फिर यह तेजी पकड़ लेगी।
उदय कोरक का दूसरा विचार है कि सरकार को इस समय लोगों खासकर कमजोर वर्गों की आर्थिक सहायता करनी चाहिए। इसके लिए अगर सरकार को नोट छापने भी पड़ें तो उसे छाप लेने चाहिएं। अगर नोट छापने का यह सही वक्त नहीं है तो फिर कौन सा होगा? सरकार को गरीब लोगों के हाथों में पैसा पहुंचाना होगा और दूसरी ओर उद्योग जगत के लिए पैकेज को बढ़ाना होगा। गरीब की जेब में पैसा होगा तभी वह बाजार में कुछ खरीद पाएगा। खरीददारी बढ़ेगी तो ही उत्पादन बढ़ेगा। कोरोना काल में वर्तमान स्थिति यह है कि लगभग 23 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे जा चुके हैं। लोगों की नौकरियों का जाना, आय में कमी और काम धंधे बंद हो जाने से हताशा का माहौल है। इस हताशा को आशा में बदलना होगा। सरकार ने ऋणों की की-पैकेजिंग और कर्ज देने की घोषणाएं की हैं। बैंकों से कर्ज लोग तभी लेंगे जब उन्हें उम्मीद होगी कि उनका काम धंधा चलेगा। अर्थव्यवस्था से जुड़ी चिंताओं के बीच प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में बढ़ौतरी बड़ी राहत की बात है। सभी अनिश्चितताओं और कोरोना की तीसरी लहर की आशंकाओं के बीच देश में 82 अरब डालर का कुल विदेशी निवेश हुआ है। जो एक रिकार्ड है, यह आंकड़ा वित्त वर्ष 2019-20 की तुलना में दस प्रतिशत अधिक है। भारत का कृषि सैक्टर काफी मजबूत है। कृषि उत्पाद ही हमारी अर्थव्यवस्था का आधार बना हुआ है। महामारी के दौरान ही सरकार ने देश के उद्योग और व्यापार की कठिनाइयों को कम करने का प्रयास किया और यह प्रयास नए सिरे से करने होंगे। 13 क्षेत्रों में उत्पादन बढ़ाने की पहल भी करनी होगी। भारत में उत्पादन की असीम सम्भावननों के साथ बहुत बड़ा बाजार उपलब्ध है। इसमें कोई संदेह नहीं कि कोरोना की रफ्तार धीमेे होते ही बाजारों में मांग बढ़ेगी। केन्द्र सरकार को व्यापारिक और वित्तीय नीतियों को उदार बनाना होगा।

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