एक तरफ पाकिस्तान भारतीय राजनयिकों को अपमानित कर रहा है। भारत से पाकिस्तान पहुंचे सिख तीर्थयात्रियों से भारतीय राजनयिकों और उच्चायोग के लोगों को दूर रखा जा रहा है। 14 अप्रैल को पाकिस्तान में भारतीय उच्चायुक्त को इवैक्यूई ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड के निमंत्रण पर गुरुद्वारा पंजा साहिब पहुंचना था, लेकिन अचानक सुरक्षा कारणों का हवाला देकर उन्हें रास्ते से लौट जाने को कहा गया। हर साल भारतीय उच्चायुक्त वैशाखी पर्व पर भारतीय तीर्थयात्रियों से मिलते हैं लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। राजनयिकों से व्यवहार को लेकर पिछले कुछ महीनों से भारत-पाक में तनातनी चल रही है। पाकिस्तान की हर हरकत सीधे-सीधे 1961 के वियना सम्मेलन में हुए करार, 1974 में धार्मिक स्थलों की यात्रा पर हुए द्विपक्षीय प्रोटोकॉल और भारत और पाकिस्तान में राजनयिकों, कर्मचारियों के साथ व्यवहार से जुड़ी 1992 की आचार संहिता का उल्लंघन है, जिस पर दोनों ही देशों ने हाल ही में सहमति जताई थी। भारत ने इस पर कड़ा प्रोटैस्ट जताया है।
दूसरी तरफ पाकिस्तान के थलसेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा भारत से बातचीत के इच्छुक दिखाई दिए। बाजवा ने कहा है कि कश्मीर के मूल मुद्दे सहित दोनों देशों के बीच सभी विवादों का शांतिपूर्ण समाधान समग्र एवं अर्थपूर्ण संवाद से ही सम्भव है। उन्होंने यह भी कहा कि ऐसा संवाद किसी पक्ष पर अहसान नहीं है बल्कि यह समूचे क्षेत्र में शांति के लिए जरूरी है। कमर बाजवा का बयान महज एक नौटंकी ही है। पाकिस्तान का दोहरा रवैया किसी से छिपा हुआ नहीं है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नग्न हो चुके पाकिस्तान की छवि विकृत हो चुकी है। अब वह ऐसी बातें करके अपनी छवि को सुधारना चाहता है। भारत का स्पष्ट स्टैण्ड है कि आतंक और वार्ता साथ-साथ नहीं चल सकते। जब पाकिस्तान सीमाओं पर लगातार गोलाबारी कर रहा हो, हमारे जवान शहीद हो रहे हों, कश्मीर घाटी में वह लगातार हमलों में लिप्त हो तो उससे बातचीत की कल्पना भी नहीं की जा सकती। हमारी सरकारों ने भी कई अवसर खोये हैं अर्थात् वह अवसर जब हम बातचीत के माध्यम से कश्मीर समस्या काे हमेशा-हमेशा के लिए सुलझा सकते थे। वह इसे 1972 में मिला, जिसे श्रीमती इन्दिरा गांधी की अदूरदर्शिता के कारण हमने खो दिया, वरना जिनके 90 हजार पाकिस्तानी सैनिक जिन पर सारे विश्व की सेनाएं पाकिस्तान के घृणित आचरण के लिए थू-थू कर रही थीं, उसके बदले वह हिस्सा भी छोड़ने के लिए तैयार हो जाता, जो आज पीओके के नाम से जाना जाता है। सारे विश्व को भारत से इस शर्त की अपेक्षा थी, लेकिन हुआ क्या? जुल्फिकार अली भुट्टो की अभूतपूर्व सफलता थी। कांग्रेस के लोग आज भी बहुत गलतफहमी में हैं कि शिमला समझौता कोई बहुत बड़ी तोप थी। मर्मज्ञ आज भी शिमला समझौते को ‘डस्टबिन’ के कूड़े के नाम से पुकारते हैं।
सनद रहे समझौते मनुष्यों से होते हैं आैर मनुष्यों के समझौते भेिड़याें से नहीं हो सकते। अटल जी को पाकिस्तान जाकर क्या मिला? मनमोहन सिंह को मुशर्रफ से क्या मिला? इन्द्र कुमार गुजराल के पाक डाक्ट्रीन का क्या हश्र हुआ? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को नवाज शरीफ के घर अचानक शादी में जाकर क्या मिला? कुछ प्राणी, जिनके गले में पट्टा बंधा हो, वह उसी की बात मानते हैं जिसने हाथ में उसकी जंजीर थामी हुई होती है। पाकिस्तान की जंजीर कभी अमेरिका ने थाम रखी थी और वह उसके टुकड़ों पर पलता था। अाज वही जंजीर चीन ने थाम रखी है। अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत रहे हुसैन हक्कानी ने साफ कहा है कि पाक को चीन का पिछलग्गू बनने की बजाय अपनी खुद की पहचान बनानी चाहिए। चीन पाकिस्तान का इस्तेमाल अपने हितों के लिए कर रहा है। हर बार भारत पाक की फितरत समझने की भूल कर बैठा। दूसरी कटु सच्चाई है कि अनुच्छेद 370 की अनुकम्पा सेे मात्र 5 फीसदी कश्मीर घाटी के लोगों को छोड़कर शेष लोगों की प्रतिबद्धता या तो कश्मीरियत से है या पाकिस्तानियत से। भारत से उन्हें कोई हमदर्दी नहीं।
हुर्रियत वालों के षड्यंत्र सामने आ चुके हैं। भारत का विखंडन ही जिनका लक्ष्य हो, राष्ट्रद्रोह जिनका धर्म हो, दुष्टता जिनका ईमान हो, जो स्वयं को हुर्रियत की नाजायज औलाद कहते हों, जिन्हें आर्थिक मदद पाकिस्तान, आईएसआई और देशद्रोहियों से मिलती हो, भारत को उनका इलाज करना ही पड़ेगा। भारत अब इलाज कर भी रहा है। जिस दिन राजनीतिज्ञों के प्रवचनों में दधीचि के बलिदान से लेकर गुरु गोबिन्द सिंह, बंदा बहादुर, छोटे साहिबजादे, हकीकत राय, 1857 के संग्रामी भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, ऊधमसिंह, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस आैर मंगल पांडे की स्वर लहरियां गूंजेगी, उस दिन भारत का राष्ट्रबोध जाग जाएगा। पाकिस्तान से बातचीत का कोई आैचित्य ही नहीं। स्मरण रहे-राष्ट्रधर्म से बढ़कर कोई धर्म नहीं।