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वैभव की दीवानी दिल्ली…!

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न जाने दिल्ली के पानी की तासीर कैसी है कि यहां का पानी जो पी लेता है वह दिल्ली वाला हो जाता है। देशभर के लोग यहां आते हैं और दिल्ली के मायाजाल में फंस जाते हैं। कबीर ने कहा है
‘‘माया महाठगिनी हम जानी’’
बकौल कबीर-माया महाठगिनी है। इस महाठगिनी के मोहपाश में बहुत लोग बंधे हैं। कभी महाकवि दिनकर भी इसी मोहपाश में बंधकर राज्यसभा सदस्य हो गए थे। मूलतः एक विद्रोही कवि थे। सारी कुरीतियों के विरोध में वह हमेशा खड़े दिखे। दिल्ली से भी व्यथित हो गए। दिल्ली का अतीत स्मरण करते हुए आंख भर आई। कभी ये पंक्तियां लिखीं
हमने देखा यहीं पांडू वीरों का कीर्ति प्रसार,
वैभव का सुख स्वप्न, कला का महास्वप्न अभिसार।
यहां कभी अपनी रानी थी, तू ऐसे मत भूल,
अकबर, शाहजहां ने जिसका किया स्वर्ण शृंगार।
लेकिन दिनकर ने जब दिल्ली छोड़ी तो दिल्ली की व्यथा को शब्द देना नहीं भूलेः
हाय! छिनी भूखों की रोटी,
छिना नग्न का अर्द्धवसन है,
मजदूरों के कोर छिने हैं,
वैभव की दीवानी ​दिल्ली
कृषक मेघ की रानी दिल्ली,
अनाचार, अपमान व्यंग्य की
चुभती हुई कहानी दिल्ली।
इन पंक्तियों को लिखे कई दशक बीत गए। दिल्ली का वैभव बढ़ता गया। साथ ही अनधिकृत कालो​िनयां भी बढ़ीं। दिल्ली वालों के पास बेशकीमती कारें आ गईं लेकिन उन्हें खड़ी करने के लिए जगह नहीं। समय के साथ-साथ सियासत भी बदली। अमीर और अमीर होते गए, गरीब और गरीब हो गए। सामाजिक क्रांति के आंदोलन के बीच आप पार्टी ने राजनीतिक दल के रूप में जन्म लिया आैर दिल्ली वालों ने उसे सर-आंखों पर बैठा कांग्रेस आैर भाजपा का सफाया कर दिया। भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ने के नाम पर सत्ता में आई आप पार्टी भी दिल्ली के वैभव की चकाचौंध में गुम हो गई लगती है। इस बात का अन्दाजा ताजा कैग रिपोर्टों से लगाया जा सकता है जिनमें न केवल राशन सिस्टम पर सवाल उठाए गए हैं बल्कि कई अन्य विभागों की पोल खोल कर रख दी है। आप की सरकार के नाक के तले जमकर भ्रष्टाचार हो रहा है तो फिर​ अन्य राजनीतिक दलों की पूर्ववर्ती सरकारों से इस पार्टी का शासन अलग तरह का बिल्कुल नहीं रहा। जब सब कुछ पूर्ववर्ती सरकारों की तरह ही हो रहा है तो इतने बड़े परिवर्तन का जनता को क्या फायदा मिला? राशन घोटाला हो गया, वह भी बिहार के चारा घोटाले की तर्ज पर। जिन वाहनों से राशन के गोदामों से फेयर प्राइस शॉप तक ढुलाई दिखाई गई वह वाहन स्कूटर-बाइक के रूप में पंजीकृत हैं। क्या हजारों टन राशन स्कूटर-बाइकों पर ढाेया जा सकता है।

इसका अर्थ यही है कि राशन उचित मूल्य की दुकानों पर पहुंचा ही नहीं। बीच में ही माल बिकवाया आैर पैसे बांट लिए गए। सड़कें बनाने के लिए मिला पैसा दूसरे कामों पर खर्च हुआ। सीवर का जो काम 2007 में होना था उसे 2017 तक जल बोर्ड करता रहा। 32 ब्लड बैंक बिना लाइसेंस के चल रहे हैं। हैरानी की बात तो यह है कि अधिकांश में रक्त की गुणवत्ता की जांच के लिए भी उपकरण नहीं हैं। आयुष अस्पतालों में न दवा, न इलाज लेकिन करोड़ों रुपए डाक्टरों के ट्रांसपोर्ट पर खर्च कर दिए। स्वच्छ भारत मिशन के तहत एक भी टॉयलेट नहीं बना। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने 50 मामलों की सीबीआई जांच कराने का ऐलान कर दिया है। क्या इन सब अनियमितताओं के लिए अफसरशाही जिम्मेदार है, अगर पूरा राशन सिस्टम माफियाओं के कब्जे में है, जिन्हें राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है, तो फिर खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री क्या कर रहे थे? आप विधायक कह रहे हैं कि दिल्ली के भीतर अफसरशाही बड़े पैमाने पर करप्शन कर रही है लेकिन एलजी साहब उनकी सुनते ही नहीं।

यह तर्क भी बेमानी है। कैग रिपोर्ट यह भी बताती है कि दिल्ली परिवहन निगम की 2682 बसें बिना इंश्योरेंस के दौड़ रही हैं। इससे निगम को 10.34 करोड़ का घाटा हो चुका है तो फिर दिल्ली के परिवहन मंत्री क्या कर रहे हैं। क्या केजरीवाल सरकार और उसके मंत्री जवाबदेही से बच सकते हैं ? दरअसल ​दिल्ली की राजनीति इतनी तिजारती हो चुकी है कि लोकतंत्र में लोक-लज्जा त्यागकर लोक-धन पर डाका डालना कब का शुरू हो चुका है। दिल्ली एक महानगर ही नहीं बल्कि देश की राजधानी भी है। अगर दिल्ली के गरीबों का राशन हड़प लिया जाता है तो फिर दिल्ली को विधानसभा का दर्जा देने पर भी सवाल उठने लाजिमी हैं। सत्ता की अपनी भाषा और संस्कृति होती है और सत्ता में बने रहने के कुछ नियम होते हैं। इसकी भाषा, संस्कृति आैर नियमों का प्रयोग किए बिना सत्ता नहीं चल सकती जबकि सत्ता प्राप्त करने के ​लिए कोई नियम नहीं। जब भी इनका प्रयोग छोड़ा जाएगा तो अराजकता फैलेगी ही। सत्ता प्राप्त करने के लिए विभिन्न हथकंडे इस्तेमाल किए जाते हैं। आप सरकार का सत्ता में आना भी सियासत का एक घटनाक्रम था लेकिन वाह-री दिल्ली तेरा मायाजाल, कोई उससे बच न सका।

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