वरुण गांधी का अगला कदम, सियासी बाज़ार गर्म!

वरुण गांधी का अगला कदम, सियासी बाज़ार गर्म!
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भारत जैसे विशालकाय देश के लिए चुनाव का वही महत्व है, जो किसी भी मरीज़ के लिए डॉक्टर द्वारा ऑपरेशन किए जाने से पूर्व और यहां डॉक्टर की भूमिका जनता की है! कुछ ऐसा ही केंद्रीय चुनाव में 543 लोकसभा सीटों के बारे में भी कहा जा सकता है, जिन में पीलीभीत, उत्तर प्रदेश की एक सीट भी मौजूद है, जहां से तीन बार के सांसद, वरुण फिरोज़ गांधी का टिकट काट कर जितिन प्रसाद को दे दिया गया। टिकट काटने से पूर्व भाजपा बड़े असमंजस में रही क्योंकि वरुण 543 सांसदों में से बस एक सांसद नहीं, बल्कि मौजूदा भारतीय सियासत का एक भारी भरकम नाम है जो मात्र गांधी परिवार सदस्य नहीं बल्कि एक ऐसा "सेल्फ मेड" सांसद है जिसका अपने क्षेत्र में सिर्फ़ वर्चस्व ही नहीं, अपितु पूर्ण मान-सम्मान भी है, क्योंकि उन्होंने अपने पद की गरिमा को अंत तक गरमाए रखा।
पीलीभीत कन्फ्यूजन में रहा
यदि भाजपा को उनका टिकट काटना था तो बहुत पूर्व करना था क्योंकि यहां प्रथम चरण में चुनाव होना था और भाजपा की हिम्मत नहीं हो रही थी वरुण का टिकट काटने की, जिसका कारण है की गांधी परिवार में यदि मोती लाल नेहरू, पण्डित नेहरू और इंदिरा गांधी के दिमागों का मिश्रण करें, तब जाकर वरुण गांधी बनेगा! इतने संकोच और विलय के बाद पीलीभीत के टिकट का ऐलान कर भाजपा ने जितिन प्रसाद की राहें भी दुशवार कर दीं क्योंकि उन्हें भी मतदाताओं से मिलने का समय नहीं मिला। हो सकता है, मोदी के चेहरे पर वे सीट निकाल लें, जो कि इतना सरल नहीं क्योंकि आज भी वरुण एक जीवंत फैक्टर हैं और उनका चेहरा पीलीभीत निवासियों के मन में मौजूद है।
भाजपा में वरुण पर अब भी मंथन
अब प्रश्न यह है कि वरुण का टिकट क्यों काटा गया। भाजपा का कहना है कि उनके टिकट कटने का कारण कुछ "पार्टी विरोधी" कथन थे, मगर लोग समझते हैं कि उनका टिकट इस लिए काटा गया क्योंकि वे सच बोल रहे थे और दबे-कुचले वर्गों, संविदा कर्मियों, किसानों आदि के अतिरिक्त उन बातों पर भी विचार व्यक्त कर रहे थे, जो भाजपा की लाईन से पृथक थे। वैसे पार्टी कोई भी हो, यदि कोई उसकी विचारधारा से अलग चलने लगता है तो उसे सजा तो दी ही जाती है! यदि ऐसा नहीं होता तो आज ईवीएम में उनके नाम में चौथी लोकसभा पर मुहर लग चुकी होती! राजनीति में पार्टी लाईन से भटकने का खामियाजा सब जानते हैं, मगर भाजपा उनका टिकट काट कर बैक फुट पर है, क्योंकि जानती है कि आदमी तो सच्चा है, कहीं और फिट किया जाए! कहीं न कहीं वरुण के टिकट को काट कर वह घबराहट अवश्य है भाजपा में जो मीनाक्षी लेखी, वी के सिंह आदि के टिकट काटने में नहीं देखने में आई।
क्या रायबरेली से उतरेंगे वरूण?
भाजपा में अब गूढ़ विचार हो रहा है कि वरुण गांधी को रायबरेली से चुनाव में उतार दिया जाए, जहां से कांग्रेस में धारणा बन रही है, प्रियंका गांधी को उतारे जाने की। इस पर वरुण का कहना है कि भले ही उनकी मां मेनका संजय गांधी छोड़ आई हों वे 10 जनपथ की गलियां, मगर परिवार का तो हिस्सा हैं ही वरुण और प्रियंका। वैसे भी वरुण और प्रियंका में मधुर संबंध हैं और वरुण के निकट प्रियंका का रिश्ता "बडी आपा" (बड़ी बहन) का है तो वे केवल एक सांसद अथवा मंत्री बनने के लिए अपने पारिवारिक रिश्तों की आहुति नहीं देने वाले जो उनके अंदर मौजूद इन्सानियत का पता देता है। इसके अ​ितरिक्त पीलीभीत में वरुण के चाहने वाले वालों की कमी नहीं, क्योंकि जिससे वह एक बार बात कर लेते, ऐसी गर्मजोशी से वे बात करते हैं कि वह उनका दीवाना हो जाता है। इस मामले में वे अपनी दादी इंदिरा और परनाना, नेहरु से आगे हैं। इसका प्रभाव, पीलीभीत के पास पड़ोस के क्षेत्रों बरेली, मुरादाबाद, आंवला, खेरी आदि में भी है, क्योंकि इन सभी क्षेत्रों में या उनके निवासियों के लिए जब भी उन्होंने कुछ कहा या करा, वे उनके दिलों में बस गए।
भाजपा से वैमनस्य
भाजपा सर्कल में यह तो सभी जानते थे कि वरुण के बयानों के कारण पार्टी से उनका वैमनस्य घर कर रहा है, मगर, बकौल मेनका गांधी, जिनका पूर्ण जीवन संघर्ष पूर्ण रहा है, यदि प्रधानमंत्री मोदीजी उनके बेटे से नाराज़ थे तो कम से कम वरुण को अपना बेटा समझ टिकट काटने से पूर्व, गाल पर एक इधर लगाते, एक उधर और आगे रहने के लिए बोल कर टिकट दे देते! मेनका का कहना है कि जब वरुण तीन वर्ष के थे तो उनकी उंगली पकड़ कर पीलीभीत आए थे और पीलीभीत उसी प्रकार से गांधी परिवार का अटूट अंग है जैसे रायबरेली-अमेठी या अमेठी! वैसे यहां गौर करने की बात यह है कि अगर रायबरेली वरुण बनाम प्रियंका हो गया और वरुण की जीत हुई तो कांग्रेस पार्टी के जो प्रियंका के सहारे पुनर्जीवन के आसार हैं, ऐसा वरुण शायद नहीं चाहते, भले ही भाजपा की ऐसी ही इच्छा हो।
कुछ समय पूर्व वरुण गांधी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले थे और भाजपा सरकार द्वारा की जा रही कुछ गतिविधियों को लेकर अपना वैमनस्य ज़ाहिर किया था और उस समय भी प्रधानमंत्री ने उन्हें पीलीभीत के टिकट के बारे में सफ़ाई से नहीं बताया कि उनकी मंशा क्या है। इस मामले में वरुण और मेनका के सब्र-ओ-तहम्मुल अर्थात् सहनशीलता की प्रशंसा करनी चाहिए कि बावजूद बेटे के टिकट कटने पर दोनों ने कोई राजनीतिक ड्रामा या उठा-पटक नहीं की।
किसी भी पार्टी के किसी नेता या कार्यकर्त्ता को पार्टी विरोधी गतिविधियों के बदले में उसे निष्कासित करना आसान काम होता है, मगर भाजपा ऐसा नहीं कर सकती क्योंकि उन्होंने पार्टी के विरुद्ध कुछ नहीं किया है, सिवाय इसके कि जन हित में बोलते रहे हैं। वरूण आज कह सकते हैं कि चित्त भी उनकी पट भी उनकी और भाजपा का सर कढ़ाई में! टिकट न पाने पर आज वरूण का कद बढ़ा है कि पीलीभीत में उनको "शहीद" माना जा रहा है! पुराने वफादार, वरुण को टिकट न देना भाजपा के लिए भारी पड़ सकता है, अतः गेंद पार्टी के पाले में है और जनता प्रतीक्षा में है कि किस प्रकार का चौका, छक्का अन्यथा कैच आउट मैनेज करती है भाजपा! जय हिंद! भारत माता की जय!

– फ़िरोज़ बख्त अहमद

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