ज्यादातर लोग एक उम्र आने के पश्चात अपने आपको बूढ़ा समझने लगते हैं और यहीं से उनके स्वास्थ्य पर विपरीत असर दिखने लगता है। इस नकारात्मक सोच से हमें उभरना होगा। हम यह भी मानते हैं कि उम्र तो एक नम्बर है, असल जिन्दगी तो आपकी सोच, आपकी जीवनशैली पर निर्भर करती है। अगर हम सकारात्मक होकर अपना जीवन निर्वाह करें तो बढ़ती उम्र में भी हम खुशी। खुशी भगवान के द्वारा निर्धारित प्रत्येक क्षण का आनंद ले सकते हैं।
हमें बढ़ती उम्र में अपने आपको वरिष्ठ बनाना और महसूस करना है। बुढ़ापे और वरिष्ठता के अंतर को बारीकी से समझना होगा तभी हम इस उलझन से निकल पायेंगे और स्वस्थ व सुखी रह सकेंगे। हम अगर अपने को बुढ़ऊ समझने लगें तो अन्य लोगों का आधार ढूंढ़ते रहेंगे। इस मानसिकता से बाहर आकर हम अपने को वरिष्ठ समझें। दूसरों को आधार देने की हिम्मत रखें। घर पर भी हमें अपने विचार बच्चों पर जबरदस्ती अपनाने की जिद्द नहीं करनी चाहिए। इस तरुणपीढ़ी की राय हमें भी समझनी चाहिए और फिर आपसी सहमति से कोई निर्णय लेना चाहिए। शायद यहीं अंतर दर्शाता है बुढ़ापे और वरिष्ठता में अपने ही मध्य अनेकानेक व्यक्ति मिल जाएंगे, जो 75 के पार हैं और अपने को कुछ न कुछ उपयोगी कार्य में लगा रखे हैं। अखबार में, टीवी पर व सोशल मीडिया पर हमें अक्सर ऐसे समाचार मिल जाते हैं जहां इस 75 की उम्र को पार करके सुपर सीनियर्स बहुत कुछ ऐसा कर रहे हैं। जिससे समाज में उनको प्रतिष्ठा मिल रही है। ऐसे वरिष्ठजन दूसरों के लिए भी आदर्श बनते हैं। यहां मैं एक वरिष्ठ व्यक्ति का आपको उदाहरण देना चाहूंगा जिनका व्यक्तित्व हमारे लिए आदर्श बन सकता है। ये हैं 89 वर्ष के श्रीअशोक पाल जी। दिल्ली के पड़ोस गाजियाबाद में जन्में अशोकजी की प्रारंभिक पढ़ाई स्थानीय सरकारी स्कूल में हुई। इसके पश्चात वे नजदीक ही स्थित रूड़की विश्वविद्यालय की इंजीनियरिंग कॉलेज, जिसे आजकल आई आई टी रूड़की कहा जाने लगा है, से इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक होकर अपना जीवन आगे बढ़ाने की ओर अग्रसर हुए। अशोक जी की पहली नौकरी लगी मध्यप्रदेश के सरकारी विभाग में। साढ़े तीन वर्ष तक वहां अपनी सेवा देने के बाद वो अगले साढ़े तीन वर्ष डेसू में कार्यरत रहे। इसके पश्चात 1966 में अशोक जी ने भारत सरकार की एक कन्सलटैन्सी कम्पनी, जिसका काम था जगह – जगह औद्योगिक परियोजनाएं की स्थापना करना, में अपना योगदान दिया। यहां पर 10 वर्ष तक अशोक जी ने सेवा दी और यहीं पर उनको बहुत एक्स्पोजर मिला। इसी सरकारी ईकाई में रहते हुए ये डेढ़ वर्ष तक ईरान में कार्यरत रहे। इतने वर्षों तक सार्वजनिक संस्थानों में अपनी सेवा देने के बाद उन्होंने निजी क्षेत्र की ओर अपना कदम आगे बढ़ाया। थर्मल पावर प्लांट्स की स्थापना में कार्यरत डेजीन डिजाइनिंग कम्पनी में डायरेक्टर बन कर आए। इस संस्था का पौलैंड की सरकारी कंपनी से संबंध था और इन्होंने बोकारो, दुर्गापुर व राउरकेला में कैप्टिव पावर प्लांट लगाने में सहयोग किया। 10 – 12 वर्ष इस कम्पनी में अपना योगदान देने के पश्चात इन्होंने पौलैंड सरकार के आग्रह पर एक जॉयन्ट वेन्चर कंपनी बनाई जिसके वे मैनेजिंग डायरेक्टर बने। बाद में इस कम्पनी को इन्होंने खरीद लिया। 80 वर्ष की उम्र होने पर उन्होंने इस कंपनी का कामकाज समेट लिया।
अशोक जी शुरु से ही समाज सेवा से जुड़े थे। इसी भावना ने उन्हें विद्या भारती के नजदीक ला दिया। जिससे वो कोई तीस वर्ष से जुड़े हैं। उनका विश्वास था कि शिक्षा के साथ संस्कार देना बहुत आवश्यक है। जिसे विद्या भारती बखूबी बहुत अच्छी तरह कर रही है। पिछले 17 वर्षों से ये विद्या भारती के उत्तर क्षेत्र के अध्यक्ष हैं। अशोक जी आज भी खूब प्रवास करते हैं। देश के किसी भी स्थान पर कोई बैठक हो और वो वहां पहुंच जाते हैं। भारत के 682 जिले में 12098 औपचारिक स्कूल कार्यरत है जिनमें इकत्तीस लाख से अधिक छात्र संस्कारित शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त 54 कॉलेज व दो विश्वविद्यालय भी विद्या भारती के अंर्तगत संचालित हैं। 1998 में गाजियाबाद में ए.के.जी. इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना हुई। जिसके ये फाउंडर चेयरमैन है। इनका अपना एक ट्रस्ट भी है जो की पूरी तरह विद्या भारती को समर्पित है। 1961 में इनका विवाह हुआ और इनके दो बच्चे हैं, एक बेटा व एक बेटी, दोनों विदेश में रहते हैं। ऐसे वरिष्ठ व्यक्ति हमें अपने आसपास ही कई मिल जाएंगे। हम उनके जीवन से बहुत कुछ सीख सकते हैं। उनसे प्रोत्साहन ले सकते है। आपको बता दूं कि बुढ़ापा जीवन की शाम में अपना अंत ढूंढता है, और वरिष्ठता जीवन की शाम में भी एक नए सवेरे का इंतजार करती है तथा युवाओं की स्फूर्ति से प्रेरित होती है।
– विजय मारु