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व्यापमं घोटाला : इंसाफ अधूरा है

पुलिस आरक्षकों की भर्ती में फर्जीवाड़ा किया गया और सरकारी नौकरियों में भ्रष्टाचार कर रेवड़ियों की तरह नौकरियां बांटी गईं।

मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) द्वारा 2013 में ली गई पुलिस आरक्षक भर्ती परीक्षा में धोखाधड़ी एवं बेइमानी करने के लिए सीबीआई अदालत ने 31 लोगों को सात से दस साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई है। घोटाले के मास्टर माइंड को दस वर्ष की कैद की सजा सुनाई गई है, जबकि दोषी करार दिए गए 30 आरोपियों को सात-सात वर्ष की सजा दी गई है। यह पहली बार है, जब व्यापमं घोटाले में इतनी बड़ी संख्या में लम्बी अवधि के लिए जेल की सजा दी गई है। 

जिन लोगों को सजा सुनाई गई है उनमें 12 बहुरूपिये जो दूसरे के बदले परीक्षा देते थे, 7 दलाल हैं जो परीक्षार्थियों से पैसे लेकर पास करवाते थे। महाराष्ट्र में चल रहे सियासी घमासान के दौरान किसे फुर्सत है कि कोई व्यापमं घोटाले में आए फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करे और इस बात की विवेचना करे कि क्या इस मामले में इंसाफ हुआ? इस घोटाले से जुड़े 40 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। हर मौत के बाद यह घोटाला रहस्यमयी होता गया। इस घोटाले में मेडिकल और इंजीनियरिंग कालेजों में दाखिले में फर्जीवाड़ा कर भर्तियां की गईं। 

पुलिस आरक्षकों की भर्ती में फर्जीवाड़ा किया गया और सरकारी नौकरियों में भ्रष्टाचार कर रेवड़ियों की तरह नौकरियां बांटी गईं। इस घोटाले का खुलासा 2013 में हुआ जब एमबीबीएस की भर्ती परीक्षा में बैठे कुछ फर्जी छात्रों को गिरफ्तार किया गया। ये छात्र किन्हीं दूसरे छात्रों के नाम पर परीक्षा दे रहे थे। बाद में पता चला कि प्रदेश में सालों से एक बड़ा रैकेट चल रहा था। पकड़े गए लोगों से पूछताछ की गई तो उसमें डा. जगदीश सागर का नाम सामने आया। उसे ही पीएमटी घोटाले का सरगना माना गया। उसने इस घोटाले से करोड़ों की सम्पत्ति बनाई। 

ज्यों-ज्यों जांच आगे बढ़ती गई तो पूरे नेटवर्क का खुलासा हो गया ​कि इसमें मंत्रियों के साथ-साथ अधिकारी, दलालों का पूरा गिरोह काम कर रहा था और मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल यानि व्यापमं का ऑफिस इस काले धंधे का अहम अड्डा था। हर नौकरी के लिए रेट लिस्ट तय थी। परिवहन विभाग में कंडक्टर पद के ​लिए 5 से 7 लाख, फूड इंस्पैक्टर के लिए 25 से 30 लाख और सब-इंस्पैक्टर के लिए 15 से 22 लाख रुपए में फर्जी तरीके से नौकरियां दी जा रही थीं। 

शिवराज ​चौहान की भाजपा सरकार में लक्ष्मीकांत शर्मा शिक्षा मंत्री होने के साथ-साथ व्यापमं मुखिया थे। इस घोटाले में उनकी गिरफ्तारी भी हुई थी। इस घोटाले में मेडिकल कालेजों के चेयरमैन, व्यापमं के परीक्षा नियंत्रक भी शामिल थे।  व्यापमं मामला इतना बड़ा था कि भारत के सैकड़ों घोटालों के आरोपी भी इनमें समा जाएं। सीबीआई ने 3800 लोगों को आरोपी बनाया। 170 मामले दर्ज किए गए। इनमें 120 में चार्जशीट दाखिल हुईं। सोचिये यह कितना बड़ा घोटाला होगा। इतने तो दंगे-फसाद के आरोेपी नहीं बनते। 

व्यापमं में लुटेरों की भीड़ रही होगी जो ईमानदार और परिश्रमी छात्रों को डाक्टर, इंजीनियर बनने से रोक रही थी। सिर्फ मेडिकल ही नहीं ट्रांसपोर्ट, कांस्टेबल, कनिष्ठ आरक्षी और ठेके पर रखे जाने वाले शिक्षकों की नियुक्ति में भी धांधलियां की गईं। कितने ही मुन्ना भाई एमबीबीएस कर नौकरियां पा गए, कितने ही फर्जीवाड़ा से इंजीनियर बन गए। ऐसे लोगों से क्या कोई उम्मीद की जा सकती है कि वह जनहित में कार्य करेंगे या समाज के कल्याण में कोई भूमिका निभा पाएंगे? मंत्रियों, अफसरों और दलालों ने अनेक युवाओं को गर्त में धकेल दिया। 

व्यापमं में भुक्तभोगियों की संख्या तो कई हजारों में होगी। इस घोटाले में मध्य प्रदेश के पूर्व राज्यपाल और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री राम नरेश यादव (दिवंगत) भी घिर गए थे और उनके बेटे की भी संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी। वास्तव में यह घोटाला अनेक पेशेवरों, मंत्रियों, नेताओं, नौकरशाहों, दलालों की सांठगांठ के चलते हुआ जिन्हें पूरा राजनीतिक संरक्षण प्राप्त था। सवाल अब भी मुंह बाये खड़ा है कि प्रतिभा सम्पन्न छात्रों से अन्याय कर पैसे लेकर सरकारी नौकरियां बांटने वालों ने तो अरबों रुपए कमा लिये, उन लोगों के घरों में क्या बीती होगी, जिन्होंने जांच के दबाव में आत्महत्याएं कर लीं। एक के बाद एक गवाहों की मौत ने भी कई सवाल खड़े कर दिए थे। 

क्या उनकी मौत हत्या के समान नहीं है? क्या इनके साथ न्याय हुआ? दस वर्ष या सात साल की कैद को क्या न्याय के पलड़े में रखा जा सकता है। इस घोटाले के व्हिसलब्लोअर चीख-चीख कर कहते रहे हैं कि बड़ी मछलियां आजाद हैं, केवल छोटी मछलियों पर हाथ डाला गया। ऐसे में अदालत का इंसाफ अधूरा है।

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