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ड्रोन से हथियार : कुछ सवाल

अगर एक विमान भारत के किसी इलाके में भारी मात्रा में हथियार गिराकर चला जाए तो यह भारत की सुरक्षा की दृष्टि से बहुत बड़ी घटना होगी।

अगर एक विमान भारत के किसी इलाके में भारी मात्रा में हथियार गिराकर चला जाए तो यह भारत की सुरक्षा की दृष्टि से बहुत बड़ी घटना होगी। 24 वर्ष पहले पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में भी ऐसा ही हुआ था, वहां एक विमान से भारी मात्रा में हथियार गिराए गए थे, जिसमें एके-47 और राकेट लांचर शामिल थे। पुरुलिया हथियार कांड सबसे रहस्यजनक कांड रहा क्योंकि इसकी जांच में लगी एजैंसियां यह तय नहीं कर पाईं कि घटना की सच्चाई क्या है, इसके पीछे कौन था, इसका मकसद क्या था। हैरानी तो तब हुई थी जब इस कांड का मास्टर माइंड ​​किम डेवी संदिग्ध घटनाक्रम के तहत हवाई अड्डे से बच निकला था और अपने मूल देश डेनमार्क पहुंच गया था। 
पंजाब में पाकिस्तानी ड्रोन द्वारा हथियार गिराए जाने की घटना से पुरुलिया हथियार कांड की याद ताजा हो गई। यह भी स्पष्ट है कि जम्मू-कश्मीर के मामले में पाकिस्तान को अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर करारी कूटनीतिक हार मिली है इसलिए वह पंजाब में खालिस्तानी आंदोलन को फिर से सुलगाने की साजिश रच रहा है। अभी भी पंजाब के कट्टरपंथी भटके हुए युवा खालिस्तानी महिम को फिर से जीवित करने की कोशिश कर रहे हैं। यह वास्तविकता है कि पंजाब में खालिस्तान की मुहिम को कोई समर्थन नहीं मिल रहा। 1980 के दशक में पंजाब में हथियारबंद क्रांति हुई थी, तब बड़े नरसंहार हुए। एक ही समुदाय के लोगों को लाइन में खड़ा कर अंधाधुंध फायरिंग कर मार डाला जाता रहा। 
बम धमाकों से पंजाब रोजाना दहल उठता था। धीरे-धीरे आतंकवाद पर काबू पा लिया गया और कालांतर में मेहनतकश पंजाबियों ने एकजुट होकर शांति और अमन कायम किया। इतना खून-खराबा होने के बावजूद पंजाब के सिखों आैर हिन्दुओं में साम्प्रदायिक सद्भाव कायम रहा। यद्यपि खालिस्तान कमांडो फोर्स, खालिस्तान टाइगर फोर्स, बब्बर खालसा इंटरनेशनल और खालिस्तान जिन्दाबाद फोर्स आदि संगठनों का नेतृत्व ​बिखरा हुआ है। विदेशों में बैठे इनके कुछ आका खालिस्तान के नाम पर डालर इकट्ठे कर अपनी दुकानदारी चलाए हुए हैं। बब्बर खालसा इंटरनेशनल का नेता वधावा सिंह और खालिस्तान जिन्दाबाद फोर्स का मुखिया रणजीत सिंह नीटा पाकिस्तान में बैठकर साजिशें रच रहे हैं। 
पंजाब में ड्रोन से हथियार गिराने की साजिश में भी रणजीत सिंह नीटा का नाम आया है। अब सवाल यह है कि क्या इन हथियारों का इस्तेमाल कश्मीर में कोई बड़ी घटना को अंजाम देने के लिए किया जाना था या इनका इस्तेमाल पंजाब में होना था। क्या यह 26/11 की तरह पंजाब के किसी शहर को मुम्बई की तरह निशाना बनाने की साजिश तो नहीं? सवाल यह भी है कि हमारे सुरक्षा बल आधुनिक उपकरणों से लैस हैं फिर भी ड्रोन उनकी नजरों से ओझल क्यों रहा। सीमा सुरक्षा बल लगातार सीमाओं की निगरानी करता है और लगातार सीमाओं को मजबूत बना रहा है। 
अनेक वाचटावर बनाए गए हैं। हैरानी की बात तो यह है कि दस बार ड्रोन आया और हथियार गिरा कर चला गया लेकिन पकड़ में नहीं आया। अधिकारियों का दावा है कि क्योंकि ड्रोन को कम ऊंचाई पर उड़ाया गया, इसलिए किसी को इसका पता नहीं चल सका। इन्हें केवल राडार की मदद से पकड़ा जा सकता है। ऐसे आपरेशन क्योंकि रात में किए गए, इस​िलए आंखों से इन्हें देखा भी नहीं जा सकता। गृह मंत्रालय ने सभी एजैंसियों से सवाल पूछा है कि आखिर ड्रोन की मूवमैंट को पकड़ा क्यों नहीं जा सका। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्द्र सिंह ने सुरक्षा को गम्भीर खतरा देखते हुए इस मामले की जांच एनआईए को सौंप देने का फैसला किया है और गृहमंत्री अमित शाह से मदद मांगी है। 
इस घटना को सीमा सुरक्षा बल, खुफिया एजैंसियों की नाकामी ही माना जाएगा। एक तरफ तो हम रोज सुनते हैं कि भारतीय सेना किसी भी स्थिति से निपटने को तैयार है, फिर भी ड्रोन भारतीय सीमा के भीतर उड़ कर आते हैं और हथियार गिराते हैं। कहीं न कहीं तो कोई चूक है। नेशनल टैक्नीकल रिसर्च आर्गनाइजेशन अब इस बात का पता लगा रहा है कि पाकिस्तानी ड्रोन की गतिविधियों के समय अन्तर्राष्ट्रीय सीमा के निकट कितने फोन एक्टिव थे। जब भी हथियार आएंगे, उनका इस्तेमाल हिंसक वारदातों के लिए होगा, इसलिए सुरक्षा से जुड़ी एजैंसियों को समन्वय स्थापित कर काम करना होगा। सीमाओं को सुदृढ़ बनाना होगा। ऐसी व्यवस्था करनी होगी कि परिन्दा भी पर न मार सके। अगर इसे गम्भीरता से नहीं लिया गया तो-

‘‘खुल जाएगी फिर आंखें जो मर जाएगा कोई
आते नहीं हो बाज मेरे इम्तिहान से तुम।’’

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