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गांव-गांव तक पहुंचे वैक्सीन

केन्द्र सरकार द्वारा अपनी वैक्सीन नीति में संशोधन करने के बाद अब सन्देहों का घेरा छंट जाना चाहिए और देश में यह सन्देश जाना चाहिए कि सरकार ने प्रत्येक वयस्क नागरिक को टीका लगाने का खाका इस प्रकार तैयार किया है

केन्द्र सरकार द्वारा अपनी वैक्सीन नीति में संशोधन करने के बाद अब सन्देहों का घेरा छंट जाना चाहिए और देश में यह सन्देश जाना चाहिए कि सरकार ने प्रत्येक वयस्क नागरिक को टीका लगाने का खाका इस प्रकार तैयार किया है कि सुदूर गांव में बैठे व्यक्ति को भी इसे पाने में किसी प्रकार की कठिनाई न हो। सरकार ने अगस्त महीने के लिए 44 करोड़ वैक्सीन का सप्लाई आदेश दो वैक्सीन उत्पादक कम्पनियों सीरम इंस्टीट्यूट व भारत बायोटेक को देकर साफ कर दिया है कि वह आगामी दिसम्बर महीने तक 18 वर्ष से ऊपर के 94.5 करोड़ लोगों के वैक्सीन लगाने का इरादा रखती है। सरकार का यह निश्चय अभी तक आधिकारिक रूप से प्रकट नहीं हुआ है परन्तु छिटपुट सरकारी सूत्र ही जिस तरह इसका बयान कर रहे हैं उससे यही आभास होता है कि मोदी सरकार इस लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ रही है। पुरानी वैक्सीन नीति के तहत अभी तक 18 से 44 साल की उम्र के लोग केवल कोवैक्सीन ऐप पर ही टीका लगवाने के लिए पंजीकरण कर सकते थे, अब इसमें संशोधन की रूपरेखा इस प्रकार तैयार की गई है कि गांवों और कस्बे के लोग सीधे टीकाकरण केन्द्र पर जाकर अपना पंजीकरण करा सकें। यह स्वागत योग्य कदम है।
 भारत में इंटरनेट की उपलब्धता स्माट मोबाइल फोनों की मार्फत ही है और इनका उपयोग देश की केवल 30 प्रतिशत आबादी ही करती है। हालांकि मोबाइल फोन पर सामूहिक रूप से पंजीकरण की सुविधाएं पंचायत व अन्य सामुदायिक समूहों की मार्फत भी उपलब्ध हैं मगर देश में निम्न मध्यम वर्ग व गरीबी की सीमा रेख से नीचे रहने वालों की संख्या को देखते हुए ऐसी सुविधाओं को पर्याप्त नहीं कहा जा सकता था। अतः सरकार ने जो भी सुधार इस दिशा में करने का प्रयास किया है उससे गरीब जनता का भला होगा। इससे कुछ राज्यों विशेषकर तमिलनाडु की भी वह शिकायत दूर होगी जिसमें इसके नवनिर्वाचित मुख्यमन्त्री श्री एम.के. स्टालिन ने यह मांग की थी कि राज्यों को वैक्सीन लगवाने को उत्सुक लोगों का पंजीकरण करने की छूट दी जाये। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि विगत 16 जनवरी से जब से सरकार ने 60 वर्ष से ऊपर की उम्र के और विभिन्न बीमारियों से ग्रस्त 45 वर्ष से ऊपर के लोगों के वैक्सीन लगाने का कार्यक्रम शुरू किया है तब से लेकर अब तक लगभग दो लाख लोग कोरोना संक्रमण से मर चुके हैं। ये तो सरकारी आंकड़ें हैं जबकि उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश, गुजरात आदि राज्यों के जीवन-मरण कार्यालयों के आंकड़े लिये जाये तो मृतकों की संख्या कई गुना अधिक जाकर बैठती है जिनमें उत्तर प्रदेश व बिहार में नदियों में बहाये गये व रेत में दबाये गये कोरोना शव शामिल नहीं हैं। इससे स्पष्ट होता है कि कोरोना की दूसरी लहर इतनी भयंकर और तेज थी कि हर स्तर पर चिकित्सा प्रणाली का तन्त्र टूट कर बिखर गया था। इस सन्दर्भ में उत्तर प्रदेश के आगरा शहर के श्री पारस अस्पताल की वह घटना आंखें खोल देने के लिए काफी है जिसमें इस अस्पताल के मालिक ने आक्सीजन की सप्लाई कम हो जाने पर बिस्तरों पर निढाल पड़े मरीजों पर ही प्रयोग किया जिससे 22 कोरोना मरीजों की मृत्यु हो जाने की आशंका व्यक्त की जा रही है। यह घटना हमें यही बता रही है कि कोरोना महामारी ने किस प्रकार चिकित्सा तन्त्र को खोखला बनाते हुए पेशेवर चिकित्सकों को भी अमानवीय व्यवहार के लिए प्रेरित किया।
 यह इस तथ्य का भी प्रमाण है कि भारत में कस्बे व जिला स्तर का चिकित्सा तन्त्र किस तरह बदहाल और बदनुमा है। अतः केन्द्र सरकार ने जो नये कदम उठाने का फैसला किया है उसे जमीनी समर्थन मिलना बहुत जरूरी है और कुछ लोगों के मन से वैक्सीन के बारे में आशंकाएं व भ्रान्तियां दूर करने का उचित समय है। क्योंकि कोरोना से बचाव का एकमात्र उपाय अभी तक केवल वैक्सीन ही है। इसलिए जितना जल्दी से जल्दी हम वैक्सीन लगवायेंगे उतना ही सुरक्षित होते जायेंगे।  यह इसलिए जरूरी है कि अभी तक केवल पांच करोड़ के लगभग लोगों को ही दो बार वैक्सीन लग पाई है और 18 करोड़ लोगों को एक बार ही टीका लगा है जबकि हमें 94.5 करोड़ लोगों को दोबार टीका लगाना है और उसके बाद दो वर्ष से ऊपर के देश के नौनिहालों के टीका लगाने का प्रबन्ध करना है जबकि पूर्ण सुरक्षा के लिए प्रत्येक व्यक्ति के दो टीके लगने जरूरी हैं। इसी वजह से सरकार भी चाहती है कि यह काम जल्दी होना चाहिए। खुशी की बात है कि सरकार की मंशा इस बारे में आगे का खाका तैयार करने की है मगर यह कार्य पूरी पारदर्शिता के साथ इस प्रकार होना चाहिए जिससे कोताही पाये जाने पर बाकायदा जिम्मेदारी और जवाबदेही तय हो सके। 
हमें एक बात हमेशा अपने दिमाग में रखनी चाहिए कि लोकतन्त्र में लोक कल्याण के कार्यों के लिए किसी भी दल की सरकार के पास कभी भी और किन्हीं भी परिस्थितियों में कमी नहीं होती है। इसका प्रमाण यह है कि अंग्रेजों द्वारा कंगाल बनाये गये विदेशी मदद के सहारे चलने वाले भारत में भी गरीबों को सस्ती दरों पर अनाज व अन्य आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराने का इंतजाम भी तत्कालीन सरकारों द्वारा बांधा गया था। बेशक आज का भारत 1955 का भारत नहीं है, अब 2021 चल रहा है और भारत दुनिया की तेजी से प्रगति करती छठी अर्थव्यवस्था है। अन्तरिक्ष से लेकर कम्प्यूटर व औषधि विज्ञान में यह दुनिया का सिरमौर माना जाता है। इसे कोरोना के झटके कमजोर तो कर सकते हैं मगर इसकी ‘अन्दरूनी ताकत’ को नहीं तोड़ सकते और वह ताकत यह है ​कि भयंकर कोरोना काल के दौरान भी हमारी कृषि वृद्धि दर बरकरार रही है। यही भारत की असली ताकत है। अतः जरूरी यह है कि हम अपने गांवों से लेकर शहरों तक के उन लोगों को वैक्सीन देने पर प्राथमिकता दें जो इस मुल्क में अपनी उत्पादनशील गतिविधियां जारी रख कर रौनकें बहाल रखते हैं। गांवों और कस्बों के लोगों को वैक्सीन केन्द्रों पर पंजीकरण कराने की छूट देकर सरकार ने अक्लमन्दी का काम किया है। इस अक्लमन्दी की ताबीर कविवर भवानी प्रसाद मिश्र की कविता की इन दो पंक्तियों में छिपी हुई है,
‘‘इससे पहले कि ‘घटनाएं’ हम तक आयें
जरूरी है कि हम ‘घटनाओं’ तक जायें !’’ 
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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