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नामीबिया के मेहमानों का स्वागत

हम इंसानों के चलते प्राकृतिक आवासों में अर्थात् वनों में पाए जाने वाले वन्य जीव अब लुप्त होते जा रहे हैं। कभी-कभी यह आशंका पैदा होने लगती है कि शेर, चीते, हिरण और अन्य दुर्लभ वन्य जीव कहीं किताबों में ही न रह जाएं।

हम इंसानों के चलते प्राकृतिक आवासों में अर्थात् वनों में पाए जाने वाले वन्य जीव अब लुप्त होते जा रहे हैं। कभी-कभी यह आशंका पैदा होने लगती है कि शेर, चीते, हिरण और अन्य दुर्लभ वन्य जीव कहीं किताबों में ही न रह जाएं। स्कूलों में ​शिक्षक बच्चों को केवल तस्वीर दिखा कर उन्हें पढ़ाएंगे कि कौन-कौन से वन्य जीव हमारे देश में होते थे। 1947 से भारत में चीते नहीं हैं। चीतों का तेजी से शिकार बढ़ जाने की वजह से यह प्रजाति संकट में आ गई थी। मध्य प्रदेश में कोरिया के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने 1947 में अंतिम तीन चीतों को मार डाला था। इसके बाद भारत सरकार ने 1952 में देश में चीता को विलुप्त घोषित कर दिया था। दुनिया भर में इस समय चीतों की संख्या लगभग 7 हजार है, जिसमें से आधे से ज्यादा चीते दक्षिण अफ्रीका, ना​मीबिया और बोत्सवाना में मौजूद हैं।
1970 के दशक में जब ईरान में शाह का शासन था तो भारत ने वहां से चीते लाकर बसाने की कोशिश की थी लेकिन ईरान में सत्ता बदलते ही सब खत्म हो गया। इसके बाद नामीबिया से ऐसी ही एक पहल 2009 में शुरू हुई थी जिसके तहत कुनो नेशनल पार्क जैसी तीन जगहों में चीतों को बसाने जैसी राय बनी थी। एक बड़ी पहल 2010 में तत्कालीन पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने शुरू की थी। इस पहल के 10 वर्ष बाद यानि 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार को चीतों को लाने की इजाजत दी। अब भारत में 70 वर्ष बाद चीते आए हैं। यह चीते विशेष विमान से नामीबिया से लाए गए हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने जन्मदिवस पर इन चीतों को मध्य प्रदेश के कुनो, पालपुर राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ेंगे। 30 दिनों तक इनकी सेहत पर नजर रखी जाएगी। इसके बाद इन्हें जंगल में छोड़ा जाएगा। पारिस्थितिक संतुलन बनाने के लिए कम से कम 25-30 चीते होने चाहिएं इसलिए पांच साल में और चीते नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से यहां लाए जाएंगे। भारत में वनों के कटने तथा जानवरों में शिकार के कारण भारत में पाए जाने वाले वन्य जीवों की प्रजातियां तेजी से घट रही है। इन्हें बचाने के लिए बहुत से नेशनल पार्क, पशु विहार, जीव मंडल आरक्षित क्षेत्र स्थापित किए गए हैं। समय-समय पर सरकार ने हाथियों तथा बाघों को बचाने के लिए कई परियोजनाएं शुरू की हैं। हर वर्ष हम लोग अक्तूबर के पहले सप्ताह में वन्य जीव सप्ताह मनाते हैं लेकिन शिकारी माफिया इतना प्रभावशाली है कि वह अपना धंधा चलाता रहता है। नामीबियाई चीतों को लेकर खासा उत्साह भी है और जिज्ञासा भी। विलुप्त जानवरों को वापिस लाने की कोशिश में यह बड़ी कामयाबी है। जिज्ञासा इस बात की है भारत में नामीबियाई चीते आने से क्या होगा। इसका स्पष्ट उत्तर है कि दुनिया में सबसे तेज दौड़ने वाला  यह जानवर बहुत जल्द फिर से भारत के जंगलों में घूमेगा।
भारत आने वाले चीतों को अभ्यारण्यों से ही लिया गया है जहां उनका प्रजनन उचित ढंग से कराया गया है। यह वो चीते हैं जो अपनी मांओं को छोड़ चुके हैं और खुद को जिंदा रखने में सक्षम हैं। वैसे यह पहला मौका है जब एक बड़े मांसाहारी को एक महाद्वीप से निकाल कर दूसरे महाद्वीप के जंगलों में लाया गया है। वन्य जीव विशेषज्ञ कहते हैं कि बाघों को भी दूसरे अभ्यारण्यों से लाकर यहां बसाया जा सकता है।  पिछले दो दशकों में सरस्किा और पन्ना में बाघ लुप्त हो गए थे। फिर रणथम्बोर और कान्हा के टाइगर रिजर्व से उन्हें यहां लाया गया और चारों जगह बाघों की संख्या बढ़ रही है। समस्या यह है कि भारत अभी भी वन्य जीवों के शिकार का एक बड़ा गढ़ बना हुआ है। हाथी दांत, बाघ और तेंदुए की खाल उनकी हड्डियां और शरीर के अन्य अंग अभी भी तस्करों को लुभाते हैं। बीते दस सालों में भारत में 984 बाघ मर चुके हैं। 
आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2021 में 127 बाघ मर चुके हैं। कभी बीमारी से उनकी मौत हो जाती है तो कहीं उन्हें जहर देकर मारा जाता है। भारत जैव सम्पदा की दृष्टि से समृद्ध देशों में से एक है। कोई भी जीव इस धरा पर जन्म लेता है और मृत्यु को प्राप्त है। यह एक जैविक सत्य है परन्तु किसी भी जीव का असमय मृत्यु को प्राप्त होना चिंताजनक है। असमय विलोपन के कारण पर्यावरणीय स्थितियों में अवांछनीय परिवर्तन काफी खतरनाक है। मनुष्य ने प्राकृति से बहुत खिलवाड़ किया है। वनों का निर्दयतापूर्वक कटान के चलते जानवर अब शहरों की कालोनियों में भी घुसने लगे हैं। अगर पारिस्थितिकी संतुलन बनाना है तो मनुष्य को वन्य जीवों को मारने का अपना स्वभाव छोड़ना होगा। वनस्पति, जीव-जंतु तथा मानव एक-दूसरे के अस्तित्व के पूरक हैं। हमें इनके संरक्षण का संकल्प लेना होगा। देश को नामीबिया से आए मेहमानों का स्वागत करना चाहिए और विलुप्त हो रहे वन्य प्राणियों के जीवन को सहज बनाने के लिए हर सम्भव कोशिश करनी चाहिए।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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