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प्रत्येक युवा को वैक्सीन

केन्द्र सरकार ने अपनी नई कोरोना नीति घोषित करके देश के सभी वर्गों की चिन्ताओं का संज्ञान लेते हुए इसमें आवश्यक संशोधनों का जिस तरह समावेश किया है उसका स्वागत इसलिए किया जाना चाहिए।

केन्द्र सरकार ने अपनी नई कोरोना नीति घोषित करके देश के सभी वर्गों की चिन्ताओं का संज्ञान लेते हुए इसमें आवश्यक संशोधनों का जिस तरह समावेश किया है उसका स्वागत इसलिए किया जाना चाहिए। संसदीय लोकतन्त्र में सरकार अन्ततः बहुमत व अल्पमत के समन्वित प्रयासों से लोक कल्याण के लक्ष्य को प्राप्त करती है। यही इस व्यवस्था का ध्येय होता है। नई कोरोना नीति में जिस प्रकार पूर्व प्रधानमन्त्री डा. मनमोहन सिंह द्वारा दिये गये सुझावों को समाहित किया गया है वह प्रशंसनीय इसलिए भी है क्योंकि लोकतन्त्र में गठित सरकारें अन्त में आम आदमी के प्रति ही जवाबदेह होती हैं औऱ उसका प्रतिनिधित्व संसद में विपक्ष व सत्तारूढ़ दल मिल कर ही करते हैं। नई कोरोना नीति में केन्द्र ने सभी 18 वर्ष से अधिक आयु के लोगों को कोरोना वैक्सीन लगवाने की छूट आगामी 1 मई से दी है। इसके साथ ही राज्य सरकारों को वैक्सीन उत्पादक कम्पनियों से सीधे उन्हें खरीदने के लिए अधिकृत किया है और अन्य परखी हुई विदेशी वैक्सीन के आयात करने की भी घोषणा की है। केन्द्र सरकार ने नई नीति के तहत निजी अस्पतालों को भी वैक्सीन लगाने के लिए अधिकृत किया है।
 केन्द्र सरकार फिलहाल 45 वर्ष से अधिक आयु के लोगों काे सरकारी केन्द्रों पर मुफ्त वैक्सीन लगा रही है जबकि निजी अस्पतालों में यह वैक्सीन पहले से सुनिश्चित मूल्य 250 रुपए पर लगवाई जा सकती है। नई नीति में एक विसंगति यह आ रही है कि राज्य सरकारें वैक्सीन उत्पादक कम्पनियों से इसके भाव पर तोल-मोल कर सकती हैं और नियत किये गये मूल्य पर उनकी सप्लाई ले सकती हैं। केन्द्र देश की दो वैक्सीन उत्पादक कम्पनियों सीरम संस्थान व भारत बायोटेक से उनके उत्पादन का कुल 50 प्रतिशत हिस्सा पूर्व की भांति नियत दामों पर खरीदती रहेगी जबकि शेष पचास प्रतिशत उत्पादन ये कम्पनियां निजी क्षेत्र व राज्य सरकारों को बेचेंगी। नई नीति में कहा गया है कि 18 से ऊपर आयु वर्ग के 45 वर्ष तक के लोगों के जो वैक्सीन लगेगी वह राज्य सरकारों व निजी क्षेत्र के हवाले होगी। इस बारे में अधिक स्पष्टता की जरूरत है क्योंकि केन्द्र सरकार व राज्य सरकारों के लिए वैक्सीन की कीमतें उत्पादक कम्पनियां अलग-अलग नहीं रख सकती हैं। 
लोकतन्त्र में सरकार का मतलब केन्द्र से राज्य में जाने पर  बदलता नहीं है। सरकार चाहे राज्य की हो या केन्द्र की हो वह आम लोगों द्वारा ही चुनी हुई होती है और इन्हीं लोगों के कल्याण के ​िलए केन्द्र ने वैक्सीन लगाने के नियम बदले हैं। राज्य सरकार और केन्द्र सरकार का ध्येय भी अपरिवर्तनीय लोक कल्याण ही है अतः जो कार्य केन्द्र निःशुल्क कर रहा है उसी कार्य को राज्य सरकार शुल्क लेकर करती है तो संविधान प्रदत्त सभी लोगों के समानिधाकारों में विकार पैदा होता है। जहां तक निजी क्षेत्र का सवाल है तो वह शुल्क लेकर सेवाएं देने के लिए बाजार मूलक अर्थव्यवस्था के नियमों से बांधा जा सकता है और इसमें कोई बुराई भी नहीं है। क्योंकि समाज का एक वर्ग यदि स्वयं को सुरक्षित रखने के लिए अपनी धनशक्ति का इस्तेमाल करता है तो यह उसका मूल अधिकार है परन्तु सरकार-सरकार के बीच भेदभाव नहीं किया जा सकता। वैसे भी भारत के संघीय ढांचे के तहत केन्द्र की सभी परियोजनाओं को लागू करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की ही होती है। कोरोना की भयावहता को देखते हुए ही केन्द्र ने युद्ध स्तर पर कोरोना से मुकाबला करने के लिए तय किया है कि निजी संस्थानों को भी वैक्सीन स्वयं खरीदने के लिए अधिकृत किया जाना चाहिए। मगर केन्द्र कोरोना को परास्त करने की अपनी जिम्मेदारी भी निभाना चाहता है और वह इस कार्य में राज्य सरकारों का सहयोग चाहता है। राज्य सरकारें ही यह शिकायत करती रही हैं कि वैक्सीन आपूर्ति पर उनका नियन्त्रण नहीं है और उन्हें केन्द्र की कृपा पर निर्भर रहना पड़ता है। नई नीति ने यह विसंगति दूर कर दी है किन्तु मूल्य निर्धारण का मामला भी उन पर छोड़ दिया है इससे राज्यों के विभिन्न जरूरतमन्द वैक्सीन लाभार्थियों के बीच भेदभाव होने का खतरा पैदा हो गया है।
 भारत की 65 प्रतिशत आबादी 35 वर्ष से कम आयु की ही है। अतः 18 से 45 वर्ष तक आयु के लोगों को कोरोना संक्रमण से बचाना बहुत जरूरी हो जाता है। केन्द्र ने देश की वैक्सीन उत्पादक कम्पनियों को 4600 करोड़ रुपए से अधिक धनराशि की मंजूरी देकर भी यह सिद्ध किया है कि उसकी मंशा अधिकाधिक लोगों को कम से कम समय के भीतर वैक्सीन लगाने की है। दरअसल आज जरूरत पूरे देश को एकमुश्त होकर कोरोना को हराने की है और हर हालत में अर्थव्यवस्था को और न गिरने देने की है। बड़े शहरों से जिस प्रकार उल्टा पलायन पुनः शुरू हो रहा है उससे सर्वाधिक राज्य सरकारें ही प्रभावित होंगी अतः समय रहते ही हमें राज्यों को वित्तीय रूप से मजबूत रखने का ढांचा खड़ा कर देना चाहिए। साथ ही प्रत्येक नागरिक की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि वह सरकारी प्रयासों में सकारात्मक सहयोग करे। 

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