कैसी-कैसी मां ?

कैसी-कैसी मां ?
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समाज को यह क्या हो गया है, कहना और समझना मुश्किल है। क्या बहुत ज्यादा पैसा होना समस्याओं की जड़ है या जैसा आप चाहते हैं वैसा न होना समस्याओं की जड़ है। आप जो चाहते हैं अगर वह पूरा न हो तो क्या इसे डिप्रेशन की स्थिति कहा जायेगा और इस स्थिति में एक मां अपने चार साल के बच्चे की निर्ममतापूर्वक हत्या कर दे तो इसे क्या कहेंगे। एक अन्य घटना में एक मां अपनी छ: माह की बच्ची के साथ अपने घर की सौलहवीं मंजिल से छलांग लगाकर आत्महत्या कर ले तो क्या इसे भी डिप्रेशन कहा जाएगा? चाहे किस्मत की बात कहो या डिप्रेशन लेकिन समाज में ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं। आखिरकार क्या किया जाये, हमारी युवा पीढ़ी और विशेष रूप से तीस से चालीस वर्ष की महिलाएं किस दिशा में जा रही हैं यह समझ पाना बहुत मुश्किल है। चार दिन पहले गोवा पुलिस ने जिस सूचना सेठ को पकड़ा उसने बेंगलुरु में अपने चार साल के बच्चे का कत्ल किया था। तीन दिन पहले नोएडा की एक हाईप्रोफाइल सोसाइटी में रहने वाली सारिका ने छ: माह की बच्ची को गोद में लेकर सौलहवीं मंजिल से छलांग लगाकर आत्महत्या इसलिए कर ली कि वह डिप्रेशन में थी। एक सर्वे के अनुसार वर्ष 2023 में 30 से 40 वर्ष की महिला पुरुषों के अलावा 12 से 25 साल की उम्र के कुल 200 लोगों ने देशभर में आत्महत्याएं की हैं। ये आंकड़े चौंकाने के लिए काफी हैं। इस मामले में जब तक आत्महत्या की कोशिश करने वालों को अस्पताल पहुंचाया गया तब तक उनकी जान जा चुकी थी। आत्म हत्याओं या फिर एक महिला द्वारा बच्चे की हत्या कर दिया जाना ऐसे केस बढ़ने के पीछे क्या मनोविज्ञान है यह अपने आपमें एक रहस्य है। कहीं पति बच्चों को मार रहा है और कहीं पत्नी बच्चों को मार रही है तो कहीं प्रेमी-प्रेमिका शादी न होने की स्थिति में हत्या या आत्महत्या कर रहे हैं।
इस बारे में मनोविज्ञान विशेषज्ञों और डाक्टरों की अलग-अलग राय है। उनका मानना है कि परिस्थितियां प्रतिकूल हो सकती हैं। सब कुछ आपके पक्ष में नहीं रहता। कभी भी हालात बदल सकते हैं। इन विशेषज्ञों का कहना है कि जब चुनौतियां सामने आती हैं तो लोग उससे भागते हैं, उसका सामना नहीं करते। इसलिए खुद ही अंदर ही अंदर निराशा की एक भावना पैदा होने लगती है और जब यह अपने चरम पर पहुंचती है तो इसे डिप्रेशन कहा जा सकता है। डिप्रेशन अर्थात हताशा के और भी कई कारण हैं। सब कुछ अपने पक्ष में करने की उम्मीद और वह जब पूरी नहीं होती अर्थात प्रतिकूल परिस्थितियों में निराशा चरम पर पहुंच जाती है ऐसे में मानव कोई भी पग उठाकर अपनी जीवनलीला खत्म करने की सोचता है लेकिन सूचना सेठ के विषय में तो सब कुछ विपरीत हुआ। वह एक कंपनी की सीईओ है और लगभग पच्चीस लाख रुपया कमाती है। उसका पति विदेश में है जो नौ लाख रुपये महीना कमाता है।
आखिर क्या हालात बन गए कि महिला ने अपने चार साल के बच्चे को सीरप पिलाया और फिर योजनाबद्ध तरीके से उसकी हत्या कर दी। बाद में वह उसकी लाश बैग में डालकर निकल पड़ी। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है कि क्या बहुत ज्यादा पैसा, बहुत ज्यादा ऐशो-आराम की जिंदगी हताशा पैदा करती है। सूचना के केस में संभवत: एक कारण उसकी अपने पति से दूरी भी हो सकता है लेकिन यह रहस्य और भी जटिल रहेगा कि ऐसी कौन सी परिस्थितियां थी कि उसने अपने बच्चे की योजनाबद्ध तरीके से हत्या कर डाली। नोएडा के केस में जिस सारिका ने अपनी छह माह की बच्ची को लेकर छलांग लगाई उसकी आत्महत्या के पीछे बड़ा कारण डिप्रेशन भी बताया गया है क्योंकि उसका पति भी विदेश में था।
हमारा मानना है कि हर सूरत में परिवार में ऐसा सौहार्द बना रहना चाहिए कि हर कोई खुश रहे। यूथ के लिए और विशेष रूप से महिलाओं के लिए हालात को संभालना बहुत मुश्किल होता है। लेकिन जरूरी यह है कि विपरित परिस्थितियों में भी निराशा से दूर रहने की बातें की जाएं। परिवार के लोगों को समझाया जाये कि जीवन में सब कुछ चलता रहता है। जो होना है उसे होने दें इसकी परवाह न करें। गीता में भी पांडवों के हालात बिल्कुल विपरित थे लेकिन भगवान कृष्ण ने उन्हें समझाया कि हर हालात में खड़ा होना पड़ता है और कर्म करना ही पड़ता है हमें हमेशा अपने कामों पर ध्यान रखना चाहिए। ये सब बातें सोशल मीडिया पर आजकल जितनी तेजी से वायरल हो रही हैं, इनमें चुनौतियों से लड़ने की सीख मिलती है। घर में हर छोटे और विशेष रूप से बड़े सदस्यों को हालात को लेकर असफलता को लेकर ज्यादा चिंता करने की बजाए सामान्य रहकर खुश रहना चाहिए।  बड़ा पद मिला या नहीं मिला, अपाइंटमेंट हुई या न हुई या फिर धन को लेकर चिंता नहीं करनी चाहिए। हालात को सामान्य लेना भी चुनौतियों का सामना करना ही है। फिर भी जो हुआ उसे भुलाना चाहिए। जो भी घटनाएं समाज में हुई इसे भुलाना ही एक समझदारी कहा जायेगा। यह हम नहीं सोशल मीडिया पर कही जा रही एक्सपर्ट की राय है।

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