लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

चुनाव में मतदाता की प्रतिष्ठा !

NULL

मुख्य चुनाव आयुक्त श्री सुरेन्द्र अरोड़ा ने ईवीएम मशीनों की जिस हमलावर अन्दाज में हिमायत की है वह भारत में लोकतन्त्र को हर शक-ओ-शुबहा से परे रखने के मूल सिद्धांत के विरुद्ध ही मानी जायेगी क्योंकि अपना मत अपनी मनपसन्द की पार्टी या प्रत्याशी को देने वाले आम मतदाता के मन में यह भरोसा पक्का रहना चाहिए कि उसका वोट उसी को मिला है जिसके निशान के आगे उसने ईवीएम मशीन में बटन दबाया है। चुनाव आयोग की हैसियत हमारे संविधान निर्माता इस तरह स्वतन्त्र और निष्पक्ष तय करके गये हैं कि सरकार उसके काम मंे किसी भी तरह की दखलन्दाजी न कर सके।

हमारे लोकतान्त्रिक संसदीय प्रणाली में राजनैतिक दल ही सरकारें बनाते हैं। अतः चुनाव आयोग को राजनैतिक दलों की निजामत भी इसीलिए सौंपी गई जिससे लोगों के वोट की ताकत से जो भी सरकार बने वह उस संविधान की ताबेदारी में ही बने जिसने खुद चुनाव आयोग को बनाया है और उसकी पहली जिम्मेदारी यह रखी है कि वह सभी राजनैतिक दलों को चुनाव लड़ने के लिए बराबरी का माहौल देते हुए हर मतदाता द्वारा डाले गये वोट की पवित्रता को बरकरार रखते हुए उसकी गोपनीयता भी तब तक महफूज रखेगा जब तक कि बाकायदा उनकी गिनती की शुरूआत आयोग अपनी ही देखरेख में शुरू न कर दे।

इस पूरे विधान के तहत चुनावों के वक्त केवल चुनाव आयोग ही मतदाता के उस सबसे बड़े अधिकार का संरक्षक होता है जिसका इस्तेमाल करके वह प्रत्येक राजनीतिक दल का भविष्य मतपेटी या ईवीएम मशीन में कैद कर देता है। उसका यह अधिकार बाजाब्ता तौर पर अपरिवर्तनीय या न बदले जाने वाला होता है। ईवीएम मशीनों के प्रयोग से मतदाता के इसी संवैधानिक अधिकार पर सन्देह के बादल मंडराने लगे हैं। उसे यकीन नहीं हो पा रहा है कि वह जिस पार्टी या प्रत्याशी को वोट दे रहा है वह वाकई में उसे ही जा रहा है। यदि एेसा न होता तो सर्वोच्च न्यायालय 2013 में भाजपा के ही नेता डा. सुब्रह्मण्यम स्वामी की याचिका पर यह आदेश क्यों देता कि ईवीएम मशीन के साथ वीवीपैट मशीनें लाजिमी तौर पर लगाकर मतदाता को विश्वास दिलाया जाये कि उसका वोट उसके पसन्दीदा उम्मीदवार को ही पड़ा है।

अतः जाहिर है कि ईवीएम मशीनों में डाले गये वोट के पूरी तरह अपरिवर्तनीय रहने पर देश की सबसे बड़ी अदालत को भी सन्देह था। अब सवाल वीवीपैट मशीनों का आता है जो केवल सात सेकेंड के लिए मतदाता के सामने रसीद के तौर पर यह दिखाती है कि उसका वोट उसके मनपसन्द चुनाव निशान पर ही पड़ा है लेकिन इन मशीनों में दिखाई गई सभी पर्चियों का मिलान ईवीएम मशीनों में दबाये गये बटन से नहीं होता। चुनाव आयोग केवल सौ में से एक वीवीपैट पर्चियों का मिलान करके ईवीएम से निकले वोटों की संख्या के आधार पर नतीजे घोषित कर देता है और मान लेता है कि सभी मशीनों में पड़े वोट सही हैं। सवाल उठता है कि क्या चुनावों में प्रयोग की गई हर ईवीएम मशीन और वीवीपैट पूरी तरह बिना किसी खामी के काम करती हैं। चुनावों के दौरान अभी तक के आंकड़ों के अनुसार पांच प्रतिशत ईवीएम मशीन और दस प्रतिशत वीवीपैट खराब पाये गये हैं। यदि यह टैक्नोलोजी पूरी तरह दुरुस्त है तो फिर इतनी बड़ी संख्या में गड़बड़ क्यों मिलती है।

जाहिर है कि टैक्नोलोजी की गारंटी चुनाव आयोग खुद नहीं दे सकता और इसके लिए उसे साइबर टैक्नोलोजी के माहिरों का मोहताज होना पड़ता है। ऐसी सूरत में चुनाव आयोग आम मतदाता को यह यकीन कैसे दिला सकता है कि उसका वोट अपरिवर्तनीय है? वोट की अपरिवर्तनीयता ऐसा बुनियादी हक है जिसके ऊपर भारत के संवैधानिक प्रशासनिक ढांचे की बुनियाद रखी हुई है और जिसे बाबा साहेब अम्बेडकर ने हिन्दोस्तान के हर फकीर से लेकर जागीरदार तक को एक समान रूप से दिया था। एक यही हक है तो जो अमीर-गरीब को एक ही लाइन में खड़ा करके भारत के गणतन्त्र होने की मुनादी करता है इसलिए इसके बदले जाने की हल्की सी भी संभावना जनता के राज की कैफियत बदलने की कूव्वत रखती है लेकिन मुख्य चुनाव आयुक्त ने आज जिस तरह यह कहा है कि ईवीएम मशीनों की जगह बैलेट पेपर की तरफ लौटने का सवाल ही पैदा नहीं होता, वह पूरी तरह चुनाव आयोग की निष्पक्षता और स्वतन्त्रता को कठघरे में खड़ा करता है।

उन्हें यह मालूम होना चाहिए कि सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र सरकार को वीवीपैट मशीनों के लिए चुनाव आयोग को लगभग तीन हजार करोड़ रुपए देने का आदेश दिया था मगर इसके लिए तीन साल का वक्त लग गया और चुनाव आयोग को 11 बार सरकार को लिखकर याद दिलाना पड़ा था। इसके बाद यह खबर भी आयी थी कि लाखों वीवीपैट मशीनें बनाने की जिम्मेदारी सरकारी कम्पनी को देने की बजाये किसी निजी कम्पनी को देने की भी कोशिश हुई थी। जाहिर है कि नीति से ज्यादा नीयत पर सवाल खड़ा हो रहा है। अतः चुनाव आयुक्त श्री अरोड़ा को अपने ही संस्थान के गौरवशाली इतिहास पर नजर डालनी चाहिए और फिर सोचना चाहिए कि वह किस जमीन पर खड़े हैं। 1969-70 में जब इन्दिराजी प्रधानमंत्री थीं और उन्होंने कांग्रेस पार्टी को दो हिस्सों में बांट दिया था तो तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त श्री एस.पी. सेन वर्मा ने बिना किसी लिहाज के बेसाख्ता तरीके से इन्दिरा जी के गुट की कांग्रेस के इस दावे को खारिज कर दिया था कि कांग्रेस पार्टी का चुनाव निशान दो बैलों की जोड़ी उन्हीं की कांग्रेस को दिया जाये, जबकि इसके लिए दूसरे मोरारजी गुट की कांग्रेस भी यही दावा कर रही थी और पूरी कांग्रेस कार्यसमिति में इसी गुट का दबदबा था।

श्री सेन वर्मा ने दो बैलों की जोड़ी के चुनाव चिन्ह को ही जाम (सीज) कर दिया था। ईवीएम का सवाल चुनाव आयोग की निजी प्रतिष्ठा का सवाल बिल्कुल नहीं है बल्कि यह लोकतन्त्र और मतदाता की प्रतिष्ठा का सवाल है। माना कि आने वाले लोकसभा चुनाव बैलेट पेपर से कराने में बहुत जहमत आ सकती है मगर इतना तो किया ही जा सकता है कि सभी वीवीपैट मशीनों के ठीक होने की गारंटी देकर उससे निकली पर्चियों को गिन कर ही नतीजे घोषित किए जा सकते हैं। इसमें देर होगी तो होगी मगर मतदाताओं का यकीन तो चुनाव प्रणाली से नहीं डगमगायेगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

15 + five =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।