भगौड़े कारोबारी विजय माल्या के खिलाफ कई एजेंसियों की जांच के जोर पकडऩे के बाद अब बड़ों-बड़ों की पोल खुल रही है। बैंकों के कई एग्जीक्यूटिव, डायरेक्टर और सरकारी अधिकारी जांच के घेरे में हैं। एसएफआईओ द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के आधार पर माल्या की किंगफिशर एयरलाइन्स को बिना आधार के ऋण देने में बैंक अधिकारियों की भूमिका और माल्या से कुछ सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत की जांच की जा रही है। किंगफिशरकम्पनी का बही-खाता कभी भी अच्छा नहीं था। उसकी क्रेडिट रेटिंग भी ऋण देने के लिए आवश्यक स्तर से कम थी। उसके बाद भी बैंकों ने प्रक्रिया को अनदेखा करते हुए ऋण दिया। माल्या आईएएस, आईपीएस अधिकारियों के सम्पर्क में रहता था। अपना रुतबा बनाए रखने के लिए उन्हें महंगे गिफ्ट देता था। इस तरह उसने कार्पोरेट ऋण स्वीकृत कराने के लिए वित्त मंत्रालय के अधिकारियों से सम्पर्क कायम किया। यही नहीं, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ बड़ौदा और बैंक ऑफ इंडिया के अधिकारियों पर दबाव बनवाया और कई करोड़ का ऋण पास करा लिया। उसका इरादा ऋण वापस करने का था ही नहीं, इसीलिए उसने ऋण के पैसे से अमेरिका, ब्रिटेन, इटली, फ्रांस, स्विट्जरलैंड और आयरलैंड जैसे 7 देशों में सम्पत्तियां खरीद लीं।
भगौड़े कारोबारी ने बैंकों से लिए ऋण के पैसे से अपने शौक पूरे किए। माल्या ने फार्मूला-वन में ऋण का पैसा लगा दिया। उसकी शानो-शौकत के किस्से आज भी काफी चर्चित हैं। हाल ही में उसे लन्दन में मनी लांड्रिंग केस में गिरफ्तार किया गया था और एक घण्टे के भीतर ही उसे बेल भी मिल गई। पहले अप्रैल 2017 में भी उसे गिरफ्तार किया गया था और उसे बेल भी मिल गई थी। अब केस चलता रहेगा और माल्या लन्दन में ऐश करता रहेगा। इस देश का दुर्भाग्य ही रहा कि माल्या उच्च सदन राज्यसभा का सांसद बना और देश का पैसा लेकर भाग गया। विजय माल्या को सांसद किसने बनवाया, इसके लिए राजनीतिक दल भी जिम्मेदार रहे। 2002 में माल्या राज्यसभा के लिए कांग्रेस और जनता दल सेक्यूलर के समर्थन से कर्नाटक से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में निर्वाचित हुआ। वर्ष 2010 में भारतीय जनता पार्टी और जनता दल सेक्यूलर के समर्थन से विजय माल्या दूसरे कार्यकाल के लिए फिर से निर्वाचित हुआ। उसने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरूआत अखिल भारत जनता दल के एक सदस्य के तौर पर की थी और वर्ष 2003 में वह सुब्रह्मण्यम स्वामी के नेतृत्व में उनकी जनता पार्टी में शामिल हुआ था।
अहम सवाल यह है कि आखिर वह किस योग्यता के आधार पर साल 2002 में राज्यसभा के लिए निर्दलीय सदस्य के तौर पर चुना गया। यह अत्यन्त दु:खद पहलू है कि राज्यसभा कहने को तो उच्च सदन जरूर है, परन्तु राजनीतिक दल अपने मुनाफे के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं। माल्या को उच्च सदन का सम्मानित सांसद बनाकर किसको क्या मिला, यह तो वे ही जानते हैं लेकिन यह तो उच्च सदन का अपमान ही है। दुनिया का हर ऐशो-आराम अपने कदमों में रखने वाला विजय माल्या जिसे ‘किंग ऑफ गुड टाइम’ कहा जाता था, के बुरे दिन शुरू हुए तो उसे देश से जाने दिया गया। बैंकों ने डिफाल्टर घोषित किया तो राज्यसभा ने भी उसे निष्कासित कर दिया। अपनी रंगीन मिजाज जिन्दगी के लिए मशहूर रहे माल्या को पेज-थ्री पार्टियों में अक्सर मॉडल्स के साथ देखा जाता था। माल्या को लग्जरी कारों का भी बेहद शौक रहा। किंगफ़िशर कैलेंडर गर्ल की मॉडलों के साथ उनकी तस्वीरें हमेशा ही सुर्खियां बटोरती रहीं। माल्या के पास 250 से ज्यादा लग्जरी और विंटेज कारें हुआ करती थीं।
एक वक्त था जब विजय माल्या दुनिया की सबसे बड़ी शराब बनाने वाली कम्पनी यूनाइटेड स्प्रिट्स के चेयरमैन थे, जो अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में भारत का नेतृत्व करती थी। किंगफ़िशर एयरलाइन्स को घाटा हुआ तो उन्हें अपनी कम्पनी गंवानी पड़ी। विदेशी कम्पनी डीपाजियो ने 2013 में माल्या की कम्पनी की हिस्सेदारी खरीद ली। बाद में माल्या ने 510 करोड़ लेकर कम्पनी के चेयरमैन पद से इस्तीफा दे दिया। देश के कई पूंजीपति अपने पैसे और वैभव के बल पर राज्यसभा के लिए निर्वाचित होते आए हैं। उन्हें सहयोग देते हैं राजनीतिक दल। इस हमाम में सभी राजनीतिक दल नग्न हैं। सभी ने पूंजीपतियों द्वारा दी गई सुख-सुविधाओं का मजा लूटा है। राज्यसभा के लिए निर्वाचित होने के लिए पूंजीपति कितनी कीमत अदा करते होंगे, इसका अनुमान ही लगाया जा सकता है।
जिन लोगों ने माल्या को राज्यसभा का सांसद बनवाया, उन्होंने क्या लाभ उठाया, यह भी देश की जनता जानना चाहती है। अब प्रवर्तन निदेशालय, सीबीआई की टीमें मुकद्दमा लडऩे के लिए लन्दन जाती हैं और लौट आती हैं। एक आम आदमी को कुछ हजार का ऋण देने के लिए गारंटर और ऋण लेने वाले व्यक्ति को अपनी सम्पत्ति के कागजात तक बैंकों में जमा कराने पड़ते हैं। बैंक वाले कुछ फीसदी दलाली खाकर ही ऋण मंजूर करते हैं जबकि विजय माल्या के मृतप्राय: पड़े व्यवसाय के लिए 9 हजार करोड़ का ऋण दे दिया गया। पहले से ही तय था कि रकम को डूबना ही था तो फिर अब विधवा विलाप क्यों? क्या इतना शोर-शराबा देश की जनता को दिखाने के लिए किया जा रहा है?