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पेट्रोल-डीजल पर वैट का सवाल

प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने राज्यों से पेट्रोल व डीजल पर बिक्री कर (वैट) घटाने की जो अपील की है उसके दो पहलू हैं। पहला यह कि राज्य सरकारें ऐसा करके अपने प्रदेशों के उपभोक्ताओं को राहत प्रदान कर सकती हैं

प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने राज्यों से पेट्रोल व डीजल पर बिक्री कर (वैट) घटाने की जो अपील की है उसके दो पहलू हैं। पहला यह कि राज्य सरकारें ऐसा करके अपने प्रदेशों के उपभोक्ताओं को राहत प्रदान कर सकती हैं क्योंकि अन्तर्राष्ट्रीय  बाजार में कच्चे तेल की कीमतें अभी भी काफी ऊंची चल रही हैं। इस सन्दर्भ में प्रधानमन्त्री का कहना है कि विगत वर्ष नवम्बर महीने में केन्द्र सरकार ने इन दोनों वाहन ईंधनों पर लगने वाला आयात शुल्क व उत्पाद शुल्क तब घटाया था जब विश्व बाजार में कच्चे तेल की कीमत आसमान छू रही थी और 120 डालर प्रति बैरल से भी ऊंची हो गई थी। हालांकि फिलहाल कच्चे तेल की कीमतें थोड़ी नीचे आ चुकी हैं और 100 डालर प्रति बैरल के नीचे चल रही है मगर भारत में पेट्रोल की कीमतें इसके बावजूद 100  रुपए प्रति लीटर से ऊपर निकल चुकी हैं । इसी प्रकार डीजल के भाव भी इसके आसपास घूम रहे हैं। दूसरी तरफ रूस- उक्रेन युद्ध छिड़ने के बाद भारत में वैश्विक बाजारों से आने  वाले माल की सप्लाई कड़ी भी अस्थिर होती नजर आ रही है जिसकी वजह से भविष्य की स्थिति डांवाडोल हो सकती है।
 पेट्रोल-डीजल के मामले में सबसे अहम सवाल यह है कि भारत इन ईंधनों की आपूर्ति 85 प्रतिशत के लगभग आयात करके पूरी करता है। बाजारमूलक अर्थव्यवस्था का दौर शुरू होने के बाद भारत में वित्तीय संशोधन व सुधार का दौर चलने के बाद घरेलू व व्यावसायिक वाहनों को खरीदने की प्रक्रिया जिस तरह बैंक व अन्य वित्तीय संस्थानों से प्राप्त वित्तीय मदद के बूते पर बदली है उससे कम से कम हर महानगर में सामान्य आय वर्ग के परिवार तक के पास अपना चौपहिया वाहन या कार आ चुकी है। जबकि दुपहिया मोटर वाहनों  की तो कोई गिनती ही नहीं है। आज का भारत गांवों तक के स्तर पर पूरा बदला हुआ लगता है क्योंकि कस्बों में मोटर साइकिलों व स्कूटरों व स्कूटियों की संख्या इतनी अधिक हो चुकी है कि साइकिल कहीं नजर ही नहीं आती। विकास की तरफ बढ़ते भारत की यह सतत प्रक्रिया है। किसी भी तेजी से विकास करती अर्थव्यवस्था की भी यह पहचान होती है। 
आजादी के समय 1957 में पूरे भारत में जहां केवल पांच लाख ट्रैक्टर थे वहीं अब हर म​हीने ही इतने नये ट्रैक्टर किसान  ले आते हैं। जाहिर इस वजह से कृषि क्षेत्र में भी डीजल की खपत बढ़ रही है। लेकिन यह सब कार्य अलगाव में नहीं हो रहा है बल्कि इन सब गतिविधियों का असर समूची अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है। ऐसा भी नहीं है कि यह कार्य एक दम से हआ हो बल्कि पिछले तीस वर्षों से यह प्रक्रिया चल रही है और भारत की अर्थव्यवस्था मजबूती की तरफ बढ़ रही है। इसका नतीजा यही निकलता है कि देश के विकास में हर राज्य की हिस्सेदारी है और अपनी क्षमता के अनुसार वह इसमें अपना योगदान देता है। जहां तक पैट्रोल-डीजल के घरेलू मूल्यों का सवाल है तो इन्हें अब पूरी तरह अन्तर्राष्ट्रीय मूल्यों से जोड़ दिया गया है और सरकार पहले संरक्षित अर्थव्यवस्था के दौर में इनका उपयोग करने पर जो सब्सिडी देती थी उसे समाप्त कर दिया गया है। एेसा बाजार मूलक अर्थव्यवस्था की मांग पर ही किया गया है । लेकिन लोकतन्त्र में सरकारों का काम सारा दारोमदार केवल बाजार की ताकतों पर ही लोक कल्याण को छोड़ना नहीं है बल्कि समाज के गरीब वर्ग के लोगों के हितों का ध्यान रखना उसी का कर्त्तव्य होता है। इसी वजह से गरीबों  के कल्याण के लिए केन्द्र की तरफ से विभिन्न मदद करने वाली योजनाएं चलाई जा रही हैं जो गरीब अन्न स्कीम से लेकर ग्रामीण रोजगार सुलभ कराना तक शामिल है। बेशक बहुत सी परियोजनाओं में राज्य सरकार की हिस्सेदारी भी होती है परन्तु मुख्य अंश केन्द्र का ही रहता है। 
भारत में राजस्व भागीदारी की जो योजना है उसमें यह सुनिश्चित किया गया है कि केन्द्र सरकार जितनी भी राजस्व  वसूली करेगी उसका 42 प्रतिशत राज्यों को दिया जायेगा। पांच साल पहले जीएसटी प्रणाली लागू होने पर हालांकि राज्यों ने अपने सभी वित्तीय अधिकार इस परिषद को दे दिये थे। इस प्रकार राज्यों के  पास केवल पेट्रोल-डीजल व मदिरा  पर बिक्री कर ( वैट) लगाना बचा था। अतः राज्य सरकारें अपनी राजस्व जरूरतों को देखते हुए इन उत्पादों पर सहूलियत के हिसाब से शुल्क दरें तय करती हैं। जिसकी वजह से इन वस्तुओं की हर राज्य में अलग-अलग कीमत होती है।  हालांकि पेट्रोल की कीमतें बढ़ने के दौर में पिछले महीनों में कुछ राज्य सरकारों ने भी बिक्री कर में कमी की थी परन्तु केन्द्र सरकार ने वर्ष नवम्बर महीने में उत्पाद शुल्क में लगभग दस रुपये प्रति लीटर की कमी थी। अर्थव्यवस्था की स्थिति कोरोना के बाद बामुश्किल सुधरती हुई नजर आ रही है अतः केन्द्र सरकार को डालर-रुपये की विनिमय दर से लेकर सभी आर्थिक मानकों को संभाले रखना है जिससे विकास वृद्धि की दर में सुधार संभव हो सके। इसलिए जिन राज्य सरकारों ने अपने राज्य में पेट्रोल पर वैट की दर ज्यादा लगा रखी है उसे उन्होंने लोगों के हित में कम करना चाहिए जिससे सामान्य व्यक्ति राहत की सांस ले सके।

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