विगत दिन लखनऊ में समाजवादी पार्टी की तथाकथित वर्चुअल रैली में जिस प्रकार की भीड़ देखी गई वह वास्तव में चिंता का विषय है क्योंकि कोरोना की तीसरी लहर ने पूरे देश में ही कोहराम मचाया हुआ है और चुनाव आयोग ने जिस दिन पांच राज्यों के चुनावी कार्यक्रम की घोषणा की थी उसी दिन स्पष्ट कर दिया था कि 15 जनवरी तक किसी भी प्रकार की राजनीतिक रैलियों या सभा अथवा पदयात्रा या ऐसे ही अन्य प्रकार के आयोजनों पर प्रतिबंध लगा रहेगा। निर्वाचन आयोग ने इस प्रतिबंध को 22 जनवरी तक के लिए बढ़ा दिया है।
चुनाव आयोग के निर्देशों का उल्लंघन कर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव ने अपनी ही पार्टी के तमाम कार्यकर्ताओं और नेताओं को गलत संदेश दिया, वास्तव में समाजवादी पार्टी लखनऊ में आयोजन को जिस रूप में प्रस्तुत कर रही है वह भी उचित नहीं है। पार्टी का दावा है कि उसने अपने लखनऊ कार्यालय में पत्रकार सम्मेलन का आयोजन किया जिसे देखने, सुनने के लिए भारी संख्या में लोग पार्टी कार्यालय परिसर में ही इकट्ठे हो गए। हकीकत यह है कि इस दिन 14 जनवरी को भारतीय जनता पार्टी इस सरकार में कल तक मंत्री रहे स्वामी प्रसाद मौर्य, धर्मवीर सिंह भाजपा छोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल होने का ऐलान कर रहे थे और इसी के लिए पत्रकार वार्ता आयोजित की गई थी अतः यह कहना कि लोग पार्टी कार्यालय परिसर में उत्साह में इकट्ठे हो गए थे उचित जान नहीं पड़ता है। मूल प्रश्न यह है की राज्य में आदर्श चुनाव आचार संहिता के लागू होने के बाद चुनाव आयोग के निर्देशों का राजनैतिक दल किस प्रकार उल्लंघन कर सकते हैं। यही विषय समाजवादी पार्टी की चुनाव आयोग की अवहेलना करने के लिए उपयुक्त माना जाएगा, जिसे देखते हुए लखनऊ पुलिस ने 14 जनवरी की घटना के संदर्भ में प्राथमिकी दर्ज की है इसकी विवेचना इस प्रकार से होनी चाहिए कि भविष्य में कोई भी राजनीतिक दल चुनाव आयोग के निर्देशों का उल्लंघन करने की हिम्मत ना करें। हालांकि चुनाव आयोग के बाद भी ऐसे अधिकार हैं कि वह राजनीतिक दलों को दंडित कर सकता है। बेशक यह अधिकार फौजदारी नहीं है परंतु राज्य में चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष हो इसके लिए आयोग आवश्यक कदम उठा सकता है। दूसरा सवाल यह है कि अभी मतदान होने में 1 महीने के लगभग का समय बाकी है इसे देखते हुए कोरोना संक्रमण के चलते चुनाव आयोग को ऐसी व्यवस्था करनी होगी कि लोग कम से कम संख्या में इकट्ठे होकर राजनीतिक शिक्षा प्राप्त करें इसके लिए सूचना टेक्नोलॉजी के इस दौर में इंटरनेट व मोबाइल फोन की मार्फत लोगों को जोड़ने की सुविधा प्राप्त है जिसका उपयोग अधिक से अधिक किया जाना चाहिए और चुनाव आयोग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि राजनीतिक दल अपनी मनमानी करने से बाज आएं और उसके निर्देशों का बाकायदा पालन करें। हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है कि राजनीतिक दलों ने आयोग के निर्देशों का पालन करने में कोताही बरती हो क्योंकि जब कोरोना की पहली लहर के दौरान बिहार में चुनाव हुए थे और दूसरी लहर के दौरान पश्चिम बंगाल में चुनाव हुए थे तो कोरोना से हजारों लोग राजनीतिक रैलियों की वजह से ही पीड़ित हुए थे जिसे देखते हुए चुनाव आयोग ने शक्ति बरती थी और राजनीतिक पार्टियों पर अपने बनाए नियमों का पालन करने पर भी जोर दिया था। ऐसी स्थिति दोबारा किसी कीमत पर ना बने इस तरफ राजनीतिक पार्टियों को भी ध्यान देना चाहिए क्योंकि जिन मतदाताओं को वह जाने की बातें कर रहे हैं उन्हीं की जान को खतरा हो सकता है। हमने यह भी देखा कि पिछले साल हुए चुनाव में राजनीतिक दल ही आपस में एक दूसरे पर किस प्रकार दोषारोपण कर रहे थे और कोरोना के लिए एक दूसरे को जिम्मेदार तक ठहरा रहे थे।
इस हालत तक दोबारा पहुंचने से हमें बचना होगा और ध्यान रखना होगा की मतदाता किसी भी राजनीतिक दल की समर्थक हो सकते हैं मगर सबसे पहले वह भारत के नागरिक और अपने नागरिकों की सुरक्षा करना राजनीतिक दलों का ही पहला कर्तव्य बनता है क्योंकि कल को नागरिकों के समर्थन से ही वे सत्ता में आकर उन्हें सुरक्षा देने की गारंटी देंगे। अतः यह बहुत जरूरी है कि राजनीतिक दल अपनी जिम्मेदारी को गंभीरता से समझें और कोरोना संक्रमण के चलते अपने निजी स्वार्थों को नियंत्रण में रखें। आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद चुनाव आयोग की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि वह कानून व्यवस्था की मशीनरी को दुरुस्त रखने के लिए संविधान प्रदत्त सभी अधिकारों का इस्तेमाल करें क्योंकि जिन पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं उनमें चाहे किसी भी पार्टी की सरकार हो मगर चुनाव आयोग ही अब वास्तविक प्रशासक है और राज्य सरकारें केवल दैनिक बंदोबस्त के लिए प्राधिकृत हैं।
भारत की संवैधानिक व्यवस्था इतनी खूबसूरत है कि चुनावों के समय राजनीतिक दलों की सरकारें स्वयं निष्प्रभावी हो जाती है और संविधान से शक्ति लेने वाले चुनाव आयोग के हाथ में पूरी ताकत आ जाती है। इस प्रणाली को राजनीतिक दलों को ही मजबूत बनाना है क्योंकि लोकतंत्र में वही सत्ता पर आकर संविधान के प्रावधानों को लागू करती हैं।