महाराजा रणजीत सिंह के राज से सीख लेनी चाहिए

महाराजा रणजीत सिंह के राज से सीख लेनी चाहिए

देश के इतिहास में जब भी सकुशल राजाओं का जिक्र आता है तो महाराजा रणजीत सिंह का नाम सबसे पहले याद किया जाता है जिन्होंने बहुत कम उम्र में राज्यभार संभाला और देखते ही देखते पंजाब से लेकर काबुल कंधार तक अपने राज्य का विस्तार कर लिया। उनके बाद से आज तक कोई भी गैर मुस्लिम शासक यहां राज्य करने की सोच भी नहीं सकता। इतना ही नहीं उनके राज्य में हर नागरिक को बिना उसका धर्म, जाति, ऊंच नीच की पहचान किए समान अधिकार दिये जाते। महाराजा रणजीत सिंह सिख धर्म से सम्बन्ध रखते थे मगर उन्होंने अगर श्री दरबार साहिब में सोना दिया तो उतना ही सोना सोमनाथ के मन्दिर और मस्जिद के लिए भी दिया। आज भी अगर राज्य और देश के हुकमरान महाराजा रणजीत सिंह को अपना प्रेरणास्त्रोत बनाकर उनकी कार्यशैली पर कार्य करते हुए राज्य यां फिर देश को चलाने की सोच रखें तो कोई भी नागरिक कभी दुखी हो ही नहीं सकता।

महाराजा रणजीत सिंह का जन्म पाकिस्तान के गुजरांवाला में महाराजा महा सिंह और माता राज कौर के घर हुआ। उनके पिता सुकरचकिया मिसल के मुखिया थे। बचपन में रणजीत सिंह चेचक की बीमारी से ग्रस्त हो गये थे, जिसके चलते उन्हें एक आंख से दिखाई देना बंद हो गया था। बचपन में ही पिता का साया सिर से उठने पर राज्यभार उनके कंधों पर आ गया और वह पूरी बहादुरी के साथ शासन करते हुए अपने राज्य का विस्तार निरन्तर बढ़ाते चले गए। ब्रिटिश इतिहासकार जे. टी. व्हीलर लिखते हैं कि “अगर रणजीत सिंह एक पीढ़ी पहले आए होते, तो पूरे हिंदुस्तान को ही फ़तेह कर लेते।” महाराजा रणजीत सिंह पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन उन्होंने अपने राज्य में शिक्षा और कला को बहुत प्रोत्साहन दिया। उन्होंने पंजाब में क़ानून एवं व्यवस्था कायम की मगर कभी भी किसी को सज़ा-ए-मौत नहीं दी, उनके शासनकाल में कभी किसी महिला के साथ किसी ने दुर्व्यवहार नहीं किया। महाराजा रणजीत सिंह स्वभाव से अत्यंत सरल व्यक्ति थे।

महाराजा की उपाधि प्राप्त कर लेने के बाद भी रणजीत सिंह अपने दरबारियों के साथ भूमि पर बिराजमान होते थे। वह अपने उदार स्वभाव, न्यायप्रियता और समस्त धर्मों के प्रति समानता रखने की उच्च भावना के लिए प्रसिद्ध थे। अपनी प्रजा के दुखों और तकलीफों को दूर करने के लिए वह हमेशा कार्यरत रहते थे। अपनी प्रजा की आर्थिक समृद्धि और उनकी रक्षा करना ही मानो उनका धर्म था। महाराजा रणजीत सिंह ने लगभग 40 वर्ष शासन किया। अपने राज्य को उन्होंने इस कदर शक्तिशाली और समृद्ध बनाया था कि उनके जीते जी किसी आक्रमणकारी सेना की उनके साम्राज्य की ओर आंख उठाने की हिम्मत नहीं होती थी। पूरे भारत पर कब्जा जमा चुके अंग्रेजों को भी पंजाब में सफलता महाराजा रणजीत सिंह की मौत के बाद ही मिल पाई। महाराजा रणजीति सिंह के पास कोहिनूर हीरा भी था जिसे उन्होंने जीतकर हासिल किया था उसे भी अंग्रजों ने उनकी मौत के बाद उनके पुत्र दिलीप सिंह से छीन लिया। समाजसेवी डा. गुरमीत सिंह सूरा का मानना है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिस प्रकार सभी समुदायों को साथ लेकर चलने की सोच रखते हैं उन्हें महाराजा रणजीत सिंह के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए जिससे कि और बेहतर तरीके से देश को चला सकें। आज महाराजा रणजीत सिंह की बरसी पर हम उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते है। आज भी दिल्ली और पंजाब से संगत उनकी बरसी पर पाकिस्तान जाकर गुरधामों के दर्शन करती है।

देशभर में गुरमत कैंप लगाने के फायदे

आमतौर पर देखा जाता था कि गर्मी की छुट्टियां शुरू होते ही बच्चे अपने रिश्तेदारों के घर मौज मस्ती के लिए चले जाया करते या फिर अपने आसपास समय व्यतीत करने के लिए होबी क्लासों की तलाश किया करते। फिर कुछ साल पहले पंजाबी अकादमी दिल्ली के सहयोग से दिल्ली में कई स्थानों पर बच्चों के लिए पंजाबी सिखलाई की क्लासें गर्मी की छुट्टियों में लगने लगी जिसमें पंजाबी अकादमी से टीचर्स आकर बच्चों की क्लासें लिया करते। धीरे धीरे कई सिंह सभा गुरुद्वारों में इसकी शुरुआत की गई। गुरुद्वारा राजौरी गार्डन में बीबी हरजीत कौर के द्वारा साल 2000 में नितनेम क्लासों को शुरू किया जिसमें बहुत कम बच्चे ही हिस्सा लेने पहुंचे मगर आज 25 साल बीतने के बाद हर साल 1000 से अधिक बच्चे इन क्लासों में भाग लेते हैं।

गुरुद्वारा साहिब के अध्यक्ष हरमनजीत सिंह बताते हैं कि बहुत से बच्चे ऐसे भी हैं जो कभी इन क्लासों में शिक्षा लिया करते और आज अपने बच्चों को यहां लेकर आते हैं। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी में धर्म प्रचार की कमान जसप्रीत सिंह करमसर ने जब संभाली तो उन्होंने कुछ हटकर कार्य करने की सोची जिसके चलते उन्होंने देशभर में गुरमत कैंप लगवाए जिसमें 5000 के करीब बच्चों ने हिस्सा लिया और आज 3 वर्ष बाद लगे कैंपों में 16000 हजार से अधिक बच्चे पहुचंे। दिल्ली के अलावा हरियाणा, मध्यप्रदेश, उ.प्र., जम्मू-कश्मीर, पटना साहिब, झारखण्ड आदि राज्यों में भी कैंप लगाए गये और लख्खीशाह बंजारा हाल में कैंपों में भाग लेने वाले बच्चों और टीचर्स को कमेटी अध्यक्ष हरमीत सिंह कालका, महासचिव जगदीप सिंह काहलो और धर्म प्रचार मुखी जसप्रीत सिंह करमसर ने सम्मानित किया ताकि इनसे प्रभावित होकर आने वाले समय में और बच्चे इन कैंपों में शामिल हों। इस बार एक बात और खास देखी गई बच्चांे के द्वारा जसप्रीत सिंह करमसर को अपने हाथों से कलाकारी कर यादगारी उपहार भेंट किए गये।

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