देश में लगातार प्राकृतिक आपदाएं तो कहर बरपाती ही हैं, साथ ही साथ महामारियां भी लोगों की जान ले रही हैं। समय रहते अगर हम नहीं चेते तो आने वाले समय में हमें भयंकर दुष्परिणामों को झेलने के लिए तैयार रहना होगा। हर वर्ष भारत में कोई न कोई वायरस खौफ पैदा कर देता है। हम कुछ दिन सतर्क रहते हैं और महामारी का प्रकोप शांत होते ही हम सतर्क रहना छोड़ देते हैं। भारत हर वर्ष वायरस से जूझ रहा है। केरल सरकार ने घातक निपाह वायरस की फिर वापसी की पुष्टि की है। पिछले वर्ष निपाह वायरस कोझिकोड के पेरम्बरा शहर में मिला था और हफ्ते भर में ही 17 लोगों की मौत हो गई थी।
केरल सरकार ने इस वायरस पर काबू पाने के लिए लगातार अभियान चलाया और 2 जून 2018 को केरल को निपाह वायरसमुक्त घोषित कर दिया गया था लेकिन ठीक एक वर्ष बाद वायरस फिर सामने आ गया। 2001 में पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में निपाह वायरस से संक्रमित 66 लोगों में से 45 की मौत हो गई थी। 2007 में भी पश्चिम बंगाल में संक्रमित 5 लोगों की मौत हो गई थी। निपाह वायरस की पहचान सबसे पहले मलेशिया के एक गांव कम्युंग सुंगई में की गई थी। इसी गांव के नाम पर इस वायरस का नाम रखा गया।
निपाह वायरस चमगादड़ के झुंडों से, प्राकृतिक जलाशयों से, जानवरों और मनुष्यों दोनों से फैलता है। आखिर केरल में इसके दोबारा दस्तक देने के क्या कारण हैं। इस बारे में निपाह वायरस की खोज करने वाले मलेशिया के प्रोफैसर चुआ का बिंग आैर प्रोफैसर स्टीफन तुंबी का कहना है कि निपाह दक्षिण एशिया में पाए जाने वाले एक बड़े आकार के चमगादड़ के कारण फैलता है। इसे इंडियन फ्रूट बैट यानी फलभक्षी चमगादड़ भी कहा जाता है। भारत के दिक्षणी राज्य खासतौर पर केरल में यह चमगादड़ बहुतायत में है जो श्रीलंका तक फैले हैं। केरल में कुछ लोग जो इस वायरस से संक्रमित हुए हैं जिन्होंने फर्मेंट की हुई ताड़ी पी थी।
चमगादड़ मीठी चीजें जैसे ताड़ी पर ज्यादा आकर्षित होता है। चमगादड़ रात के अंधेरे में ताड़ी अधिक पीता है। जिस समय ताजी ताड़ी निकल रही होती है और इस दौरान वायरस चमगादड़ के शरीर से ताड़ी में प्रसारित हो जाता है। केरल में इस मौसम में ताड़ी सबसे ज्यादा बनती है। केरल में इसके मरीजों में इसकी गम्भीरता को लेकर कई परिवर्तन देेखे गए हैं लेकिन राज्य में इस दिशा में गम्भीर प्रयास करने जरूरी हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि निपाह वायरस हवा से नहीं बल्कि एक संक्रमित व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है। इससे बचने का एक उपाय स्वच्छता है। केरल पूर्ण साक्षर राज्य है और ऐसा भी नहीं है कि वे उपायों से अवगत नहीं हैं। फिर भी निपाह वायरस का प्रसार दुर्भाग्यपूर्ण है। दूसरी तरफ पर्यावरणविदों का मानना है कि महामारी बढ़ने के लिए शहरीकरण जिम्मेदार है। अंधाधुंध शहरीकरण के चलते मनुष्यों को चमगादड़ों के जमघट की ओर धकेला जा रहा है और अब चमगादड़ों के रहने के लिए जंगल बचे ही कहां हैं? अब तक इस वायरस से बचने का कोई वैक्सीन तैयार नहीं है।
भारत, बंगलादेश, थाइलैंड और मलेशिया में इसे तैयार करने को लेकर लगातार काम किया जा रहा है। मनुष्य का आम स्वभाव है कि वह कभी-कभी इच्छावश पेड़ से गिरे फल खा लेता है, उसे इस बात का ध्यान ही नहीं रहता कि कहीं यह फल कहीं से कटा-फटा तो नहीं है। इसी कारण वह वायरस का शिकार हो जाता है। सरकार किसी भी देश की हो, चमगादड़ों के ठिकानों को पूरी तरह नष्ट नहीं कर सकती। इन दिनों देशभर में कई राज्यों में तापमान 45 डिग्री से ऊपर चल रहा है। राजस्थान के चूरू में तो सूर्य आग उगल रहा है और तापमान 50 डिग्री को छू रहा है। सर्दी में फैलने वाला स्वाइन फ्लू भीषण गर्मी में भी सक्रिय हो गया है।
वैज्ञानिक मानते हैं कि 30 डिग्री से अधिक तापमान में स्वाइन फ्लू का वायरस जीवित ही नहीं रहता लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि राजस्थान में 40 डिग्री से अधिक तापमान के बावजूद स्वाइन फ्लू का वायरस कैसे जिन्दा है? पिछले दिनों स्वाइन फ्लू से संक्रमित एक वृद्ध की मौत हो चुकी है। इस बात पर अनुसंधान किया जाना जरूरी है कि क्या वायरस जीन बदल रहा है। क्या वायरस का आवरण इतना मजबूत हो गया है कि वह ज्यादा तापमान को भी झेल पा रहा है। हमने भले ही अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में काफी प्रगति की है। हम चांद पर मानव भेजने को तैयार हैं। हमने शक्तिशाली दुश्मन को भेदने में सक्षम प्रक्षेपास्त्रों का निर्माण कर लिया है लेकिन लोग महामारियों से मर रहेे हैं। चिकित्सा के क्षेत्र में हमें अनुसंधान पर बल देना होगा।
अनुसंधान के क्षेत्र में जितना अधिक कार्य होगा, उतने ही भावी चिकित्सक निपुण होंगे। अधिक अनुसंधान होने पर ही डाक्टर आने वाली चुनौतियों से निपटने में सक्षम होंगे। इसके साथ-साथ लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने का अभियान देशभर में चलाना होगा ताकि वह वायरस से बच सकें। चिकित्सा के क्षेत्र में भारत पहले से कहीं अधिक आधुनिक हो चुका है लेकिन खतरनाक वायरस की चुनौतियों से वह अभी भी निपट नहीं पा रहा। ‘सावधानी हटी तो दुर्घटना घटी’ सड़कों पर लिखा स्लोगन लोगों को याद रखना चाहिए और साफ-सफाई की ओर ध्यान रखना होगा आैर खुद के बचाव के लिए पूरी सावधानियां बरतनी होंगी। अपने खानपान की शैली बदलनी होगी।