पृथ्वी बहुत व्यथित है, इसके सभी अंग जल, वायु, वनस्पति और सभी प्राणी आधुनिक जीवनशैली के हमले के कारण प्रदूषित हो चुके हैं। ‘देश बचाओ, मां गंगा को बचाओ, राष्ट्र की उन्नति में सभी की उन्नति है’ जैसी क्रांतिकारी आवाजें कई वर्षों से हमें सुनाई दे रही हैं। कोई कहता है कि गंगा को बचाने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति अपनानी होगी। सभी को एकजुट होकर भागीरथ प्रयास करने होंेगे। गंगा के िकनारों पर शहरीकरण रोकना होगा।
बातें तो सभी की तर्कपूर्ण हैं किन्तु हम सब जब तक गंगा के अस्तित्व को नही समझेंगे, तब तक महसूस भी नहीं कर सकते और बिना उसे महसूस किए हम उसके संकट को भी नहीं हर सकते। केवल जागरूकता भरे नारों से कुछ नहीं होने वाला। पिछले कई दशकों से हम पवित्र पावनी गंगा के निर्मलीकरण के लिए बेपनाह धन खर्च करते रहे हैं। गंगा एक्शन प्लान, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, नमामि गंगे परियोजना शुरू की गईं लेकिन अभी तक कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आए।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के ताजा अध्ययन में कहा गया है कि जिन 39 स्थानों से होकर गंगा गुजरती है उनमें से एक स्थान पर इस वर्ष मानसून के बाद गंगा का पानी साफ था। गंगा नदी जैविक जल गुणवत्ता आकलन (2017-18) की रिपोर्ट के अनुसार गंगा बहाव वाले 41 स्थानों में से 37 पर इस वर्ष मानसून से पहले जल प्रदूषण मध्यम से गम्भीर श्रेणी में रहा। सुप्रीम कोर्ट के िनर्देेेशों का पालन करते हुए केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने हाल ही में यह रिपोर्ट जारी की है।
मानसूून के बाद केवल हरिद्वार में ही गंगा का पानी साफ था। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि उत्तर प्रदेश की दो बड़ी सहायक नदियां पांडु नदी और वरुणा नदी गंगा में प्रदूषण बढ़ा रही हैं। गंगा नदी की मुख्यधारा पर कोई स्थान गम्भीर रूप से प्रदूषित नहीं था लेकिन अधिकतर स्थान मध्यम रूप से प्रदूषित पाए गए।
जीवनदायिनी गंगा काे स्वच्छ और निर्मल बनाना केन्द्र और राज्य सरकारों की प्राथमिकता में शािमल है। इसी कड़ी में नमामि गंगे परियाेजना समेत अन्य योजनाओं के जरिये गंगा और उसकी सहायक नदियों को प्रदूषण मुक्त करने के प्रयास चल रहे हैं, मगर आशानुरूप परिणाम नहीं मिल रहे। उत्तराखंड की बात करें तो उद्गम स्थल गोमुख से लेकर लक्ष्मण झूला तक गंगा पूरी तरह स्वच्छ है और निर्मल है लेकिन इससे आगे हरिद्वार तक इसमें उल्लेखनीय सुधार नहीं हो पाया। इसके आगे तो सहायक नदियों के साथ नालों के जरिये गंदगी गंगा में समा रही है। देहरादून की रिस्पना और सोंग नदी के जरिये सबसे अधिक गंदगी गंगा में जा रही है। रिस्पना नदी में 2015 में फीकल कॉलीफार्म की मात्रा 1600 थी जो इस वर्ष भी बरकरार है।
इसका अर्थ यही है कि देवभूमि में ही गंगा को निर्मल बनाने के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है। इससे आगे तो गंगा की हालत बहुत खराब है, गंगा गंदे नाले में परिवर्तित हो चुकी है। गंगा के लिए कानपुर बहुत बड़ा डार्क स्पाट है। सबसे ज्यादा यह शहर गंगा नदी को प्रदूषित करता रहा है। केन्द्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री नितिन गडकरी की मौजूदगी में राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन, उत्तर प्रदेश जल निगम और निजी कम्पनियों शपूरजी पालोनजी एंड कम्पनी लिमिटेड और एसएसजी इंफ्रोटेक लिमिटेड के प्रतिनिधियों ने एक करार पर हस्ताक्षर किए हैं। इस करार के बाद निजी क्षेत्र की कम्पनियां ‘वन सिटी वन आपरेटर’ के मॉडल पर कानपुर में एसटीपी का संचालन कर यह सुनिश्चित करेेंगी कि शहर की गंदगी गंगा नदी में न गिरे।
नितिन गडकरी ने उम्मीद जताई है कि स्वच्छ गंगा का सपना अब जल्द साकार होगा क्योंकि नदी सफाई के लिए उठाए गए कदमों के नतीजे अब दिखने लगे हैं। मार्च 2019 तक गंगा नदी 70 से 80 फीसदी तक साफ हो जाएगी। गंगा को निर्मल बनाने के उद्देश्य से 285 परियोजनाएं चल रही हैं और इन्हें 2020 तक पूरा कर लिया जाएगा। लंदन की टेम्स नदी इंसानी कारगुजारियों के कारण मर गई थी, शहर में इसके चलते प्रदूषण फैलने लगा था लेकिन वहां के राजकाज आैर समाज के संकल्प से टेम्स नदी के जल में जीवन अठखेलियां कर रहा है। सरकारें, प्रशासन कितना भी काम कर ले, कोई परियोजना तब तक सफल नहीं हाे सकती जब तक लोग उसमें सहयोग न करें। वेदों के अनुसार मानव की पांच माताएं हैं।
एक तो जन्म देने वाली, दूसरी जन्मभूमि, जो अन्न से पोषित करती है, तीसरी गाैमाता जो अपने दूध से पोषण देती है, चौथी मां गंगा, जो जल से जीवन देती है, पांचवीं माता है वेदों के रूप में श्रुति, जिसकी सलाह से मानव जीवन में उन्नति करता है। जब तक हमारी योजनाएं, हमारी क्रिया शक्ति सभी माताओं के विकास में बराबर की भागीदारी नहीं होंगी तब तक विकास एवं संरक्षण के कदम अधूरे रहेंगे। मां गंगा की स्वच्छता के िलए मानव को अपना योगदान देना होगा। राष्ट्रीय धरोहर गंगा में गंदगी उड़ेलने, प्लास्टिक की बोतलें, मल गिराने से स्वयं को रोकना होगा। गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाना हम सबका दायित्व है, आइये मानवीय जिम्मेदारी निभाएं।